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लव’जिहाद’वादी भाजपाई नौटंकी की हक़ीक़त

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      ~ दिव्या गुप्ता 

आपको पता ही होगा कि भाजपा पिछले कई वर्षों से ‘लव जिहाद’ को लेकर दंगे-फ़साद और हत्याएँ करवाती रही है। यह ‘लव जिहाद’ क्या है? अगर किसी मुसलमान पुरुष की किसी हिन्दू स्त्री से शादी होती है, तो उसे भाजपा वाले ‘लव जिहाद’ बोलते हैं। अगर इसका उल्टा हो, यानी अगर हिन्दू पुरुष मुसलमान स्त्री से शादी कर ले, तो भाजपा वाले उसे ‘प्रेम धर्मयुद्ध’ नहीं बोलते। युद्ध या जिहाद इलाके, सम्पत्ति, देश जीतने के लिए होते हैं। तो फिर इस ‘लव जिहाद’ शब्द का मतलब क्या हुआ? परायी धर्म की स्त्री को जीतना! मानो स्त्री ज़मीन-जायदाद, इमारत, सम्पत्ति या ऐसी कोई चीज़ हो! प्यार करना सभी का स्वाभाविक अधिकार है। यदि कोई स्त्री अलग धर्म के पुरुष से प्यार करती है, तो यह उसका व्यक्तिगत मसला है। स्त्री किसी धार्मिक समुदाय की सम्पत्ति नहीं है और न ही उस धार्मिक समुदाय का “सम्मान” या “प्रतिष्ठा” स्त्री की देह या उसकी योनि में समायी होती है। अगर किसी को ऐसा लगता है, तब तो कहना होगा कि ऐसा सोचने वाले व्यक्ति को अपने धार्मिक समुदाय की “प्रतिष्ठा” या “सम्मान” या “इज़्ज़त” की सोच के बारे में सोचना पड़ेगा कि यह कैसा समुदाय है जिसकी इज़्ज़त, प्रतिष्ठा या सम्मान किसी गुप्तांग में समाया हुआ हो!

असल में, यह औरत की गुलामी की ही निशानी है कि तमाम प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथी, संघी फ़ासीवादी आदि स्त्री की देह को अपनी घटिया राजनीति का मैदान बना देते हैं। स्त्री हमेशा किसी (पुरुष) की माँ, बहन, बेटी, बीवी आदि होती है, अपने आप में एक स्त्री के वजूद का कोई मतलब नहीं होता! इस सोच को मज़दूर वर्ग को गुलाम बनाये रखने के लिए सरमायेदार जमकर इस्तेमाल करते हैं। हमारे पुरुष मज़दूर भाइयों में भी कई बार ऐसी सोच आ जाती है कि “घर की औरत” बाहर काम करेगी तो इज़्ज़त पर बट्टा लगेगा, उसे केवल घूँघट-घर की चौहद्दी में रहना चाहिए, आदि। लेकिन दोस्तो, इतिहास के मज़दूर इंक़लाबों और न सिर्फ मज़दूर इंक़लाबों बल्कि अधिकांश इंक़लाबों की शुरुआत अक्सर स्त्रियों की पहलकदमी पर शुरू हुई बग़ावतों से हुई। हर क्रान्ति में आदमियों के साथ औरतों ने बहादुरी और समझदारी की मिसालें क़ायम कीं। और आज़ाद भी वे ही मज़दूर हुए जिन्होंने औरतों की गुलामी का समर्थन नहीं किया और इस बात को समझा कि औरतों की गुलामी का इस्तेमाल पूँजीवाद सारे मज़दूरों को दबाने के लिए, मज़दूरों की श्रमशक्ति के पुनरुत्पादन के अपने ख़र्च को मज़दूर परिवार में औरतों के पुनरुत्पादक श्रम पर डालकर कम करने के लिए और मज़दूर वर्ग को तोड़ने के लिए करता है।

बहरहाल, ‘लव जिहाद’ की भाजपा वालों की नौटंकी उतनी ही बेहूदी, झूठी और बकवास है जितनी की उनकी गोरक्षा की नौटंकी। पिछली बार मैंने आपको इनकी गोरक्षा की नौटंकी के बारे में विस्तार के साथ और सबूतों के साथ बताया था। इस बार मैं आपको इनके ‘लव जिहाद’ के फ़रेब के बारे में बताऊँगी।

