एस पी मित्तल,अजमेर
सब जानते हैं कि राजस्थान के पर्यटन स्थल उदयपुर की गत वर्ष देशभर में उस समय चर्चा हुई, जब समुदाय विशेष के दो युवकों ने कन्हैयालाल टेलर की गर्दन शरीर से अलग कर दी। इस घटना से राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरा देश सहम गया। अब उसी उदयपुर में जिला कलेक्टर ताराचंद मीणा ने एक आदेश निकाल कर अगले दो माह तक सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक चिन्ह और झंडा लगाने पर रोक लगा दी है7 यदि किसी संस्था को बाजारों में धार्मिक झंडे लगाने होंगे तो उसे पहले प्रशासन और पुलिस से अनुमति लेनी होगी। यह अनुमति प्रशासन के विवेक पर निर्भर करेगी। यानी आगामी दो माह तक कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से बाजारों, चौराहों आदि पर धार्मिक झंडे और चिह्न नहीं लगा सकेंगे। यह रोक तीज-त्योहारों पर भी जारी रहेगी। हो सकता है कि कलेक्टर मीणा ने यह आदेश उदयपुर के मौजूदा हालातों में जारी किया हो, लेकिन आम जन की भावनाओं से जुड़े इस निर्णय को लागू करने से पहले कलेक्टर ने राज्य सरकार से विमर्श भी किया होगा। सरकार की सहमति के बाद ही ऐसा आदेश जारी हुआ है। यह भी सब जानते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है, लेकिन सवाल उठता है कि राजस्थान में ऐसे हालात उत्पन्न क्यों हो रहे हैं? तीज त्यौहारों और महापुरुषों के जन्मदिन पर धार्मिक झंडे लगाने की परंपरा रही है। ऐसे दिनों को सब लोग उत्सव के रूप में मनाते हैं। अब यदि त्यौहार पर स्वेच्छा से झंडे भी नहीं लगाए जा सकेंगे तो फिर त्योहारों के उत्सव के क्या मायने रहेंगे। जयपुर बम ब्लास्ट के प्रमुख आरोपी जिस तरह हाईकोर्ट से बरी हुए उससे कांग्रेस सरकार पहले ही कटघरे में है। बम ब्लास्ट में जयपुर के 70 लोग मारे गए और अब सबूतों के अभाव और जांच में लापरवाही बरतने का आधार बना कर हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि जिला न्यायालय से चारों आरोपियों को फांसी की सजा हुई थी। यदि राजस्थान में भी कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होती है तो फिर हालातों को संभालना मुश्किल होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित राजस्थान का हर नागरिक चाहता है कि प्रदेश में शांति बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि कट्टरपंथी ताकतों पर सख्ती से कार्यवाही की जाए। गर्दन काटने के बाद उदयपुर में यदि धार्मिक झंडों पर रोक लगाई जाती है तो फिर कट्टरपंथियों को मजबूती ही मिलेगी।