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किसी भी हुक़ूमत की औक़ात कुछ देने की रह नहीं गयी है

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डा सलमान अरशद

देश की आज़ादी के शैशवकाल में ही मुसलमानों को पाकिस्तानपरस्त कहना शुरू कर दिया गया, मुसलमान ख़ामोश रहे !

फिर उन्हें देशद्रोही कहना भी शुरू कर दिया गया, वो खामोश रहे ! आगे आतंकवादी कहना शुरू किया गया और थोक में मुसलमान जेलों में ठूसे जाने लगे, बावजूद इसके वो ख़ामोश रहे ! 

फिर मुसलमानों पर हिन्दुत्व के सियासी हामियों का झुंड बनाकर हमला शुरू हुआ, हमलावर सियासी लीडरान की खुली हिमायत हासिल करते रहे, कानून, प्रशासन, कोर्ट और संविधान सब तमाशाई बने रहे, लेकिन मुसलमान फ़िर भी ख़ामोश रहा !

अब मुसलमानों के वजूद को मिटा देने की कानूनी कोशिश हुई तो पहली बार, जी हाँ आज़ाद भारत में पहली बार मुसलमानों ने गाँधी जी के तौर तरीकों को अपना कर सियासी जद्दोज़हद शुरू की, पहली बार मुस्लिम ख़्वातीन ने बताया कि उन्हें जिस पिछड़ेपन की पहचान में डुबोने की कोशिश की जा रही है, वो उससे इनकार करती हैं। 

इसी शाहीनबाग स्टाइल के आन्दोलन को किसानों ने और बलन्दी दी। 

बहरहाल, सुनने में आ रहा है कि कर्नाटक में मुसलमान अपने हक़ में कुछ माँग कर रहे हैं, उस कांग्रेस से मांग रहे हैं जिसने आरएसएस को पालपोसा है, जिसने बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा बनाया है, जिसने मुसलमानों के वजूद पर सैकड़ों हमले किये हैं, सैकड़ों लोगों के कत्ल की वजह बने हैं और क़ातिलों पर FIR तक नहीं किया है। उसी कांग्रेस को कर्नाटक के मुसलमानों ने भरपूर समर्थन दिया है। 

मुसलमानों ने हमेशा सेक्युलर मूल्यों पर आधारित मतदान के फैसले लेता रहा है और जिसको भी मुन्तख़ब किया है उससे धोखे खाये हैं,  बार बार धोखे खाये हैं। पहली बार मुसलमानों को माँगने का ख़्याल आया है, ये ख़्याल भी ऐसे दौर में आया है जब देश भर में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, यही नहीं मुसलमान शासन, प्रशासन, कोर्ट, कानून और संविधान से भी निराश महसूस कर रहा है। 

कमाल देखिये, बेहद मामूली मांगे मीडिया में डिबेट की वजह बन गयी हैं। कई राज्यों में जिनकी आबादी 5 से 10 प्रतिशत है, उनके लोग मुख्यमंत्री बन जाते हैं, लेकिन डिबेट मुसलमानों की माँग पर होगी। 

बहरहाल, किसी भी हुक़ूमत की औक़ात कुछ देने की रह नहीं गयी है, लेकिन मुसलमानों की ओर से माँग करना, उनकी सियासी बेदारी का सुबूत है। सियासी जागरूकता की बड़ी कीमत है। 

हिन्दुत्व की सियासत ने यही अहम काम किया है कि दबे कुचले लोगों को सियासी तौर पर जागरूक कर दिया है। देश के मुस्तकबिल के लिए इस जागरूकता की बड़ी अहमियत है।

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