अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर के दीप स्तंभ में आग; भोपाल में एक साथ पकी 3700kg खिचड़ी

Share

भोपाल में एक अनोखे आयोजन में दो टन वजनी लोहे की हांडी में 3700 किलोग्राम खिचड़ी पकाई गई। जो प्रसाद के रूप में 15 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं को परोसी गई। खिचड़ी को पकाने में करीब 6 घंटे लगे। इसमें 3 क्विंटल 80 किलो सब्जी, 350 किलो चावल और 60 किलो दाल का उपयोग किया गया है। इसमें करीब 5 लाख रुपए का खर्च आया। खिचड़ी बनने, उसे तौलने और फिर श्रद्धालुओं में बांटने तक की वीडियोग्राफी कराई गई, ताकि इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए भेजा जा सके।

एक साथ 3700 किलो खिचड़ी पकाने का ये आयोजन गुरुवार को भोपाल के अवधपुरी क्षेत्र के सांई मंदिर में हुआ। आयोजक रमेश कुमार महाजन मंदिर में संस्थापक है। वे भेल (BHEL) में 37 साल की सर्विस के बाद 24 अप्रैल को टेक्नीशियन ग्रेड-1 पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने 3700 किलोग्राम खिचड़ी बनवाने का संकल्प लिया। जिसे 27 अप्रैल को पूरा किया।

एक्सपर्ट पैनल ने गुणवत्ता भी देखी
इस मौके पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी डीके दुबे, भोजराज सिंह धाकड़, नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर गुणवंत सेवंथकर, एनसीसी कमांडेंट योगेशकुमार सिंह, पशुपालन विभाग के एडिशनल डिप्टी डायरेक्टर भगवानदास मंगलानी और एनएचडीसी महाप्रबंधक पीके सक्सेना मौजूद रहे। अफसरों के सामने खिचड़ी का वजन और उसकी गुणवत्ता प्रमाणित की गई। इसके बाद श्रद्धालुओं को खिचड़ी वितरित करने का काम किया गया। पहली बार जिस भगोने का वजन किया गया, उसमें 125 किलो खिचड़ी निकली। इसी हिसाब से आगे भी वजन किया गया।भेल में 37 साल सर्विस के बाद रमेश कुमार महाजन रिटायर हुए। उन्होंने 3700 किलो खिचड़ी बनवाने का संकल्प लिया था। आज संकल्प को पूरा किया।

24 घंटे की वीडियो रिकॉर्डिंग, यही रिकॉर्ड का सबूत बनेगी

श्रद्धालु कमलेश नागपुरे और पुष्पराज रघुवंशी ने बताया कि बुधवार रात से खिचड़ी पकाने को लेकर तैयारी शुरू कर दी थी। गुरुवार सुबह तैयारी पूरी कर ली गई। सुबह 11 बजे से खिचड़ी पकाने का काम शुरू कर दिया गया, जो शाम 4 बजे से पहले पूरा हो गया। इसके बाद एक्सपर्ट की टीम के सामने खिचड़ी का वजन और गुणवत्ता की जांच की गई। पूरे आयोजन की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई, जो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए भेजी जाएगी। यह रिकॉर्डिंग खिचड़ी पकाने की शुरुआत से आखिरी तक चली।

3.80 क्विंटल सब्जी का उपयोग
खिचड़ी बनाने में 3 क्विंटल 80 किलो सब्जी का उपयोग किया गया है। इसमें आलू, कद्दू, टमाटर, धनिया, गाजर, पत्ता गोभी, फूल गोभी, मिर्च, धनिया और बरबटी शामिल हैं।

सब्जीवजन
आलू65 किलो
कद्दू65 किलो
गोभी65 किलो
पत्ता गोभी65 किलो
गाजर25 किलो
बरबटी50 किलो
हरी मिर्च4 किलो
अदरक4 किलो
हरा धनिया7 किलो
टमाटर30 किलो

साढ़े 3 क्विंटल चावल, 60 किलो दाल
खिचड़ी में साढ़े 3 क्विंटल चावल के साथ 40 किलो तुअर दाल, 20 किलो चना दाल के साथ ही 60 किलो हरी मूंग का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा घी 3 किलो, हल्दी साढ़े 3 किलो, धनिया 3 किलो, हिंग 300 ग्राम, जीरा 3 किलो समेत अन्य सामग्री का उपयोग किया गया है।

सामग्रीवजन
चावल350 किलो
हरी मूंग60 किलो
तुअर दाल40 किलो
चना दाल20 किलो
मटर40 किलो
मूंगफली दाना15 किलो
तेल104 लीटर
मखाना3 किलो
हल्दी3.5 किलो
धनियो3 किलो
हिंग300 ग्राम
जीरा3 किलो
कश्मीरी मिर्च1.3 किलो

