तीन साल पहले जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए न केवल उसे सत्ता से बाहर कर दिया था, बल्कि कांग्रेस के कई विधायकों को तोडक़र उन्हें भाजपाई बनाते हुए सत्ता में भी वापसी कर ली थी। भाजपा के इस झटके को अब तक कांग्रेस भूल नहीं सकी है। अब कांग्रेस ने भी चुनावी साल में भाजपा को भी इसी तरह से बड़ा झटका देने की तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि कांग्रेस भी प्रदेश की राजनीति में पोखरण जैसा विस्फोट करने की रणनीति बना चुकी है। इसके लिए पूरा खाका खींचा जा चुका है। इसकी वजह से भाजपा की उस मुहिम को बड़ा झटका लगना तय माना जा रहा है , जिसमें रूठे नेताओं को मनाने का अभियान चलाया जा रहा है। इसकी वजह से अभी से प्रदेश भाजपा में बदली हुई परिस्थितियों की वजह से नवंबर-दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनों से ही बड़ी मुसीबत के संकेत मिल रहे हैं। जो चेहरे पार्टी में कभी कद्दावर माने जाते थे, कैबिनेट का हिस्सा थे, अब वही जीत के रास्ते पर कांटे बिछाने की लगभग तैयारी कर चुके हैं। इन परिस्थितियों की जड़ में श्रीमंत का अपने समर्थकों सहित भाजपा में शामिल होना है। 2020 में श्रीमंत और उनके समर्थकों के आने के बाद जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां भाजपा के पुराने चेहरों को मौका न मिलना मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
उधर, भाजपा नेताओं से संपर्क को लेकर कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के निवास पर बैठक हो चुकी है , जिसमें जानकारी दी गई कि भाजपा के कौन से नेता कमलनाथ के संपर्क में है। माना जा रहा है कि जल्द ही भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता कांग्रेसी बाना पहन सकते हैं। इनमें भी उन नेता पुत्रों के भी शामिल होने की पूरी संभावना है , जो मजबूत पकड़ रखने की वजह से टिकट के दावेदार तो हैं , लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल रहा है। ऐसे में संभावना है कि जो नेता खुद दल बदल नहीं करेंगे, वे अपने पुत्रों को कांग्रेस की सदस्यता दिला सकते हैं। दरअसल कांग्रेस में जिन नेताओं को शामिल करने की रणनीति तैयार की गई है उनमें अधिकांश उन नेताओं के नाम हैं, जो कांग्रेस से भाजपा में आए विधायकों की वजह से पूरी तरह से उपेक्षित कर दिए गए हैं। इनमें वे नेता भी शामिल हैं जो न केवल पहले विधायक रह चुके हैं, बल्कि कई बार मंत्री तक रह चुके हैं। इन नेताओं का अब भी अपने इलाकों में अच्छा प्रभाव माना जाता है। अब श्रीमंत समर्थकों की वजह से उन्हें टिकट मिलना भी बेहद मुश्किल बना हुआ है। इनमें बेहद अहम नाम पूर्व मुख्यमंत्री स्व कैलाश जोशी के पूर्व मंत्री पुत्र दीपक जोशी का भी माना जा रहा है। इसके अलावा ऐसे नेताओं में जिन नामों की चर्चा है, उनमें पूर्व मंत्री गौरीशंकर शैजवार से लेकर रामकृष्ण कुसमरिया तक के नाम शामिल हैं। हालांकि पूर्व में ऐसे नेताओं में जयंत मलैया का भी नाम बताया जा रहा था , लेकिन हाल ही में प्रदेश संगठन ने उनके पार्टी से निष्कासित पुत्र सिद्धार्थ मलैया की पार्टी में वापसी कर उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयास कर लिया है। बताया जाता है कि गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी को टिकट देने के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। पार्टी ने इन्कार किया तो वे भी पैंतरा बदल सकते हैं। इसी तरह से बताया जा रहा है कि कांग्रेस जिन अन्य नेताओं के सम्पर्क में हैं, उनमें श्रीमंत के इलाके यानि की ग्वालियर-चंबल के तीन और विंध्य व राजधानी से लगे जिले के एक बड़े नेता का भी नाम है। इनमें भाजपा के एक वर्तमान विधायक का नाम भी शामिल है। इन नेताओं को लेकर पूर्व सीएम कमलनाथ के निवास पर पार्टी के कुछ नेताओं की बैठक भी हो चुकी है।
