आज हनुमान जयंती है। कहते हैं कलयुग में एक ही जीवित देवता हनुमान हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी पर राम जन्मे, पूर्णिमा पर हनुमान। भगवान हनुमान से जो सीखना चाहिए, वो है निर्भय रहने की कला। हनुमान विश्वास के देवता हैं। विश्वास दोनों तरह से हो। परमात्मा पर भी, स्वयं पर भी। बाहर भी, भीतर भी। भरोसा ही एकमात्र चीज है जो सूर्य को मुंह में रख लेने से लेकर समुद्र लांघने तक के काम करवा लेता है।
इंसान के जीवन में तीन ही भाव होते हैं, पहला हर्ष, दूसरा शोक और तीसरा भय। हर्ष यानी खुशी, शोक यानी दुःख, भय का मतलब डर। डर ही सफलता के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है। डर असफलता का भी होता है, सफलता को बरकरार रखने का भी, भय बाहरी भी होता है, भीतर का भी। डर कोई भी हो, ये हमें जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकता है। भगवान हनुमान से सीखें कैसे अपने ऊपर डर को हावी होने से रोका जा सकता है।
कहानी-1ः दूर से जो चीजें समस्या की तरह दिखती हैं, वो समाधान भी हो सकती हैं
रामायण का किस्सा है। रावण ने सीता का हरण किया तो उनकी खोज में राम और लक्ष्मण जंगल में भटक रहे थे। शबरी के कहने पर वे सुग्रीव से सहायता मांगने गए। सुग्रीव अपने भाई बाली से बचने के लिए ऋष्यमुक नाम के पहाड़ पर रहते थे क्योंकि बाली एक शाप के कारण इस पहाड़ पर नहीं आ सकता था।
राम और लक्ष्मण को ऋष्यमुक पहाड़ के पास देखकर सुग्रीव घबरा गए। उन्हें लगा कि बाली खुद नहीं आ सकता है तो उसने मुझे मारने के लिए योद्धा भेज दिए हैं। सुग्रीव ने हनुमान से कहा कि वो उनकी रक्षा करें। हनुमान ने जवाब दिया कि बिना ये समझे कि वो लोग कौन हैं, कोई फैसला नहीं करना चाहिए। पहले उनके पास जाकर ये पता करना चाहिए कि ये दो लोग कौन हैं?
हनुमान ने अपना रूप बदला और ब्राह्मण बनकर राम-लक्ष्मण के पास पहुंचे। जब बात की तो पता चला ये वो राम हैं, जिनका नाम हनुमान दिन-रात जपा करते हैं। वे दुश्मन नहीं है, सुग्रीव से मदद मांगने आए हैं। दूर से जो समस्या दिख रही थी, वो दरअसल समाधान थी। हनुमान सिखाते हैं, किसी भी परिस्थिति से डरें नहीं, उसे समझने की कोशिश करें। हो सकता है, वो आपके लिए मददगार साबित हो।
कहानी-2ः समस्या से डरे नहीं, उसे कैसे सुलझाया जा सकता है ये सोचें
डर को जीतने की कला में हनुमान निपुण हैं। कई घटनाएं हैं, जिन्होंने उनके मन में भय पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वे बुद्धि और शक्ति के बल पर उनको हरा कर आगे बढ़ गए। डर को जीतने का पहला मैनेजमेंट फंडा यहीं से निकला है कि अगर आप विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना चाहते हैं तो बल और बुद्धि दोनों से काम लेना आना चाहिए। जहां बुद्धि से काम चल जाए वहां बल का उपयोग नहीं करना।
रामचरित मानस के सुंदरकांड का प्रसंग है सीता की खोज में समुद्र लांघ रहे हनुमान को बीच रास्ते में सुरसा नाम की राक्षसी ने रोक लिया। हनुमान को खाने की जिद की। हनुमान ने बहुत मनाया, लेकिन वो नहीं मानी। वचन भी दे दिया, राम का काम करके आने दो, सीता का संदेश उनको सुना दूं फिर खुद ही आकर आपका आहार बन जाऊंगा। सुरसा फिर भी नहीं मानी।
वो हनुमान को खाने के लिए अपना मुंह बड़ा करती, हनुमान उससे भी बड़े हो जाते। वो खाने की जिद पर अड़ी रही, लेकिन हनुमान पर कोई आक्रमण नहीं किया। ये बात हनुमान ने समझ ली कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ ईगो की समस्या है। तत्काल सुरसा के बड़े स्वरूप के आगे उन्होंने खुद को बहुत छोटा कर लिया। उसके मुंह में से घूमकर निकल आए। सुरसा खुश हो गई। आशीर्वाद दिया। लंका के लिए जाने दिया।
जहां मामला ईगो के सेटिस्फैक्शन का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए, ये हनुमान ने सिखाया है। बड़े लक्ष्य को पाने के लिए अगर कहीं झुकना भी पड़े, झुक जाइए।
कहानी-3ः समय कम हो और काम ज्यादा तो बल का प्रयोग करें
