अग्नि आलोक
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अबला तेरी यही कहानी

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मिर्ज़ा शमीम बेग़,,इंदौर!

बैठी बेटियां सड़कों पर है ,
न्याय पाने के लिए ,
परेशानियां अनेक उठा रही है ,
न्याय पाने के लिए ,
यह कमजोर और मजबूर नहीं ,
इनकी आंखों के एक एक आशु ,
नई सुनामी ला देंगे ,
एक नया इतिहास लिखेंगे ,
नारी की शक्ति दिखा देंगे।

    

कैसे कहते हो कि,
हम लाचार ,
मजबूर बिचारे हैं !
मिर्जा शमीम बैग बताती है ,
आओ देखो हम क्या-क्या हैं !
ईश्वर ने हम को वह शक्ति प्रदान की है जो विश्व के किसी ,
पुरुष को नहीं प्रदान की है!

हमने इस दुनिया को बनाया है ,
दुनिया ने हमें नहीं बनाया है!
आओ बताते हैं हम शक्ति!

हम 9 महीने का गर्भ रखते है ,
और संभालते उस गर्भ को हम हैं !
एक जान हमारी ,
दूसरी जान को गर्भ में रखते हुए ,
उस दौरान की हर तकलीफों ,
को रात दिन हम हैं सहते !

लेकिन गर्भ में रहने वाले शिशु को ,
कोई तकलीफ ना हम होने देते!
और जब उसको दुनिया में लाते,
पीर की पीड़ा हम हैं सहते!

एक मां से पूछो कैसे ,
हम इस दुनिया को बनाते ,
पेट में रखकर समाज तक पहुंचाते ,
लंबा समय इसमें है लग जाता,
यूं कहिए एक युग बीत जाता ,
फिर समाज का निर्माण होता!

ममता की कड़ी जंजीरों ने हमको जकड़ा ?
वरना! हम बताते की हम क्या कर सकते हैं!
ईश्वर ने दूसरी और प्यार की शक्ति भी एक नारी को अनेक रूप में दी है!

हम वह ताकत हैं हर रिश्ते में ,
प्यार को बदलते हैं !
कभी मां कभी बहन कभी बेटी
और कभी बीवी बनके और दोस्त भी!

मिर्जा शमीम बैग कहती है,
प्यार भी इस समाज को,
हम अनेक रूप में देते ,
फिर कैसे हम लाचार और बिचारे
और मजबूर ? नहीं हम ऐसे नहीं है!

   

बिना नारी के घर है सुना,
और नर भी है सुना,
और बच्चों की ममता सुनी !
फिर कैसे कहते हो कि,
हम हैं लाचार और मजबूर ?

शमीम कहती बिना नारी ,
जग लाचार और मजबूर असहाय है !
हमें जंजीरों में बांधकर ,
रिश्तो ने रखा है !
ईश्वर ने हमारी ममता को
हर ओर बिखेर रखा है !

लेकिन शमीम कहती ,
अब वक्त आ गया,
तोड़ दो हर जंजीरे !
तोड़ दो हर बंधन !
निकलो स्वयं अब घरों से
चंडी का रूप धारण करो ,
दुर्गा तुम हो शक्ति!

तुम हो मां काली!
का रूप धारण करो और राक्षसी युग का अंत करो,
अब नहीं रहना जंजीरों में हमको!
ममता की बंध कर !
हमारी अजमतों को लूटने वालों को सबक हमको है सिखाना,
मिटती है अगर दुनिया ,
हमसे तो मिट जाए !

हमें नारी की इज्जत है बचाना ,
अब इस राक्षसी युग का ,
हमको अंत है करना !
मां काली का रूप तुम धारण करो ,
अस्त्र हाथ में अपने ले लो ,
निकल पढ़ो और सड़कों पर ,
स्वयं अपना हक पाने को,
और अपनी इज्जत बचाने को !

  ॥अबला तेरी यही कहानी ,
   आंचल में है अमृत,
   और आंखों में पानी ,
   अबला तेरी यही कहानी ॥॥

देखते-देखते हाय यह क्या हो गया ?सींचा था जिनको हमने अपने रक्तों से ,
समाज रूपी बाग बनाया था !
और वही बड़े होकर बाग ,
को विरान करने में लग गये!

    ॥अबला तेरी यही कहानी ,
    आंचल में है अमृत ,
     और आँखो में पानी ,
    अबला तेरी यही कहानी॥॥

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