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भगवा वस्त्र :कभी सीताहरण, कभी सत्ताहरण!

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रावण के कहने पर मारीच हिरन का भेष धर कर जंगल में पहुँचा ही था कि एक भगवाधारी साधु नज़र आया। मारीच घबरा गया। सबसे ज़रूरी तो वह माइक छिपाना था जिस पर उसे राम की आवाज़ में लक्ष्मण को पुकारना था। माइक पर लंका न्यूज़ 24X7 चमक रहा था। मारीच झाड़ियों में घुसने लगा।

साधु बोला- क्या चूतियापा है मारीच! मुझसे क्यों छुप रहे हो!!

परिचित स्वर कान में पड़ते ही मारीच की जान में जान आयी। बोला- प्रभु रावण आप! मैं तो भगवा देखकर घबरा गया कि कोई पहुँचा हुआ महात्मा है, कहीं मेरे छल को पहचान न ले।

रावण बड़ी ज़ोर से हँसा। बोला-यही है भगवा की ताक़त। सीता हरण से लेकर सत्ताहरण तक में काम आता है। लोग श्रद्धा से भर कर आँख मूँद लेते हैं। देखना जनकनंदिनी सीता भी मुझे भगवा वेश में देखकर श्रद्धा से भर उठेगी। सारा विवेक लुप्त हो जायेगा और मैं आसानी से अपने लक्ष्य में क़ामयाब हो जाऊँगा!

त्रेता हो या कलयुग। हर युग के रावण त्याग और तपस्या के प्रतीक भगवा का यही इस्तेमाल करते हैं। कभी सीताहरण, कभी सत्ताहरण!

Navin Jain )

गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब देवभाषा संस्कृत छोड़कर लोकभाषा अवधि में राम चरित मानस ( रामायण ) की रचना की तो उन्हें अपने स्वजातीय और स्वधर्मीय बंधुओं के कोप का भाजन होना पड़ा . कट्टरपंथियों ने उनके कुल गौत्र ,जाति और धर्म को लेकर अनेर्कों भ्रांतियां फैलाई . उनका जीवन दूभर कर दिया उनकी रचना प्रक्रिया को बाधित किया .अंततः उन्होंने अयोध्या की एक मस्जिद में रहकर मांग कर खाते हुए अपनी कृति का लेखन पूर्ण किया . वे कहते हैं कि …..

धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ। 

काहू की बेटी सों, बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ। 

तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रुचै सो कहै कछु ओऊ। 

माँगि कै खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को, एकु न दैबे को दोऊ॥

 ( चाहे कोई मुझे धूर्त कहे अथवा परमहंस कहे, राजपूत कहे या जुलाहा कहे, मुझे किसी की बेटी से तो बेटे का ब्याह करना नहीं है, न मैं किसी से संपर्क रखकर उसकी जाति ही बिगाड़ूँगा। तुलसीदास तो श्रीराम का प्रसिद्ध ग़ुलाम है, जिसको जो रुचे सो कहो। मुझको तो माँग के खाना और मसजिद  में सोना है, न किसी से एक लेना है, न दो देना है )

लेकिन बादशाह अकबर के नवरत्न  अब्दुल रहीम खान-ए-खाना  ( कवि रहीम ) ने हिंदुओं व मुसलमानों को तुलसीराम कृत रामचरितमानस का महत्व बताते हुए उसे वेद और कुरान के समतुल्य बताया . उन्होंने कहा कि ‘रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।’

उनका यह दोहा देखिए

रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,

हिन्दुअन को वेद सम यवनहिं प्रगट कुरान’

यह ध्यान देने की बात है कि रामचरित मानस को वेद और कुरान के समकक्ष बताने वाला कोई और नहीं मुगल बादशाह अकबर के अत्यंत करीबी रहीम थे जो गोस्वामी तुलसीदास जी के मित्र थे । जब सब कट्टरपंथी हिन्दू तुलसीदास  जी को प्रताड़ित कर रहे थे तब वे मजबूती से तुलसीदास जी के साथ खड़े थे । 

 ( गोपाल राठी )

 

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