संघी हाफ़पैण्टियों और भाजपाई भ्रष्टाचारियों के अनुसार अगर मुसलमान आदमी की हिन्दू औरत से शादी हो, तो वह ‘लव जिहाद’ है, जिसका मक़सद होता है धर्मान्तरण करना। वैसे तो अपना धर्म बदलना भी किसी का व्यक्तिगत मसला है और जब तक कोई व्यक्ति स्वयं न बोले कि उससे जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया है, तब तक इसमें हस्तक्षेप का किसी को कोई अधिकार नहीं है। इस ‘लव जिहाद’ के हल्ले का एक मक़सद यह भी है हममें ये बेबुनियाद भय पैदा किया जाये कि “मुसलमान आपकी औरतों को ले जायेंगे!” यह बात ही किस कदर बकवास है, यह तो हम देख चुके हैं लेकिन क्या भाजपा वाले अपनी इस बकवास के प्रति भी वफ़ादार हैं? जिस प्रकार गोरक्षा की नौटंकी भी एक बकवास थी, जैसा कि हमने पिछली बार देखा था, उसी प्रकार ‘लव जिहाद’ की नौटंकी भी बकवास है। जिस प्रकार अपनी गोरक्षा की बकवास के प्रति भी भाजपा वाले वफ़ादार नहीं थे, उसी प्रकार अपनी ‘लव जिहाद’ की बकवास के प्रति भी भाजपा वाले वफ़ादार नहीं हैं। जिस प्रकार गोरक्षा की नौटंकी का मक़सद केवल हिन्दू व मुसलमानों में झगड़ा करवाना है, जबकि भाजपा वाले खुद उत्तर-पूर्व के राज्यों जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, नगालैण्ड, मणिपुर आदि में, गोवा और केरल में खुद ही गोमांस खाने और अधिक से अधिक गोमांस की सप्लाई करवाने का वायदा करते हैं और खुद बड़े-बड़े बूचड़खानों के निदेशक बने बैठे हैं; उसी प्रकार, ‘लव जिहाद’ की इनकी बकवास का असल मक़सद भी बस हिन्दू व मुसलमान जनता में फ़ालतू के मसले पर लट्ठ बजवाना और सिर-फुटौव्वल करवाना है, ताकि हम अपने असली मसलों, यानी महँगाई और बेरोज़गारी पर एकजुट न हो सकें और ‘लव जिहाद’ जैसे फ़र्ज़ी मसले पर फँसे रहें।

अब ज़रा सच्चाई पर एक नज़र डालिये और खुद सोचिये: भाजपा के तमाम शीर्ष नेताओं या उनके बेटे-बेटियों, भतीजा-भतीजियों ने मुसलमान पुरुष या स्त्री से शादियाँ की हैं, तो फिर ये हमें ‘लव जिहाद’ के नाम पर क्यों लड़वा रहे हैं? आइये कुछ तथ्यों पर निगाह डालिये।

भाजपा के मुसलमान नेता शाहनवाज़ हुसैन की शादी एक हिन्दू स्त्री रेणु शर्मा से 1994 में हुई थी। इनके बीच प्रेम विवाह हुआ था। रेणु शर्मा के घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे, तो उन्हें मनाने कौन गया था? क्या आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं? उन्हें मनाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़काने वाले बयान देने में माहिर साध्वी उमा भारती गयी थी! क्या शाहनवाज़ हुसैन एक हिन्दू लड़की रेणु शर्मा से प्रेम विवाह करके ‘लव जिहाद’ नहीं कर रहे थे? मतलब, भाजपा वाले अगर अन्तर्धार्मिक प्रेम विवाह करें, तो उसे ‘लव जिहाद’ नहीं माना जायेगा!

भाजपा के मुसलमान नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी एक हिन्दू औरत सीमा से 1983 में शादी की थी। यह भी प्रेम विवाह था और सीमा की माँ पहले इसके ख़िलाफ़ थीं, लेकिन बाद में उन्होंने दोनों के रिश्ते को मान लिया था। तो सवाल उठता है कि मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भाजपा की ही परिभाषा से खुलेआम 1982-83 में ही ‘लव जिहाद’ की थी! पिछले 40 साल में इस पर भाजपाइयों के चवन्नियों-अठन्नियों यानी इनके पीले चेहरे वाले टुटपुँजिया लफंगों की भीड़ ने कभी मुख़्तार अब्बास नक़वी के घर पर हमला क्यों नहीं किया?