हांडी में से खिचड़ी बाहर निकालने के बाद उसका वजन किया गया। टीम में नियुक्त एक्सपर्ट इसका वजन लिखते रहे। साथ ही, वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी की जा रही है।

पिछले साल कराया था रजिस्ट्रेशन
रमेश कुमार सांई मंदिर के व्यवस्थापक भी हैं। उन्होंने ही 11 अक्टूबर 2008 को मंदिर की स्थापना करवाई थी। हर साल इसी दिन खिचड़ी के भंडारे का आयोजन किया जाता है। वहीं, प्रत्येक गुरुवार को भी खिचड़ी का वितरण होता है। अबकी बार महाजन ने खिचड़ी का भंडारा पहले ही करने की ठानी। मंदिर के व्यवस्थापक महाजन ने बताया कि सबसे ज्यादा खिचड़ी पकाने के रिकॉर्ड के बारे में जब पता लगाया, तो हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में जनवरी 2020 में रिकॉर्ड बना था। इसमें 1995 किलो खिचड़ी बनाई गई थी। हम इससे दोगुनी मात्रा में खिचड़ी बना रहे हैं, इसलिए पिछले साल नवंबर में ही गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए रजिस्ट्रेशन करा दिया था। उन्होंने खुद खिचड़ी बनाई। उनके साथ 25 लोगों की टीम भी इस काम में लगी रही।अवधपुरी के आधारशिला स्थित सांई मंदिर में खिचड़ी बनाई गई है, जिसे तौलने के बाद श्रद्धालुओं को वितरित किया जा रहा है।

विशेष तौर पर बनवाई है हांडी
मंदिर में भंडारे के लिए विशेष तौर पर बड़ी हांडी बनवाई गई है। जिसका वजन 2 टन 40 किलो यानि दो हजार 40 किलो है। इस हांडी की क्षमता 12 हजार 500 लीटर की है। यह भोपाल के गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में विशेष तौर पर बनवाई गई है।

कई दीपक टूटकर गिरे; उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के जमाने के हैं दीप स्तंभ

51 शक्तिपीठों में से एक उज्जैन के माता हरसिद्धि मंदिर में स्थित 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभ में गुरुवार को अचानक आग लग गई। इससे दीप स्तंभ के एक दर्जन से अधिक दीप खंडित हो गए। मंदिर में कुछ देर के लिए अफरा-तफरी के हालात बन गए। फायर ब्रिगेड की टीम ने आधे घंटे में आग पर काबू पाया।

मंदिर के पंडित राजेश गोस्वामी ने बताया कि दोपहर 1 बजे साउथ से आई कुछ महिला श्रद्धालुओं ने 108 दीप प्रज्ज्वलित कर दीप स्तंभ के पास रख दिए। इन्हीं दीपक की वजह से दो दीप स्तंभ में से एक ने आग पकड़ ली। देखते ही देखते आग बढ़ती गई। 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभ के निचले हिस्से की आग तो मंदिर कर्मचारियों ने बुझा दी, लेकिन ऊपर के हिस्से में लगी आग पर काबू नहीं पा सके थे।

पंडित गोस्वामी ने बताया कि एक दर्जन से ज्यादा दीपक टूट गए हैं, जिन्हें बनाने के लिए राजस्थान से कारीगरों को बुलाया है। जब तक दीप स्तंभ दोबारा बन नहीं जाता, तब तक प्रतीकात्मक रूप से स्तंभ के नीचे के दीप जलाए जाएंगे।

ये है मान्यता

शास्त्रों के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी-देवता को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यहां पहुंचने पर माता सती को ये बात पता चली। माता सती को शिव का अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि के हवाले कर दिया।

भगवान शिव को ये पता चला, तो वे क्रोधित हो गए। वे सती का मृत शरीर उठाकर पृथ्वी का चक्कर लगाने लगे। शिव को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के अंग के 51 टुकड़े कर दिए। माना जाता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। उज्जैन में इस स्थान पर सती माता की कोहनी गिरी थी। इस मंदिर का नाम हरसिद्धि रखा गया।

दोनों स्तंभों पर दीप जलाने का खर्च 15 हजार

दोनों दीप स्तंभों पर दीप जलाने का खर्च करीब 15 हजार रुपए आता है। इसके लिए पहले बुकिंग करवानी होती है। हरसिद्धि माता मंदिर में आगामी 10 दिसंबर तक बुकिंग पूरी हो चुकी है। दीप स्तंभों पर चढ़कर हजारों दीपकों को जलाना सहज नहीं है। उज्जैन का रहने वाला जोशी परिवार करीब 100 साल से इन दीप स्तंभों को रोशन कर रहा है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की सफाई भी की जाती है। वर्तमान में मनोहर, राजेंद्र जोशी, ओम चौहान, आकाश चौहान, अर्पित और अभिषेक इस परंपरा को कायम रखे हैं।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें