मुनेश त्यागी
आजकल मनुवादी और हिंदुत्ववादी ताकतों की सोच के चलते, मुगलों के इतिहास को छात्रों की पाठ्य पुस्तकों से बाहर कर दिया गया है। यहां पर सवाल उठता है कि एनसीईआरटी ऐसा क्यों कर रही है? उसके डाइरेक्टर का कहना है कि वह महामारी के चलते पाठ्यक्रम को छोटा कर रही है, उसे कम बोझिल बना रही है। मगर उसके कथनों में बहुत भेद है। जब इतिहासकारों ने इसका विरोध किया तो वे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।
असली सवाल है कि मनुवादी हिंदुत्ववादी ताकतें, मुसलमानों से क्यों डरी हुई हैं? वे मुसलमानों को खलनायक साबित करने पर क्यों तुली हुई है? इसका कारण है कि उन्होंने जो राष्ट्र की अवधारणा बना रखी है उसमें एक नकली दुश्मन बना रखा है। हमारे देश में वह नकली दुश्मन मुसलमान हैं। हमारे देश के इतिहास में सारे मुसलमान शासक खराब नहीं थे। उन्होंने भारत के राष्ट्र राज्य को बनाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी। इस देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए, भारत की आजादी के लिए उन्होंने बहुत बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी थीं।
ये कुर्बानियां इतनी बड़ी और विशालकाय हैं कि हिंदुत्ववादी ताकतों के पास उनका कोई जवाब नहीं है, कोई काट और स्पष्टीकरण नहीं है। अतः उनके लिए यह सबसे आसान है कि मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक साबित किया जाए। उनकी महानता से छुटकारा पाने के लिए उन्हें इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को मुसलमानो शासकों की महानता के बारे में पता ही ना चले।
हमारे देश की साझी संस्कृति में, हमारे देश की आजादी की लड़ाई में, मुसलमानों का क्या योगदान रहा है? जब हम अपने इतिहास पर नजर डालते हैं तो हमारे देश में बहुत सारे अमर सेनानी वीर नायक मुसलमानों से संबंध रखते थे। इसी क्रम में हम कुछ मुसलमान अमर सेनानियों का विवरण पेश करते हैं,,,,
- हाकिम सूर खान,,,मुगलों के आगमन के बाद अकबर की मुख्य लड़ाई महाराणा प्रताप से थी। आपको जानकर हर्ष भी होगा और आश्चर्य भी होगा कि अकबर के खिलाफ लड़ रहे महाराणा प्रताप के सबसे बड़े सेनापति हाकिम सूर खान थे। अपने महाराणा को बचाने के लिए हाकिम सूर खान ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। उन्होंने महाराणा प्रताप के जीवन को कोई आंच भी ना आने दी। कोई भी इस महावीर बलिदानी को कैसे और क्यों कर भुला सकता है?
- टीपू सुल्तान,,,,, टीपू सुल्तान की गिनती भारत के महान बादशाहों में की जाती है। टीपू सुल्तान के प्रधानमंत्री पूर्णिया और मुख्यमंत्री कृष्णराव थे। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया, सरेंडर नहीं किया और उन्होंने कसम खाई कि “मैं मरते दम तक अंग्रेजों का मुकाबला कर लूंगा, उनसे लड़ाई लूंगा” अपने राज्य को आजाद रखने के लिए उन्होंने अपने राज्य में “आजादी का पौधा” लगाया था। अंग्रेजों से लड़ाई में उन्होंने हार नहीं मानी और अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, जबकि उनके प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों हिंदू थे। इन दोनों शैतानों ने साजिश की और ये दोनों अंग्रेजों के साथ मिल गए और उन्होंने युद्ध क्षेत्र में टीपू सुल्तान को धोखा दिया और उन्हें गलत दिशा में मोड़ दिया। इन दोनों की गद्दारी के कारण, अंग्रेज़ युद्ध को जीत पाए, वरना टीपू सुल्तान अपने उन्नत तोपखाने के कारण अंग्रेजों को हराने जा रहे थे। टीपू सुल्तान भारत के अमर सेनानी है उनका भारत के इतिहास में कोई जोड़ और तोड नहीं है। वे भारत के इतिहास में सदैव ही बेजोड़ बादशाह बने रहेंगे।
- बहादुर शाह जफर,,,,,,, बहादुर शाह जफर 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनकी इच्छा के विरुद्ध, स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा उन्हें 1857 के संग्राम का सर्वोच्च सेनापति बनाया गया। उनके निजी सचिव मुकुंद थे। संग्राम में दूसरे राजा महाराजाओं की तरह बहादुर शाह जफर भी चाहते तो अंग्रेजों से समझौता कर सकते थे और भारत के बादशाह बने रह सकते थे, मगर उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ना स्वीकार किया, अपने दो बेटों और एक पोते की बलि स्वीकार की, इस देश से निकाला स्वीकार किया। अंग्रेजों ने उन्हें रंगून में कैद कर लिया। वे अपनी मातृभूमि भारत की जमीन में दफन होना चाहते थे, उनकी यह अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं हुई, इसीलिए अपनी मौत से पहले उन्होंने कहा था कि,,,
कितना बदनसीब है ज़फ़र कि दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी ना मिली कुएं यार में।
- बहादुर शाह जफर,,,,,,, बहादुर शाह जफर 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनकी इच्छा के विरुद्ध, स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा उन्हें 1857 के संग्राम का सर्वोच्च सेनापति बनाया गया। उनके निजी सचिव मुकुंद थे। संग्राम में दूसरे राजा महाराजाओं की तरह बहादुर शाह जफर भी चाहते तो अंग्रेजों से समझौता कर सकते थे और भारत के बादशाह बने रह सकते थे, मगर उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ना स्वीकार किया, अपने दो बेटों और एक पोते की बलि स्वीकार की, इस देश से निकाला स्वीकार किया। अंग्रेजों ने उन्हें रंगून में कैद कर लिया। वे अपनी मातृभूमि भारत की जमीन में दफन होना चाहते थे, उनकी यह अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं हुई, इसीलिए अपनी मौत से पहले उन्होंने कहा था कि,,,
- टीपू सुल्तान,,,,, टीपू सुल्तान की गिनती भारत के महान बादशाहों में की जाती है। टीपू सुल्तान के प्रधानमंत्री पूर्णिया और मुख्यमंत्री कृष्णराव थे। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया, सरेंडर नहीं किया और उन्होंने कसम खाई कि “मैं मरते दम तक अंग्रेजों का मुकाबला कर लूंगा, उनसे लड़ाई लूंगा” अपने राज्य को आजाद रखने के लिए उन्होंने अपने राज्य में “आजादी का पौधा” लगाया था। अंग्रेजों से लड़ाई में उन्होंने हार नहीं मानी और अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, जबकि उनके प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों हिंदू थे। इन दोनों शैतानों ने साजिश की और ये दोनों अंग्रेजों के साथ मिल गए और उन्होंने युद्ध क्षेत्र में टीपू सुल्तान को धोखा दिया और उन्हें गलत दिशा में मोड़ दिया। इन दोनों की गद्दारी के कारण, अंग्रेज़ युद्ध को जीत पाए, वरना टीपू सुल्तान अपने उन्नत तोपखाने के कारण अंग्रेजों को हराने जा रहे थे। टीपू सुल्तान भारत के अमर सेनानी है उनका भारत के इतिहास में कोई जोड़ और तोड नहीं है। वे भारत के इतिहास में सदैव ही बेजोड़ बादशाह बने रहेंगे।
बहादुर शाह जफर का भारत के इतिहास में सदैव ही अमर और अमित स्थान रहेगा।
4. बेगम हजरत महल,,,,,, बेगम हजरत महल भारत के स्वतंत्रता संग्राम की महान स्वतंत्रता सेनानी हैं। उनके सेनापति और सरदार राव बख्श सिंह, चंदा सिंह, गुलाब सिंह, हनुमंत सिंह आदि हिंदू सरदार थे। दूसरे राजा महाराजाओं की तरह, बेगम हजरत महल भी अगर चाहती तो अंग्रेजों से समझौता कर सकती थीं। मगर उन्होंने भारत की आजादी का झंडा झुकने नहीं दिया, उन्होंने लड़ना स्वीकार किया, बेवतन होना स्वीकार किया मगर उन्होंने हार नहीं मानी और अंग्रेजों से आजादी की जंग में परिस्थितियां विपरीत होने पर भारत की आजादी के लिए लड़ते-लड़ते नेपाल चली गईं। मगर उन्होंने कभी भी अग्रेजो से समझौता नहीं किया, सरेंडर नहीं किया। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका हैं। भला भारत की स्वतंत्रता प्रेमी जनता उन्हें कभी भी कैसे भूल सकती है?