थोड़ा और पीछे चलते हैं। भाजपा के मर चुके मुसलमान नेता सिकन्दर बख़्त ने, जो कि कुरेशी मुसलमान समुदाय से आते थे, 1952 में ही एक ब्राह्मण लड़की राज शर्मा से शादी की थी। यह सच है कि यह बात 1952 की है जब सिकन्दर बख़्त कांग्रेस में थे। लेकिन अगर भाजपाई और संघी हाफ़ पैण्टिये मुगल काल में और सल्तनत काल में, यानी 300-400 या 800-900 साल पहले मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं पर हुए कथित अत्याचार पर आज मुसलमानों के घर जला सकते हैं, दंगे फैला सकते हैं, मॉब लिंचिंग कर सकते हैं, तो 70 साल पहले सिकन्दर बख़्त द्वारा की गयी ‘लव जिहाद’ के आधार पर आज उनके घर पर हमला क्यों नहीं करते? वास्तव में तो मुगल काल और सल्तनत काल भी कोई मुसलमान शासन का दौर नहीं था और उस समय भी शासक वर्ग में बहुत-से हिन्दू राजपूत शासकों, क्षत्रिय शासकों, खत्री, कायस्थ, व मराठा शासकों की हिस्सेदारी हुआ करती थी और यह धार्मिक और नस्ली तौर पर एक मिश्रित शासक वर्ग था। इसलिए “मुसलमान शासन काल”, “मुसलमान काल” आदि औपनिवेशिक और साम्प्रदायिक इतिहासकारों द्वारा रचे गये झूठे शब्द हैं। इतिहास को इस प्रकार धार्मिक शासन कालों में बाँटा ही नहीं जा सकता है। लेकिन मुद्दे पर लौटते हैं। सवाल यह है कि हाफ पैण्टियों की वानर सेना कभी सिकन्दर बख़्त के घर हमला क्यों नहीं बोलती ‘लव जिहाद’ करने के लिए?

आगे बढ़ते हैं।

अब बात करते हैं भाजपा के मुखर नेता सुब्रमन्यम स्वामी के बारे में। इनकी हिन्दू बेटी सुहासिनी ने एक मुसलमान आदमी नदीम हैदर से शादी की। क्या यह ‘लव जिहाद’ की परिभाषा में नहीं आयेगा? क्यों नहीं आयेगा? अभी भाजपा के दंगाई जो इस समय महाराष्ट्र में मुसलमान आबादी के खिलाफ़ घटिया शब्दावली में उन्मादी भाषणबाज़ी करके ‘लव जिहाद’ का हौव्वा खड़ा कर रहे हैं, ‘लव जिहाद’ के मसले पर उन्माद भड़काकर रैलियाँ निकाल रहे हैं, वे कभी सुब्रमन्यम स्वामी या सुहासिनी हैदर के घर हमला क्यों नहीं करते?

अब आप ‘क्रोनोलॉजी’ समझिये। वास्तव में, ‘लव जिहाद’ कोई मसला है ही नहीं। ‘लव जिहाद’ तो बहाना है, जनता ही निशाना है। चूँकि भाजपा की मोदी सरकार जनता को रोज़गार नहीं दे सकती, महँगाई से छुटकारा नहीं दे सकती, खुले तौर पर अडानी-अम्बानी के तलवे चाटने में लगी है, और सिर से पाँव तक भ्रष्टाचार में लिप्त है, तो वह असली मसलों पर बात कर ही नहीं सकती, जो आपकी और हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करते हैं। अगर ‘लव जिहाद’ वाकई कोई मसला होता तो हाफपैण्टिये लम्पट गिरोह सबसे पहले शाहनवाज़ हुसैन, मुख्तार अब्बास नक़वी, सिकन्दर बख़्त, सुब्रमन्यम स्वामी व सुहासिनी हैदर के घर हमला करते, क्योंकि इनके पते तो इन दंगाइयों के पास हैं ही; उन्हीं की पार्टी से तो हैं ये लोग। लेकिन निशाना बनाया जाता है आम घरों से आने वाले युवाओं को जो धर्म और जाति की दीवारें तोड़कर एक-दूसरे से प्यार कर बैठते हैं; तब ये आपराधिक साम्प्रदायिक तत्व उन पर हमला करते हैं। क्यों?