सियासी सरगर्मी तेज
जैसे -जैसे प्रदेश में विधानसभा चुनाव का समय पास आता जा रहा है वैसे-वैसे खासतौर पर ग्वालियर-चंबल में भी सियासी सरगर्मी तेज होती जा रही है। इसकी वजह है भाजपा में दशकों से काम कर रहे नेताओं को लग रहा है कि उन्हें इस बार टिकट मिलना मुश्किल हो सकता है। दरअसल श्रीमंत समर्थकों के थोक में भाजपा में आने की वजह से पार्टी के पुराने नेताओं के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं।
अधिकांश श्रीमंत समर्थक भाजपा में आकर उपचुनाव में फतह हासिल कर चुके हैं। इसकी वजह से उनकी इस बार भी स्वाभाविक रूप से दावेदारी होने से उनका टिकट भी पक्का माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा से पूर्व में विधायक रह चुके नेताओं को अपने लिए नई जमीन तलाशना पड़ रही है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया और शिवपुरी में जल्द ही राजनीतिक बदलाव दिख सकता है। इसकी वजह है भाजपा के कई नेताओं का कांग्रेस से लगातार संपर्क बनाए रखना। माना जा रहा है कि अब उन्हें कांग्रेस से सिर्फ टिकट की गारंटी का इंतजार है।
भाजपाई रणनीतिकार मुश्किल में
भाजपा के रणनीतिकार पार्टी नेताओं और विधायकों की नाराजगी की खबरों के साथ ही दलबदल की संभावनाओं की खबरों को लेकर बेहद परेशान हैं। विंध्य अंचल में हालात उतने अच्छे नहीं हैं। नारायण त्रिपाठी अलग पार्टी का झंडा थामे खड़े हैं। भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने अपनी सुरक्षा लौटाने का ऐलान कर दिया। पार्टी के पूर्व विधायक और अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत ने भी बगावती तेवर अख्तियार कर रखे हैं। उन्हें श्रीमंत के साथ भाजपा में आए एक मंत्री से नाराजगी है। इनके अलावा भी कई विधायक और पूर्व विधायक अभी से टिकट कटने की आशंका में घिरे हुए हैं।
पवैया भी नहीं हैं खुश…
पार्टी के बड़े हिंदूवादी चेहरे और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया और माया सिंह की सीट भी कांग्रेस से आए नेताओं के पाले में जा चुकी है। वे इन दिनों महाराष्ट्र के सह प्रभारी भी हैं। ऐसे में भाजपा के सामने संकट है कि इन्हें कहां एडजस्ट किया जाए। पिछले वर्ष पवैया को राज्यसभा में भेजे जाने की चर्चा के बीच सुमित्रा वाल्मिक को राज्यसभा प्रत्याशी बना दिया था। हालांकि ऐसे नेता सतही तौर पर पार्टी के साथ भले दिखाई पड़ रहे हों, लेकिन अंदरूनी तौर पर वह किसी भी तरह से अपनी जगह बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं, इसका नमूना बीते दिनों हुए नगरीय निकाय चुनाव में देखने को मिला जिसमें ऐसे नेताओं के क्षेत्र में भाजपा को अनुकूल परिणाम नहीं मिले।
इस तरह के हैं हालात
सूत्रों की मानें तो भाजपा नेताओं को कांग्रेस में लाने का जिम्मा कुछ नेताओं को कांग्रेस के रणनीतिकार पहले ही दे चुके हैं। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े नेता डा. गौरीशंकर शेजवार की सांची विधानसभा क्षेत्र पर भी स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का कब्जा है। ऐसी स्थिति में शेजवार के बेटे मुदित शेजवार के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। मुदित वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी थे लेकिन चुनाव हार गए थे। कांग्रेस के नेता शेजवार के संपर्क में हैं। उन्हें प्रस्ताव दिया गया है कि वे स्वयं चौधरी के खिलाफ चुनाव लडऩे को तैयार हों तो कांग्रेस उन्हें टिकट देने को तैयार है।