दूसरा प्रसंग भी इसी रास्ते में घटा। समुद्र लांघकर हनुमान लंका पहुंचे। लंका के मुख्यद्वार पर लंकिनी नाम की राक्षसी मिली। रात के समय हनुमान छोटा रूप लेकर लंका में प्रवेश कर रहे थे, लंकिनी ने रोक लिया। यहां परिस्थिति दूसरी थी, लंका में रात के समय ही चुपके से घुसा जा सकता था। समय कम था, हनुमान ने लंकिनी से कोई वाद-विवाद नहीं किया। सीधे ही उस पर प्रहार कर दिया। लंकिनी ने रास्ता छोड़ दिया।
जब मंजिल के करीब हों, समय का अभाव हो और परिस्थितियों की मांग हो तो बल का प्रयोग अनुचित नहीं है। हनुमान ने एक ही रास्ते में आने वाली दो समस्याओं को अलग-अलग तरीके से निपटाया। जहां झुकना था वहां झुके, जहां बल का प्रयोग करना था, वहां वो भी किया। सफलता का पहला सूत्र ही ये है कि बल और बुद्धि का हमेशा संतुलन होना चाहिए। दोनों में से एक ही हो तो फिर सफलता दूर रहेगी।
कहानी-4ः दुश्मन की ताकत और धन-दौलत देखकर भी उससे प्रभावित ना हों
तीसरा प्रसंग है, सीता से लंका की अशोक वाटिका में मिल कर हनुमान ने पूरी वाटिका को उजाड़ दिया। रावण के बेटे अक्षकुमार को भी मार दिया। मेघनाद ने उन्हें नागपाश में बांधकर रावण की सभा में प्रस्तुत किया। सभा देखकर हनुमान आश्चर्य में पड़ गए।
रामचरित मानस के सुंदरकांड में तुलसीदास ने लिखा है…
दसमुख सभा दीखि कपि जाइ, कहि ना जाइ कछु अति प्रभुताई।
कर जोरें सुर दिसिप बिनिता, भृकुटी बिलोकत सकल सभीता।
देखि प्रताप न कपि मन संका, जिमि अहिगन महुं गरुड़ असंका। (सुंदरकांड, रामचरित मानस)
अर्थः रावण की सभा को देख हनुमान को आश्चर्य हुआ। ऐसा प्रताप जिसका बखान संभव नहीं। देवता और दिग्पाल हाथ जोड़े खड़े हैं, डरे हुए केवल रावण की भृकुटियों को ही देख रहे हैं। ऐसा प्रताप देख कर भी हनुमान के मन में कोई भय नहीं था, वे ऐसे खड़े हुए थे जैसे सर्पों के बीच गरुड़ रहते हैं।
रावण के वैभव और बल को देखकर भी हनुमान तनिक विचलित नहीं हुए। दुश्मन और बुरे लोगों के वैभव को देखकर उससे प्रभावित ना होना, ये बहुत कठिन काम है। शत्रु के सामने बिना भय के रहें। उसकी ताकत और सामर्थ्य से प्रभावित ना हों। ये हनुमान सिखाते हैं। आपकी पहली जीत वहीं हो जाती है, जब आप उसके प्रभाव में नहीं आते। अगर उसके वैभव का लेश मात्र भी असर आपके मन पर हुआ तो फिर जीत की राहें मुश्किल हो जाती हैं। रावण की पहली हार उसी समय हो गई, जब हनुमान ने उसके सामने बिना किसी संकोच के उसकी गलतियों को गिना दिया।
अक्सर लोग यहां चूक जाते हैं। दुश्मन के सामने जाते ही आधे तो उसकी शक्ति के आगे झुक जाते हैं। हनुमान के मन में ये बात दृढ़ थी कि रावण का जो भी वैभव है वो अधर्म से पाया हुआ है। पाप की कमाई है। इसलिए ये बहुत कीमती होते हुए भी बेकार ही है।
कहानी-5ः दुश्मनों के खेमे में जाएं तो वहां भी अच्छे लोगों की पहचान करें
आज के कॉर्पोरेट कल्चर में भगवान हनुमान से ये गुण सीखना काफी जरूरी है। सीता की खोज में लंका गए हनुमान ने जब विभीषण के घर के बाहर तुलसी का पौधा, स्वस्तिक और धनुष बाण के चिह्न देखे तो समझ लिया ये राक्षसों के शहर में किसी सज्जन व्यक्ति का घर है।
उन्होंने विभीषण से दोस्ती की और बातों-बातों में उन्हें भगवान राम के गुणों के बारे में बताया। सीधे ये नहीं कहा कि तुम हमारे खेमे में शामिल हो जाओ, बस विभीषण के मन में उत्सुकता का एक बीज बो दिया।
जब रावण ने विभीषण का अपमान कर उसे लंका से निकाला तो विभीषण को हनुमान की कही बात याद आई कि श्रीराम अपनी शरण में आए हर व्यक्ति की रक्षा करते हैं। वो सीधा राम की शरण में पहुंच गया। हनुमान ने समझ लिया था कि अगर लंका को जीतना है तो किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ेगी जो उस जगह और वहां के लोगों के बारे में अच्छे से जानता हो। उन्होंने बिना सीधे कोई बात कहे, विभीषण को राम की शरण में आने का संकेत दे दिया था।
ये कहानी सिखाती है कि जब भी आप अपने दुश्मन के खेमे में जाएं तो वहां भी अपने लिए ऐसे लोगों को चुनें जो जीतने में आपकी मदद कर सकते हों।