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घर के सपने में तकनीकी खलल:आईडीए स्कीम में फंसी पुष्प विहार; अयोध्यापुरी; हिना पैलेस का लैंडयूज गैरआवासीय

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इंदौर

पुष्प विहार, अयोध्यापुरी और हिना पैलेस मामले में दो थानों में दीपक जैन, सुरेंद्र व प्रतीक संघवी सहित 18 आरोपियों पर छह एफआईआर दर्ज होने के बाद जहां आरोपी फरार हो गए हैं, वहीं अब कलेक्टर मनीष सिंह ने पीड़ितों को प्लॉट दिलाने की कवायद तेज कर दी है।

शुक्रवार को कलेक्टर ने पुष्प विहार का दौरा कर पीड़ितों से बात की। कुछ पीड़ितों ने कहा कि इस जमीन पर बॉबी छाबड़ा का भी दखल है। उस पर भी एफआईआर होना चाहिए थी। कलेक्टर ने कहा कि अभी जो रजिस्ट्री हुई, इसमें सीधा मामला नहीं बना, लेकिन जांच में जो भी आएगा, उस पर कार्रवाई करेंगे। कलेक्टर ने कहा कि जहां-जहां भी सोसायटी की जमीन भूमाफियाओं ने अन्य के साथ खरीदी-बेची है, सभी को रद्द कराने के लिए कोर्ट में आवेदन कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में लगने वाली स्टैंप ड्यूटी मुक्ति के लिए भी शासन को पत्र लिखा है।

पुष्प विहार मामले में सीमांकन का अलग दल बनाकर नपती करा रहे हैं, जिससे यहां पर प्लॉटिंग हो सके। गलत लोगों को सोसायटी से बाहर कर रहे हैं और वरीयता सूची बनाकर कब्जा देंगे, जिससे उन्हें अपनी जमीन मिल सके। इस दौरान अपर कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर व अन्य अधिकारी भी थे। पुष्प विहार की जिस जमीन को लेकर केस हुए हैं, उसी जमीन पर बॉबी ने अपनी बेटी की कुछ साल पहले धूमधाम से शादी की थी, जिसमें चार-पांच हजार से ज्यादा मेहमान शामिल हुए थे और पूरा चौराहा ट्रैफिक जाम में उलझ गया था।

सदस्यों ने कलेक्टर से कहा; भूमाफिया बॉबी छाबड़ा पर भी होना चाहिए एफआईआर

पुष्प विहार कॉलोनी
पुष्प विहार कॉलोनी में 1150 से अधिक सदस्य हैं। यहां सबसे बड़ी समस्या आईडीए की स्कीम 171 है। इस स्कीम में आने के चलते कब्जा मिलने के बाद सरकारी प्रक्रिया द्वारा इस जमीन को स्कीम से मुक्त कराना होगा। इसके बिना लोगों को मकान बनाने की मंजूरी नहीं मिलेगी। हालांकि शासन के सितंबर 2020 में आए नए नियम के बाद 10 फीसदी से कम विकास काम होने पर आईडीए राशि लेकर इसे मुक्त कर सकता है और यह राशि करीब छह करोड़ रुपए बनती है।

अयोध्यापुरी व हिना पैलेस
यह दोनों कॉलोनी अवैध हैं, इसलिए शासन के नियमों का इंतजार करना होगा और जब अवैध को वैध करने की प्रक्रिया तय होगी, तब इसे वैध कराना होगा, तभी यहां निर्माण काम की मंजूरी मिलेगी, लेकिन एक और समस्या है कि दोनों जगह पर लैंडयूज पीएसपी है, यानी गैर आवासीय काम करना होंगे।

21 संस्थाएं ऐसी, जिन्हें विभाग ने माना भूमाफिया वाली
जागृति, सविता, मजदूर पंचायत, श्रीराम, आकाश, कर्मचारी, देवी अहिल्या श्रमिक कामगार, ग्रीन पार्क, सर्वानंद, गजानंद, गोमटेश, माया गृह, कविता, विकास, कसेरा, टेलीकॉम, ईशकृपा समेत 21 संस्थाओं को भूमाफिया वाली माना है।

दर्जनभर संस्थाओं में बॉबी, अधिकारी खुद कराते थे सेटिंग
जागृति, नवभारत, देवी अहिल्या गृह, महात्मा गांधी, गजानंद, श्रीराम, मजदूर पंचायत, आकाश, गौतम, बिहार, नव आनंद, कर्मचारीगण, सर्वानंद आदि में मुख्य रूप से बॉबी छाबड़ा का दखल माना गया था। अधिकारी खुद सेटिंग कराते।

नंदानगर साख सहकारी संस्था में खुले थे खाते
प्रशासन और पीड़ितों द्वारा कराई गई एफआईआर में जमीन की खरीदी-बिक्री के दौरान जिन खातों से ट्रांजेक्शन की बात सामने आई है, उसमें मजदूर पंचायत समिति का खाता नंदानगर साख सहकारी संस्था में था।

पिता की मृत्यु पर पॉलिसी से लिया था प्लॉट, मिला नहीं
इंजीनियर जोसफ थॉमस ने बताया साल 1991 में उन्होंने पुष्प विहार में प्लॉट लिया था। पिता की मृत्यु पर मिली पॉलिसी की राशि मां ने दी थी कि इससे कुछ ले लो। तब से अब तक प्लॉट पर मकान बनाने का सपना ही देख रहा हूं।

रिटायर हो गया, अब बस मकान बना लूं, यही अंतिम इच्छा है
रिटायर बैंककर्मी दिनेश माटा ने कहा कि साल 1991 में प्लॉट लिया था। इतनी लंबी लड़ाई के बाद कई बार लगा कि अब प्लॉट मिलेगा, लेकिन हुआ नहीं, अब फिर लग रहा है कि शासन, प्रशासन की पूरी मदद है। हम अपना मकान बना सकेंगे।

दीपकुंज कॉलोनी के पीड़ितों को अभी भी सुनवाई का इंतजार
जयलक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था, दीपकुंज कॉलोनी के पीड़ित भूखंडधारकों ने 30 साल में सैकड़ों शिकायतें सहकारिता, नगर निगम, कलेक्टर, कमिश्नर को की, लेकिन आज तक 200 परिवारों में से कोई भी अपने भूखंड पर भवन निर्माण नहीं कर पाया है। वर्तमान में जो मुहिम चल रही है, उसमें तो जयलक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था, दीपकुंज कॉलोनी का नाम तक नहीं आया है। पीड़िताें ने बताया 30 वर्षों में दो बार विकास शुल्क व अन्य शुल्क के नाम पर लाखों रुपए संस्था पदाधिकारियों ने ले लिए हैं।

भूखंड हड़पने की नीयत से भूखंड धारकों से प्राप्त शुल्क से ही विभिन्न न्यायालयों में फर्जी वाद प्रस्तुत कर सदस्यों को ही उलझा रखा है। पीड़िताें ने प्रशासन से मांग की है कि 20 वर्षों में 90% भूखंड मूल सदस्यों द्वारा विक्रय कर दिए गए और संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों से सभी प्रकार के शुल्क प्राप्त किए गए, लेकिन नामांतरण एक भी भूखंड धारक का नहीं किया गया। नए भूखंड धारकों का नामांतरण संस्था द्वारा नहीं किया गया।

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