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राष्ट्रपति के बिना संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति और संविधान का घोर अपमान

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मुनेश त्यागी 

      आगामी 28 मई को मोदी सरकार ने नए संसद भवन के उद्घाटन करने का फैसला किया है मगर इसमें आश्चर्यजनक बात यह है कि इस उद्घाटन समारोह में भारत की राष्ट्रपति मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया गया है। इसे लेकर सरकार और विपक्षी दलों के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। यह सब देख कर एकदम अच्छा नही लगता है कि जहां नये संसद भवन का उद्घाटन हो रहा हो, उसमें भारत की राष्ट्रपति को न बुलाना एकदम अप्रिय घटना लगती है।

       अधिकांश विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले जमकर विरोध करने का निर्णय लिया है। इस मामले को लेकर 20 विपक्षी दलों ने निर्णय किया है कि वे नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करेंगे। 20 में से 19 दलों ने संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू की अनदेखी की जा रही है और भारत के राष्ट्रपति, संविधान और लोकतंत्र की हत्या कर रही है, जैसे उसने इन सब को संसद से निष्कासित कर दिया है।

      विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम को तानाशाही पूर्ण बना बताया है और उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार के खिलाफ जंग जारी रहेगी। विपक्षी दलों के द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति संसद का सत्र बुलाते हैं, सत्र को बंद करते हैं, संसद को संबोधित करते हैं। राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती।

     संयुक्त बयान जारी करने वाले विपक्षी दलों में कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, सपा, शिवसेना उद्धव ठाकरे, सीपीआई, केरल कांग्रेस, झामुमो, एमडीएमके, आरएसपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आईयूएमएल, माकपा, राकांपा, राजद, जदयू , तृणमूल कांग्रेस, रालोद, विदुथलाई चिरुथिगल कच्ची शामिल हैं।

       इसके बावजूद सरकार ने तय किया है कि नए संसद भवन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री के हाथों द्वारा कराया जाएगा, जो शीर्ष पद के अपमान के साथ-साथ संविधान की सीख, आदर्शों, सिद्धांतों और सामुहिक भावना के खिलाफ है। इस मामले पर सरकार और विपक्ष के बीच एकदम तनातनी पैदा हो गई है। वे एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं हैं।

       राजद के 14 प्रमुख दलों ने भी अपने साझा बयान में विपक्ष के इस रवैया की आलोचना की है। राजद के 14 प्रमुख दलों ने विपक्षी पार्टियों के इस कदम को अलोकतांत्रिक बताया है और कहा है कि यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की खुलेआम धज्जियां उड़ाने का आत्मघाती फैसला है। वहीं पर विपक्ष का कहना है राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग हैं और सरकार का यह कदम एकदम अपमानजनक है और यह सरकार की सबको साथ लेकर चलने की भावना और घोषणा के खिलाफ है।

      आइए देखते हैं की भारत के संविधान का अनुच्छेद 79 इस बारे में क्या कहता है। आर्टिकल 79 के अनुसार भारतीय संघ के लिए एक संसद होगी, जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे, जिन्हें क्रमश: राज्यों की परिषद यानी राज्यसभा और लोकसभा के रूप में जाना जाएगा। राष्ट्रपति न केवल भारत के राज्य के प्रमुख हैं बल्कि संसद का एक अभिन्न हिस्सा भी हैं। राष्ट्रपति के पास संसद सत्र बुलाने से लेकर संसद को स्थगित करने और संबोधित करने का अधिकार है। संसद में किसी भी अधिनियम के प्रभावी होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति जरूरी होती है।

     साफ है कि राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती, लेकिन प्रधानमंत्री ने उनके बिना संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है। सरकार का यह अशोभनीय कृत्य राष्ट्रपति के पद का सरासर अपमान और घनघोर निरादर है और संविधान की मूल भावना के बिलकुल खिलाफ है और इससे किसी भी दशा में सहमत नहीं हुआ जा सकता है।

      भारत की राष्ट्रपति आदिवासी और वंचित समाज से संबंधित है और इस प्रकार उन्हें उद्घाटन के लिए न बुलाना, आदिवासी और वंचित समाज का बड़ा अपमान है और प्रधानमंत्री द्वारा संसद सदन का उद्घाटन करना राष्ट्रपति और संविधान की गरिमा के खिलाफ है। वैसे तो वंचित और आदिवासियों का वोट लेने के लिए मोदी सरकार मरी जा रही है मगर वह वंचित और आदिवासी समाज और भारत की प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति को उचित सम्मान देने को तैयार नहीं है।

     यहीं पर यह बात भी गौर करने लायक है कि विपक्षी दलों ने सरकार पर जो आरोप लगाए हैं, सरकार इन आरोपों का कोई जवाब नहीं दे रही है, इन आरोपों और मतभेदों को दूर कर, राष्ट्रपति को उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं कर रही है। यह सब बहुत ही पीड़ादायक है, अपमानजनक और असंतोषजनक है। ऐसी क्या मजबूरी है कि सरकार, इस प्रकार राष्ट्रपति, संविधान और संसद का खुलेआम घनघोर अपमान और निरादर करने पर तुली हुई है?

      यहीं पर यह बात भी गौर करने लायक है कि जहां राम ने आदिवासी महिला शबरी के हाथों के दिए बेर खाए थे और भाजपा इसी राम को लेकर रोज नए-नए उपक्रम करती रहती है, वहीं उसी आदिवासी समाज की महिला के नाम और परछाई से भी किनारा किया जा रहा है। यह राम की और आदिवासी वंचित तबके को लेकर कैसी मनोदशा है? यह बात एकदम बिल्कुल भी समझ में आने वाली नहीं है। इस सब को देखकर लगता है कि हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और। वंचित और आदिवासी समाज के वोट पाने, मंत्री सांसद और विधायक बनने के लिए तो सब कुछ जायज, मगर सम्मान और गरिमा देने के लिए कुछ भी स्वीकार नहीं है। ये सारी घटनाएं मनुवादी सोच और मानसिकता की खुलेआम पोल खोलने वाली ही हैं।

       इस सारे घटनाक्रम को ससम्मान निबटाने के लिए, यह उचित होगा कि सरकार अपनी हठधर्मिता छोड़े और राष्ट्रपति पद की गरिमा, संविधान की मर्यादा व गरिमा बनाए रखने के लिए और समाज के वंचित और दबे कुचले समाज को पर्याप्त सम्मान देने के लिए तमाम विपक्षी दलों से बातचीत करें और नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए, भारत की महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू को आमंत्रित करे और राष्ट्रपति, सरकार और विपक्षी दल सब मिलकर भारत के नए संसद का उद्घाटन करें। ये सब मिलकर राष्ट्रपति, संविधान, संसद और देश का सम्मान और गरिमा बढ़ाएंगे।

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