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कुत्तों की नसबंदी के नाम पर, एनजीओ और निगम अफसर खा गए करोड़ों रुपए…पाँच साल में कुत्तों की नसबंदी पर 21 करोड़ खर्च किए

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NGO वाले खुद नही करते नियमों और निर्देशों का पालन, आम लोगों से भी वसूली
इंदौर । (राजेन्द्र के.गुप्ता ) आरोप लग रहे है कि आज कल जानवरों, खास कर स्ट्रीट डॉग्स के नाम पर कुछ एनजीओ संचालक, बड़े राजनीतिक हस्ती के नाम से लोगों को डरा कर, मोटी वसूली में लगे हुए है, एक मामले में शिकायत भी हुई है, पर जब सब मिले हुए हो और मोटी सरकारी रकम डकार रहे हो, तो जाँच और कार्यवाही की स्पीड के साथ स्थिति को भी समझा जा सकता है।अब इंदौर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है ।
एनजीओ वाले चमकाते है बड़े नाम से –
 एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एनिमल्स खास कर कुत्तों के नाम पर, चर्चित शख़्सियत का नाम लेकर, लोगों को चमकाने वाले इंदौर के एक कथित एनजीओ के कर्ताधर्ता लोगों का फ़ोटो ले रहे थे, जब लोगों ने सवाल शुरू किए तो, भागते नजर आए, लोगों के द्वारा पूछने पर भी एनिमल एनजीओ वाले उस शख़्सियत का नाम तक नही ले पाए थे ।
कुत्तों की नसबंदी की पुष्टि एनजीओ की संचालिका करती है –
जानकारी के मुताबिक  एनजीओ की कर्ताधर्ता ही कुत्तों की नसबंदी होने की पुष्टि करती है, उसके बाद ही निगम नसबंदी किए जाने का भुगतान करता है । अब ऐसे में सवाल उठ रहे है कि फिर इतनी अधिक तादाद में आवारा कुत्ते कैसे बढ़ रहे है ? और वो इंसान को इतनी अधिक संख्या में काट कैसे रहे है ? 
मोटी राशि लेने के बाद भी एनजीओ वाले जिम्मेदार क्यों नही ? –
इंसान को कुत्तों के द्वारा काटने के लिए एनजीओ को ज़िम्मेदार ठहराते हुए, इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच के सामने एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें कई राज खुलेंगे, आरटीआई भी दाखिल होने के अलावा,  विधानसभा में भी इस मामले को उठाया गया है। अब बड़ा सवाल यह उठता है की कुत्तों की नसबंदी और रख रखाव के नाम पर मोटी सरकारी राशि  लेने वाले एनजीओ के पदाधिकारी कुत्तों के द्वारा इंसान को काँटे जाने पर जिम्मेदार क्यों नही हो सकते है ?
राशि लेने के लिए घर में निगम विरुद्ध रखे जानवर-
इंदौर की एक कथित एनिमल कार्यकर्ता के घर में ही नियम विरुद्ध जानवर को रखने की शिकायत हुई थी, जिस पर उसने माफ़ी माँग कर अपना बचाव किया था और जानवर को छोड़ने का वादा किया था ।
कमाई के चक्कर में इंसान की कीमत नही समझते – 
कल्पना करो जिस बच्चे के ऊपर कुत्तों का झुंड टूट पड़ता है उस पर क्या गुजरती होगी, वो जीवन भर कितना भयभीत रहेगा ? कथित एनजीओ के कर्ताधर्ता कमाई के चक्कर में इंसान की कीमत नही समझते, ना ही इंसान के साथ घटना होने पर मदद के लिए आते है
कथित एनजीओ वाले खुद अपने साथ कुत्तों के लिए भोजन लेकर नही चलते –
जो लोग एनजीओ के नाम पर मोटी राशि खा रहे है, उनकी नजर में इंसान के बच्चों की कीमत कैसे रहेगी ? वो खुद अपनी गाड़ी में कुत्तों के लिए भोजन लेकर नही चलते है, जानवरों पर अत्याचार करने के नाम पर किसी इंसान को फँसा कर, उसे ये ज़रूर कहते है, कुत्तों को खाना डाला करो …..
आम लोगों से भी वसूली –
इन कथित एनजीओ वालों को आम नागरिक शिकायत करें या सूचना दे तो कुत्तों को उठाने या ले जाने के नाम पर 2 से  5 हजार रुपए वाहन खर्च माँगा जाता है ।

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