अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

ब्रिटिश साम्राज्यके खिलाफ किया संघर्ष,लोगों को संगठित कर जगाई नई चेतना

Share

एक स्वतंत्र और आधुनिक राष्ट्र के रूप में हमारा इतिहास भले ही 75 वर्ष पुराना हो लेकिन हमारी सभ्यता 5,000 वर्ष से भीअधिक पुरानी है। मानव ज्ञान में भी भारत का योगदान सराहनीय रहा है। पचहत्तर वर्षों की राष्ट्र की उपलब्धि को नईपीढ़ी के सामने रखने और वैश्विक स्तर पर ज्ञान सरिता को विस्तार देने की दिशा में एक बेहतर और केंद्रित प्रयास के तौर परआजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। आजाद भारत आज जहां पहुंचा है, उसकी नींव में ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैंजिन्होंने भारत की आजादी में लेखन और जनसंगठन के नेतृत्व कौशल से लोगों के मन में राष्ट्र के प्रति स्वभिमान को जगाया।ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल थे- सी. वाई. चिंतामणि, सागरमल गोपा, सी एफ एंड्रयूज और वी. वी. सुब्रमण्यय्यर। आजादी के अमृत महोत्सव श्रृंखला की इस कड़ी में पढ़ते हैं कैसे इन्होंने ब्रिटिश सम्राज्य के खिलाफ न सिर्फ संघर्षकिया बल्कि लोगों को संगठित कर जगाई चेतना की नई अलख…

सी. वाई. चिंतामणि:

निर्भीक सिद्धांतों के प्रति अडिग रहने वाले व्यक्ति

जन्म : 10 अप्रैल 1880, मृत्यु : 1 जुलाई 1941

महान राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी सी. वाई. चिंतामणि का जन्म 10 अप्रैल 1880 को आंध्र प्रदेश के विजयनगरम मेंआ था। उनका पूरा नाम चिरावुरी यजनेश्वर चिंतामणि था। गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद िचंतामणि ने न केवलभारत बल्कि दुनिया भर में नाम कमाया। वह कभी भी अपनी गरीबी पर लज्जित नहीं हुए। उन्हें किसी भी तरह के दिखावे सेढ़ थी। एक बार बिहार में भीषण भूकंप आने पर कुछ लोग उनसे चंदा मांगने आए तो उन्होंने उनकी उम्मीद के मुताबिकरकम नहीं दी। उनकी जैसी सामाजिक प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति के लिए वह धनराशि पर्याप्त नहीं समझी गई। तब चिंतामणि नेउन लोगों से विनम्रतापूर्वक कहा कि वह इससे अधिक चंदा देने की हैसियत नहीं रखते हैं। इसके लिए उन्होंने लोगों को अपनापासबुक तक दिखाने में संकोच नहीं किया। यह उनकी सरलता का ही परिचायक था।चिंतामणि का जीवन काफी पारदर्शी था और वह जो कहते थे वही करते थे। कहा जाता है कि चिंतामणि की स्मरण शक्तिआश्चर्यजनक थी। वह किसी के मुंह से सुनी हुई बात को कभी नहीं भूलते थे। वह अच्छे वक्ता भी थे। उन्होंने अपने जीवन काअधिकांश समय प्रयागराज में बिताया। युवावस्था से ही चिंतामणि उदारवादी विचारों से प्रेरित थे। गोपाल कृष्ण गोखले को
अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम पंथ के नेताओं से प्रभावित थे। चिंतामणि 1898 मेपार्टी में शामिल हो गये। वह समाचार पत्र वाइजैग स्पेक्टेटर के संपादक बनाए गए। उनके संपादक बनने के बाद इसका नामबदलकर इंडियन हेराल्ड कर दिया गया। हालांकि, चिंतामणि के पत्रकारिता करियर का चरमोत्कर्ष उनके द लीडर समाचारपत्र से जुड़ने के बाद आया। इलाहाबाद से प्रकाशित द लीडर, यूनाइटेड प्रॉविंस में अग्रणी अंग्रेजी राष्ट्रवादी समाचार पत्र था।द लीडर, पंडित मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, सच्चिदानंद सिन्हा और तेज बहादुर सप्रू जैसे अग्रणी राष्ट्रवादियों कासंयुक्त उपक्रम था। गनेंद्रनाथ गुप्ता के साथ चिंतामणि इस अखबार के पहले संयुक्त संपादक बनाये गये लेकिन जल्दी ही वह दलीडर के पूर्ण संपादक बन गये। इस समाचार पत्र ने ब्रिटिश राज और उसकी नीतियों की भरपूर आलोचना की। चिंतामणि ने
1918 में कांग्रेस छोड़कर सुरेंद्रनाथ बनर्जी, दिनशॉ वाचा, चिमनलाल सीतलवाड़ और तेज बहादुर सप्रू के साथ मिलकरलिबरल पार्टी गठित की और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संवैधानिक तरीकों के उपयोग को प्राथमिकता दी। भारत सरकारअधिनियम 1919 के अंतर्गत चिंतामणि यूनाइटेड प्रॉविंस के शिक्षा मंत्री बनाये गये। 1927 से 1936 के बीच वह यूपी विधानपरिषद में विपक्ष के नेता बने। 1930 में लंदन में पहले गोलमेज सम्मेलन में उन्हें एक प्रतिनिधि के तौर में आमंत्रित कियागया। स्वतंत्र और निर्भीक चिंतामणि, सिद्धांतों के प्रति अडिग रहने वाले व्यक्ति थे। 1939 में उन्हें नाईट की उपाधि दी गई,बावजूद इसके उन्होंने ब्रिटिश राज के विरोध में अपनी आलोचना कभी बंद नहीं की। सी. वाई. चिंतामणि अपनी मृत्यु तक दलीडर के संपादक बने रहे। 1 जुलाई 1941 को उनका निधन हो गया।