5. मुजफ्फर अहमद,,,,,,, मुजफ्फर अहमद भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी हैं। वे मेरठ षड्यंत्र केस के हीरो थे। उन्होंने अंग्रेजों से संधि नहीं की, समझौता नहीं किया और अंग्रेजों से लड़ना स्वीकार किया। अंग्रेजों ने उन पर षड्यंत्र का मुकदमा चलाया। उस मुकदमे में उन्हें सबसे ज्यादा आजीवन कारावास की सजा दी गई और उन्हें अंडमान निकोबार काला पानी की सजा दी गई। उस मुकदमें के दौरान मुजफ्फर अहमद ने बहुत ही मार्के का बयान दिया था कि,,,,,” मैं क्रांतिकारी कम्युनिस्ट हूं। हमारी पार्टी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की नीति, सिद्धांत और कार्यक्रम में पूरा विश्वास करती है। क्योंकि भारत के मजदूर किसान अंग्रेजी साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने और सत्ता पर कब्जा कर लेंगे, लुटेरे अंग्रेज राज के वर्तमान स्वरूप को चूर चूर कर देंगे और उसके स्थान पर वास्तविक जनतंत्र पर आधारित किसानों मजदूरों का गणराज्य स्थापित करेंगे। हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे पहला कर्तव्य है कि ट्रेड यूनियनों के अंदर क्रांतिकारी कार्य करें ताकि भारत पूर्ण रूप से आजाद हो सके।” इस महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी को भारत की जांबाज जनता कभी भी नहीं भूल सकती है।
6. अशरफ उल्लाह खान,,,,, भारत की आजादी की लड़ाई के, अशरफ उल्लाह खान महान सितारे हैं। वे एक बहुत बड़े जमींदार के बेटे थे। बहुत बड़े शायर थे, मगर भारत की संपूर्ण आजादी के लिए वे हिंदुस्तान गणतंत्र संघ में शामिल हो गए और अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। वे महान क्रांतिकारी बिस्मिल के सबसे नजदीकी दोस्त थे। अशरफ उल्लाह खान ने जनता से कहा था कि “भारत की जनता जैसे भी हो, क्रांति करें, क्रांति के द्वारा आजादी प्राप्त करें और किसानों मजदूरों का राज कायम करें।” फांसी पर चढ़ने से पहले बिस्मिल के साथ मिलकर उन्होंने तमाम हिंदुस्तानियों के नाम एक अपील जारी की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि “भारत की जनता जैसे भी हो, हिंदू मुस्लिम एकता कायम रखें। यही हमारे लिए सबसे सच्ची श्रद्धांजलि होगी।” क्रांति के इस महान क्रांतिकारी सितारे को भारत की जनता कैसे भूल सकती है?
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे उपरोक्त हिंदुस्तानी नायक, भारतीय इतिहास के चमकते सितारे हैं, सदैव जगमगाते हुए हीरे मोती हैं। हमारे ये तमाम हीरे मोती, हिंदुत्ववादी मुस्लिम विरोधी प्रचार और नफरती मुहिम के बावजूद भी, भारत की जनता के, आने वाली पीढ़ियों के दिलों दिमाग में हमेशा मौजूद रहेंगे। मुसलमान होने के बावजूद ये महान नक्षत्र हमरी नजरों से ओझल नहीं हो सकते हैं। अपने महान कारनामों और बलिदानों के कारण ये हस्तियां, भारतीय इतिहास के अमिट और सदैव चमकते सितारे बने रहेंगे।