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कश्मीर और उत्तर – पूर्व : अपने लोग या अपनी प्रापर्टी

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भारत जैन

कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल का दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारियों से संबंधित केन्द्र सरकार के अध्यादेश को संसद से पारित कानून बनने से रोकने के लिए सभी विरोधी दलों को लामबंद करने के प्रयास पर वक्तव्य दिया है कि जब कश्मीर से धारा 370 हटाकर कश्मीरी जनता के अधिकार छीने जा रहे थे तब केजरीवाल केन्द्र सरकार के साथ थे तो अपने अधिकार छिनने से बेचैन होकर अब औरों से क्यों समर्थन की आशा कर रहे हैं ? 

शायद शेष देश की इसी बेरूखी से क्षुब्ध होकर वे नितीश कुमार के गैर – भाजपाई दलों के प्रस्तावित जमावड़े में शामिल होने से भी इन्कार कर दिया है । कहा कि कश्मीर की पांच सीटों से क्या फ़र्क पड़ेगा । शायद बात वही है मन में कि कश्मीर की स्थिति से जब देश को फ़र्क नहीं पड़ता तो कश्मीर के लोगों भी शेष देश की घटनाओं से क्या फ़र्क पड़ता है । 

कश्मीर के लोगों के बारे में सबसे घटिया बयान हरियाणा के भाजपाई मुख्यमंत्री खट्टर का था जब उन्होंने धारा 370 के हटने को शेष भारत के पुरुषों के लिए कश्मीर की लड़कियों से विवाह करने की संभावना से जोड़ा था । ऐसा सम्मान और फिर भी कश्मीरी सदा शक के दायरे में ? 

उधर उत्तर – पूर्व के छोटे से राज्य मणिपुर के बुद्धिजीवी वहां लम्बे समय से चल रही हिंसा से शेष देश के लोगों की असंबद्धता से नाराज हैं । जब हिंसा मई के पहले सप्ताह में शुरू हुई तो गृहमंत्री कर्नाटक में चाणक्य का रोल निभा रहे थे और प्रधानमंत्री रोड शो में व्यस्त थे । गृहमंत्री तो महीने के अंत में गए परन्तु प्रधानमंत्री ने जाना तो दूर की बात कोई बयान भी नहीं दिया । एक टी वी इंटरव्यू में जे एन यू में एक वरिष्ठ मणिपुरी प्रोफेसर ने कहा कि उड़ीसा में हुई रेल दुर्घटना के घटनास्थल पर रेलमंत्री तुरन्त पहुंचे और प्रधानमंत्री भी पहुंच गए जिसपर एतराज नहीं परन्तु मणिपुर की इतनी उपेक्षा क्यों जबकि वहां हज़ारों लोग बेघरबार हो गए हैं ? क्या वे देश के दूसरे दर्जे के नागरिक हैं ? प्रश्न है कि ये घटना दुर्भाग्य से बिहार या उत्तर प्रदेश में होती तब भी सरकार , विपक्षी दल और जनता की यही प्रतिक्रिया होती ? 

वैसे भी भारत – पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के दौरान कश्मीरी मुस्लिम छात्रों से मारपीट की घटना होती रहती है । उत्तर- पूर्व के छात्रों को चिंकी कहकर मज़ाक उड़ाना और वहां के परम्परागत छोटे कपड़े पहने लड़कियों को सैक्स वर्कर समझना उत्तर भारत में सामान्य बात है । शेष भारत का ध्यान उनकी तरफ तभी जाता है जब कोई मेरी काॅम या चानू खेलों में मेडल जीतती हैं ।

इस तरह देश के कुछ नागरिकों को सम्मान ना देकर भी उनसे देशप्रेम की आशा करना क्या जायज़ है ? सवाल पूरे देश से है – क्या देश के कुछ भाग हमारे लिए केवल जमीन के टुकड़े ही हैं जहाँ के निवासियों की भावनाओं का हम सम्मान करें या ना करें परन्तु उनकी देशभक्ति में कमी नहीं आनी चाहिए  ? क्या देश एक निर्जीव प्रापर्टी है और तथाकथित देशभक्त प्रापर्टी डीलर ?

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