चिंतामणि काजीवन काफी पारदर्शी था। वह जो कहते थे वही करते थे। कहा जाता है कि चिंतामणि की स्मरण शक्ति आश्चर्यजनक थी

वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर

ऐसे राष्ट्रवादी जो शस्त्रों के दम पर आजादी पाने में रखते थे विश्वास

जन्म : 2 अप्रैल 1881, मृत्यु : 3 जून, 1925

तंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर का जन्म 2 अप्रैल 1881 को तत्कालीन मद्रास प्रदेश मेंतिरुचिरापल्ली जिले के वराकानेरी गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम वराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्य अय्यर था। शिक्षा पूरीकरने के बाद वह अपने जिले में वकालत करने लगे। बाद में वह अधिक सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहले रंगून गए औरफिर बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गये। लंदन में उन्होंने बैरिस्टर ऑफ लॉ की परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन उन्होंने डिग्रीलेने से इंकार कर दिया। यहीं उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी। वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से भी उनकीमुलाकात यहीं हुई थी जो वहां भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे थे। वहां अय्यर ‘इंडिया हाउस’ भी आने-जाने लगेजो लंदन में भारतीय राष्ट्रवादियों का एक प्रमुख ठिकाना हुआ करता था। वीर सावरकर और वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर के बीचजल्द ही दोस्ती हो गई। बाद में वह भारत आ गए और सुब्रमण्यम भारती और मंडयम श्रीनिवासचारी जैसे अन्य स्वतंत्रतासेनानियों के साथ पांडिचेरी (अब पुडुचेरी) में बस गए।
सुब्रमण्य क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। उनका मानना था कि शस्त्रों के बल पर ही भारत को आजाद कराया जा सकता है।वह क्रांतिकारियों द्वारा अत्याचारी अंग्रेज शासकों की हत्या को स्वतंत्रता संग्राम का अंग मानते थे। कहा जाता है किपांडिचेरी पहुंचने पर उन्होंने युवाओं को शस्त्र चलाना सिखाया और देश के अन्य क्रांतिकारियों के पास हथियार भीपहुंचाया। वह एक प्रसिद्ध तमिल विद्वान भी थे। उन्होंने इस भाषा के विकास में भी बहुत योगदान दिया। वी. वी. सुब्रमण्यअय्यर ने सावरकर की भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश मेंविरोध प्रदर्शन करने में मदद की। उन्होंने वीर सावरकर द्वारा मराठी में लिखित पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ काअंग्रेजी अनुवाद में सहयोग किया और गुप्त रूप से भारत में इसका प्रचार-प्रसार किया। इस पुस्तक का तमिल में भी अनुवादकिया गया। वह अपने जीवन काल में अधिकांश समय गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करते रहे। हालांकि, जब अंग्रेजों ने उन्हेंजेल में डाल दिया तब उन्होंने उस समय का उपयोग महत्वपूर्ण तमिल साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद करने में व्यतीत किया।1917 में महात्मा गांधी के पांडिचेरी यात्रा के दौरान अय्यर उनसे मिले और अहिंसा के अनुयायी बन गए। वह बाल गंगाधरतिलक के भी अनुयायी थे। अय्यर कई भाषाओं के जानकार थे और तमिल पत्रिका ‘देसबक्थन’ के संपादक थे। आज भी उन्हेंआधुनिक तमिल लघुकथा के जनक के रूप में जाना जाता है। उनका 3 जून, 1925 में निधन हो गया।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें