डॉ. विकास मानव
रमन्ते यस्मिन सुधियो नितान्तं देवर्षिगन्धर्वनरोगाद्याः।
तद्ब्रम्ह कत्कर्तृ तदेव कर्म तदेव वेद्यं कवयो वदन्ति।।
यस्तिंतिनीस्पर्शतुपेत्य वेत्ति न संसृते कामपि हन्त चेष्टाम।
बुद्धिम तदा चेद्द्रवतीं विधाय स जातु मातुर्जठरं न याति।।
परमानन्द सहोदर सम्भोग सुख के महत्व का वर्णन करते हुए देववाणी कहती है :
जिस सम्भोग सुख में श्रेष्ठ बुद्धि वाले मनुष्य, देवर्षि, गंधर्व, नर, सर्प आदि नितांत रमण करते हैं, वह संभोग सुख (परमानन्द) ही ब्रम्ह है. वही कर्ता (करने वाला) है, वही कर्म है और वह जानने योग्य है।
जब पुरुष स्त्री के भग में स्थित तिन्तिनी तक अपने लिंग का स्पर्श करा देता है, जिस समय पुरुष उसकी आवश्यकता भर मंथन करके उसको शीथिल कर देता है, उस समय स्त्री कामांध होकर पुरुष को बाँहों में कसकर जो सुख प्रदान करती है, उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
उस समय उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही इससे स्त्री द्रवित भी हो जाती है, तो समझो कि पुरुष अमर हो गया। स्त्री उसे आँखों में बसाकर रखेगी।
ऐसा प्यार देगी कि जिसका वर्णन नही किया जा सकता। तब पूरे परिवार में सुख शांति भी रहेगी और सदैव कल्याण होता रहेगा।
जहाँ पति से पत्नी और पत्नी से पति परम संतुष्ट रहते हैं वहाँ उस परिवार में निश्चित ही कल्याण होता है :
संतुष्टो भार्यया भर्ता, भर्ता भार्या तथैव च।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्रवै ध्रुवम।।
~मनु स्मृति
यहाँ पहले पत्नी को संतुष्ट करने की बात कही गई है। अतः पहले पत्नी को संतुष्ट करना पति का धर्म है।
यह तभी संभव है जब पति पत्नि को संतुष्ट करने की क्षमता वाला होगा और काम-कला को जानेगा।
पुरुष तो संतुष्ट हो ही जाएगा। पर यदि पुरुष पहले ही संतुष्ट हो गया तो वह बेचारा हो गया। अतः उसमे पर्याप्त पौरुष होना चाहिए और उसे स्त्री को पहले द्रवित करने की कला आनी चाहिए। नहीं तो वह बेचारी आहें भरती रहेगी।
हर बार यदि ऐसा हुआ तो विवश होकर वह पर पुरुषापेक्षिणी हो ही जाएगी। तब घर, घर नहीं श्मशान बन जाएगा।
दार्शनिक कहते हैं कि जो पुरुष भग के अंदर तिन्तिनी तक लिंग को पँहुचा देगा और उसको परम तृप्ति से वेसुध कर देगा ; स्त्री के प्रतिदान से उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाएंगी और वह पुनः जन्म नही लेगा उसकी मुक्ति हो जाएगी।
अर्थात जब स्त्री पूर्ण प्रसन्न हो जाएगी तो पुरुष को भरपूर सुख देगी ही, पूरी तरह खुश होकर परिवार चलाएगी। तब पुरुष की सारी इच्छाएँ कामनाएँ पूर्ण हो जाएंगी।
जब इसी जन्म में वह कामना मुक्त हो जाएगा। कोई इच्छा वासना कामना शेष अतृप्त नहीं रह जाएगी तब उसे दूसरा जन्म उन अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए क्यों लेना पड़ेगा? पुनर्जन्म का यही कारण तो शास्त्र बताते हैं। यदि स्त्री पुरुष परमानन्द की अनुभूति संभोग सुख में करते हैं तो स्वतः वे मोक्ष को उपलब्ध हो गए।
आप पौरुषहीन सिद्ध नहीं हुए और संभोग की कला को यदि आपने साध लिया तो समझ लो सब सध गया। आप मुक्त हो गए।
ध्यान दें- पहले धर्म, फिर अर्थ, फिर काम और फिर कुछ नहीं सीधे मोक्ष।