बेंगलुरू। साल 1990 में वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे जो कि लिंगायत नेता थे। तब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। 3 अक्टूबर, 1990 को कर्नाटक के दावणगेरे में हिन्दुओं की एक शोभायात्रा निकाले जाने के बाद इलाके में दंगे भड़क उठे थे। इस शोभा यात्रा के दौरान एक मुस्लिम लड़की को छेड़े जाने के विवाद ने बड़ा रूप ले लिया था। तब दोनों समुदायों में काफी खून-खराबा हुआ था। उस वक्त मुख्यमंत्री पाटिल को हार्ट अटैक आया था और वह आराम कर रहे थे। इसलिए उन पर दंगों को कंट्रोल करने में राज्य सरकार विफल रही ऐसा आरोप लगा। जब राजीव गांधी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष डैमेज कंट्रोल वहां पहुंचे तो उन्होंने हवाई अड्डे से ही मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को हटाने का फरमान सुना दिया था। इससे लिंगायतों में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा भर गया। और धीरे-धीरे लिंगायत मतदाता कांग्रेस से दूर हो गए, जबकि लिंगायत कांग्रेस के परंपरागत वोटर थे।
राहुल ने सुधारू पिता की गलती
33 साल बाद राहुल गांधी ने उस भूल को सुधारते हुए लिंगायतों को अपने पाले में करने के लिए काफी मशक्कत की और नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता रहे जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी से लेकर कई लिंगायत नेताओं को पार्टी में शामिल किया और लिंगायतों की लंबी मांग कि अलग धर्म का दर्जा दिया जाय, उस पर भी हामी भरी। इन कदमों से नाराज लिंगायत समुदाय का एक बड़ा धड़ा एक बार फिर कांग्रेस की तरफ चला आया। वैसे भी लिंगायत बी एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से भाजपा से नाराज चल रहे थे। उन्हें भाजपा से इतर नए राजनीतिक ताकत की तलाश थी, जिसका रास्ता कांग्रेस तक जाता था। लिंगायत राजीव गांधी के कदम के बाद नाराज होकर भाजपा की तरफ चले गए थे, जिससे दक्षिणी राज्य में भाजपा मजबूत हो गई थी।
लिंगयत समुदाय बाहुल्य 80 में से 53 सीटें कांग्रेस ने जीती
कांग्रेस 40 सालों बाद इतनी सीटें जीतने में कामयाब रही है। इसमें लिंगायत समुदाय का बड़ा योगदान है। लिंगायत कर्नाटक में 17 फीसदी हैं और लगभग 80 विधानसभा सीटों पर हार-जीत तय करते हैं। इन 80 सीटों में से कांग्रेस ने 53 सीटें जीतीं हैं, जबकि, भाजपा ने सिर्फ 20 सीटें जीती हैं। कुल मिलाकर, कांग्रेस ने 224 विधानसभा सीटों में से 135 सीटों पर जीत हासिल की है।