क्योंकि मज़दूरों और मेहनतकश आबादी की सबसे बड़ी दुश्मन यानी मोदी सरकार और उसके पीछे खड़ा आरएसएस का संगठन एक ऐसी फ़ासीवादी राजनीति करते हैं जो जनता के बीच धर्म के आधार पर एक फर्जी डर पर आधारित है; जैसे कि आपको बताया जाता है कि मुसलमान ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं और इस वजह से एक दिन भारत में मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से ज़्यादा हो जायेगी। जब आप ठोस आँकड़े उठाकर हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच जन्म-दर की तुलना करते हैं, तो आप पाते हैं कि यह बकवास है। उसी प्रकार, आपमें यह डर बिठाया जाता है कि मुसलमान आपकी बीवी, बेटी, बहन आदि को भगा ले जायेंगे और उन्हें मुसलमान बना देंगे! और औरत कोई इन्सान तो मानी नहीं जाती! वह तो “जर, जोरू, ज़मीन” का ही एक हिस्सा है! इसलिए यदि हिन्दू पुरुष ने मुसलमान औरत से शादी की तब कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि आपने इन दकियानूसी विचारों के अनुसार किसी और की सम्पत्ति और इज़्ज़त को हथिया लिया! कुछ मुसलमान कट्टरपंथी भी इतने ही बेहूदा और दकियानूसी विचार रखते हैं। लेकिन यह पूरा डर ही बकवास है। भारत में प्राचीनकाल से ही अलग-अलग समुदायों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध बनते रहे हैं। उस समय उसके कारण राजनीतिक हुआ करते थे। पहले युद्धरत राज्य के राजा लोग आपस में वैवाहिक सम्बन्ध बना लेते थे, ताकि उनके बीच के रिश्ते सामान्य हो जायें। कई बार यह क्षेत्रों और स्त्रियों के आदान-प्रदान का अंग हुआ करता था क्योंकि सामन्ती दौर और सामन्ती दौर से पहले के दौर में भी स्त्रियों को सम्पत्ति ही समझा जाता है।

आधुनिक युग में प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच ने औरतों के बारे में इस घटिया समझदारी को ध्वस्त कर दिया। इसमें खुद हमने, यानी मेहनतकशों और मज़दूरों ने बड़ी भूमिका निभायी। लेकिन आज फ़ासीवाद हमारे सामने औरतों के विषय में उन्हीं अवैज्ञानिक, पिछड़े, दकियानूसी और ढकोसलेपंथी विचारों को फैलाकर अपनी गोटियाँ लाल कर रहा है। हममें से कई भाई-बहन भी इस फर्जी मसले में बह जाते हैं। लेकिन बहुत-से समझदार भाई-बहन ‘लव जिहाद’ जैसे फर्जी मसलों की सच्चाई को समझते हैं। वे अपने सर्वहारावर्गीय दृष्टिकोण से और सर्वहारा वर्ग के वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष के इतिहास से शिक्षा लेते हुए समझते हैं कि स्त्री कोई सम्पत्ति या माल नहीं है जिसे कब्ज़ा किया जाय, लूटा जाय, बेचा-ख़रीदा जाय। वह किसी की बहन, बेटी, बीवी, माँ ही नहीं है, बल्कि वह स्वयं एक व्यक्ति है, जिसके अपने विचार, अपनी भावनाएँ, अपनी स्वतन्त्रता है। किसी भी व्यक्ति के समान उसे भी यह तय करने का अधिकार है कि वह जीवन में कौन-सा पेशा अपनाये, किसे जीवन-साथी के तौर पर अपनाये, आदि। न तो उसकी इज़्ज़त व सम्मान उसके जननांगों में निहित है और न ही किसी समुदाय का सम्मान या इज़्ज़त उस समुदाय की औरतों के जननांगों में सीमित है। औरत के शरीर को हमेशा ही मज़दूरविरोधी राजनीतिक धाराएँ और आन्दोलन समुदायों के बीच की साम्प्रदायिक जंग का मैदान बना देते हैं। यही वजह है कि सभी दंगों में बलात्कार को किसी समुदाय को “सज़ा देने, अनुशासित करने, या सबक सिखाने” के लिए फ़ासीवादी और दक्षिणपन्थी दंगाई एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हिटलर और मुसोलिनी के फासीवादी आन्दोलनों ने भी यही किया था और आज संघी हाफपैण्टियों का फ़ासीवादी आन्दोलन भी यही कर रहा है। ‘लव जिहाद’ का पूरा मसला ही इन बेहूदा और पिछड़े हुए अवैज्ञानिक ख़यालात पर टिका है और एक फर्जी मसला है।

जब हम बेरोज़गारी और महँगाई तथा आर्थिक व सामाजिक असुरक्षा व अनिश्चितता से त्रस्त होते हैं, तो ऐसे बकवास मसले उठाकर हमारी आर्थिक-सामाजिक असुरक्षा को ग़लत तरीके से पेश करके फ़ासीवादी ताक़तें एक दूसरे किस्म की झूठी असुरक्षा को जन्म देती हैं। हमें एक पराये समुदाय (अन्य) का भय दिखाया जाता है, मसलन, मुसलमान बहुसंख्यक हो जायेंगे, “हमारी औरतों” पर कब्ज़ा कर लेंगे, हमारी ज़मीनें हथिया लेंगे, आदि। हिटलर ने यही काम यहूदियों के साथ किया था। तब भी वह झूठ था और आज भी मुसलमानों के बारे में संघ परिवार व मोदी सरकार द्वारा किया जा रहा यह प्रचार झूठ है और एक नक़ली डर पैदा करके एक नक़ली दुश्मन खड़ा करना मोदी सरकार और संघ परिवार की साज़िश है ताकि हम मज़दूर-मेहनतकश और आम मध्यवर्गीय लोग अपने असली दुश्मन, यानी सेठों-व्यापारियों-धनपशुओं के पूरे वर्ग और उनकी नुमान्दगी करने वाली मोदी सरकार को न पहचान सकें और धार्मिक उन्माद और नक़ली किस्म के भय में बहकर अपने ही मुसलमान भाइयों और बहनों के साथ सिर-फुटौव्वल करें। ओवैसी जैसे इस्लामी कट्टरपन्थी भी अन्दर ही अन्दर इस काम को अंजाम देने में भाजपाइयों के साथ हैं क्योंकि उनकी सिगड़ी भी तभी सुलगती है, जब संघियों का दंगाई तन्दूर गर्म होता है।

इसलिए मेरे दोस्तो, मेरे भाइयो, मेरी बहनो! ‘लव जिहाद’ की झूठी नौटंकी में बिल्कुल मत फँसना। यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने नहीं, बल्कि खड़ी कुल्हाड़ी पर कूदने के समान है। अपने असली मसले पहचानो: बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार, स्त्री-विरोधी अपराध, साम्प्रदायिकता। 2024 के चुनावों के पहले मोदी-शाह की जोड़ी धार्मिक उन्माद और अन्धराष्ट्रवाद भड़काने के लिए हर कोशिश करेगी क्योंकि उन्हें भी समझ में आ रहा है कि उनके सितारे गर्दिश में हैं। इसलिए अगर कोई नया पुलवामा काण्ड हो जाये, कहीं और आतंकवादी हमला हो जाये, सीमा पर अचानक पाकिस्तानी घुसपैठ हो जाये, फासीवादी नेता पर कोई जानलेवा हमला हो जाये (जिसमें तयशुदा तौर पर वह फ़ासीवादी नेता बाल-बाल बच जायेगा!), तो ताज्जुब मत कीजियेगा! जब भी भाजपा चुनाव हारने वाली होती है, तो ऐसा कुछ हो जाता है: मसलन, पहले भी संसद पर आतंकवादी हमला हो गया था, कारगिल में घुसपैठ हो गयी थी, गुजरात दंगे हो गये थे, दिल्ली में दंगे हो गये थे, और पुलवामा हमला हो गया था। माने कि जब भी भाजपा वाले दिल से कुछ चाहते हैं तो समूचा ब्रह्माण्ड उनकी इच्छा पूरी करने में लग जाता है, और जब भी वे चुनाव हारने वाले होते हैं, तो उसी समय आतंकवादी सोचते हैं कि क्यों न कोई हमला कर दिया जाय, उसी समय पाकिस्तान के हुक्मरान सोचते हैं कि बड़े दिन हो गये आज सीमा पर घुसपैठ कर देते हैं, या अचानक उसी दिन बरसों से आपस में प्यार से रह रहे हिन्दुओं और मुसलमानों में झगड़ा शुरू होता है और दंगा हो जाता है!

इसलिए आज जब कि मोदी सरकार की हालत पूरे देश में पतली होती जा रही है, तो आप भाइयों-बहनों से यह कहना चाहूँगी कि उपरोक्त किस्म की “आकस्मिक घटनाओं” के लिए 2024 के चुनावों के पहले तैयार रहियेगा और अगर ऐसी घटना होती है, तो मानकर चलियेगा कि इसके पीछे दाल में कुछ काला है। पुलवामा के मसले का सच तो सामने आ ही गया, आप स्वयं देख सकते हैं। एक बार बेवकूफ़ बनने वाले को मूर्ख कहते हैं लेकिन जो एक ही ट्रिक से बार-बार मूर्ख बने, उसे बुड़बक कहते हैं। आप बुड़बक तो हैं नहीं, हैं क्या?

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