एक महातूफान हमारे तट से टकराने को बेकरार है। इसका वेग प्रलयंकारी है। असर अभी से दिखाई देने लगा है, लेकिन इसका प्रचंड स्वरूप अभी अरब सागर के तट से कोसों दूर है। मौसम विभाग का कहना है कि 15 जून को दोपहर के आसपास ये गुजरात के जखाऊ पोर्ट से टकराएगा। पोरबंदर में भारी बारिश शुरू हो चुकी है। कुछ लोगों की मौतें भी हुई हैं। मोचा ने एक महीने पहले बंगाल की खाड़ी में तबाही मचाई तो अब बिपरजॉय ठीक दूसरी तरफ यानी अरब सागर में लहरों को ऊंचा कर रहा है। कुछ लोग इसे बिपरजॉय भी बुला रहे हैं। अंग्रेजी में Biparjoy, बांग्ला नाम दिया है बांग्लादेश ने क्योंकि बारी उसकी थी। हिंदी में कहिए तो भीषण विपदा। तबाही तो चाहता कोई नहीं लेकिन आने वाले तूफान का नामकरण संस्कार की बकायदा अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया है। अमेरिका ए से जेड तक के अक्षरों के आधार पर बारी-बारी से लड़के और लड़कियों के नाम देता है। हिंद महासागर के लिए सन 2000 में नया सिस्टम बना। इसमें 12 देश शामिल हैं – बांग्लादेश, भारत, ईरान, म्यांमार, ओमान, मालदीव, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन। सभी 13 देश 13-13 नाम देते हैं। सन 2020 में 169 नाम दिए गए जिन्हें 13 लिस्ट में रखा गया। हर लिस्ट में 13 नाम। पहली लिस्ट का आखिरी नाम था मोचा। दूसरी लिस्ट का पहला नाम है बिपरजॉय। और आपको ये भी बता दूं कि दक्षिण एशिया में समंदर की लहरों से उठने वाली अगली तबाही का नाम होगा तेज। ये नाम हमारे देश ने ही दिया है।
कहां बना बिपरजॉय
इस तूफान का फॉरमेशन अरब सागर के मध्य -पूर्व हिस्से में बना है। सागर के ऊपर गहरे दबाव का क्षेत्र बना और ये डिप्रेशन साइक्लोनिक स्टॉर्म का रूप लेता गया। हमारे मौसम विभाग के सैटेलाइट्स ने छह जून को इसके संकेत दे दिए थे। लेकिन इससे पहले ग्लोबल फोरकास्ट सिस्टम और यूरोपियन सेंटर ऑफर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट ने भी आगाह कर दिया था। ये तूफान पूर्वोत्तर की तरफ बढ़ना शुरू हुआ। अगर मैप पर निगाह डालें तो ये गुजरात और कराची दोनों को हिट करेगा। अनुमान है कि आज यानी 14 जून से 15 जून के बीच 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलेगी जो भयानक तबाही मचा सकता है। हवा के साथ बारिश के कारण कच्ची बस्तियों पर खतरा ज्यादा है। लिहाजा दो लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया गया है। कच्छ में खतरा ज्यादा है। यहां अबडासा से विधायक प्रद्युमन सिंह जडेजा हैं। ये तूफान का रूट डायवर्ट करने के लिए समुद्र तट पर पूजा करने पहुंच गए। 1998 में आए भयानक तूफान के एक महीने बाद ही दूसरा तूफान गुजरात की तरफ रुख कर रहा था, लेकिन ऐन मौके पर इसकी दिशा बदल गई।
कैसे बनता है तूफान
1. बिपरजॉय एक ट्रॉपिकल स्टॉर्म है यानी उष्णकटिबंधीय तूफान। इसकी शुरुआत जबर्दस्त ह्यूमिडिटी यानी आद्रता से होती है। जब समंदर का तापमान 26 डिग्री से ज्यादा होता है तो पानी भाप बनकर ऊपर उठता है और ठंडी हवा के संपर्क में आकर घने बादल बनने लगते हैं। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई पांच किलोमीटर ऊपर तक हो सकती है।
2. जैसा कि आप इस चित्र में देख सकते हैं इस फॉरमेशन के केंद्र में बेहद कम दबाव का क्षेत्र बनता है। इस कॉलम के चारों तरफ हवा चलने लगती है।
3. जैसे-जैसे सेंट्रल कॉलम में दबाव घटता है, हवाई की स्पीड बढ़ने लगती है।
4. ट्रॉपिकल स्टॉर्म समंदर के ऊपर बनते हैं और तटीय इलाकों की तरफ तेजी से बढ़ते हैं। उत्तरी गोलार्ध में तूफान के दौरान हवा घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में चलती है। दक्षिणी गोलार्ध में सुई की दिशा में ही घूमती है।
तूफान तेरे कितने नाम
समंदर से उठ कर धरती पर तबाही मचाने वाले तूफान के चार नाम हैं। ये इलकों पर डिपेंड करता है।
1.हिंद महासागर में साइक्लोन
2. एटलांटिक महासागर में हरिकेन
3. प्रशांत महासागर में टाइफून
4. ऑस्ट्रेलिया में विली विलीज
कितने तैयार हैं हम
हमारा देश अदभुत है। कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ हम देखते रहते हैं। लगभग आठ प्रतिशत इलाका तूफान भी झेलता है। कुदरती तबाही से हमारी जीडीपी को दो फीसदी का नुकसान होता है। फिर भी हमारी तैयारी पूरी है। अमित शाह और पीएम मोदी खुद मीटिंग कर चुके हैं। हमारा नेशनल डिजास्टर प्लान तैयार है। एनडीआरएफ किसी भी स्थिति से निपटने के लिए मुस्तैद है।
कब-कब आया तूफान
गुजरात में 1891 के बाद सिर्फ पांच तूफान ऐसे आए हैं जब हवा की गति 89 से 117 किलोमीटर प्रति घंटे की हो – 1920, 1961, 1964,1996 और 1998. अगर पूरे देश की बात करें तो हर साल छोटे बड़े चार-पांच तूफान हम झेलते हैं। लेकिन 1970 के बाद आए कुछ विनाशकारी तूफानों की चर्चा आज कर लेते हैं
1. भोला (1970)- इसने बंगाल में भारी तबाही मचाई। तबका ईस्ट पाकिस्तान भी तबाह हो गया। लगभग तीन से पांच लाख लोग मारे गए।
2. BOB 01(1990)- 9 मई को आंध्र प्रदेश के तट से टकराया। इसमें 967 लोग मारे गए।
3. ओडिशा साइक्लोन (1999) – इस तूफान की याद आंखें नम कर देती हैं। 29 अक्टूबर को इसने ओडिशा के तटीय इलाकों में भारी तबाही मचाई। लगभग दस हजार लोग मारे गए। तूफान के बाद डायरिया और अन्य बीमारियों से हजारों लोग मारे गए।
4. निषा (2008) – इसने तमिलनाडु और श्रीलंका दोनों को चपेट में लिया। लगभग 200 लोग मारे गए।
5. फालिन (2013)- ओडिशा इस बार तैयार था। नवीन पटनायक ने पहले से तैयारी कर ली थी। इसलिए मरने वालों की संख्या सिर्फ 45 रही।
6. हुदहुद ( 2014)- आंध्र प्रदेश एक बार फिर तूफान का शिकार बना। 124 लोग मारे गए।
7.ओखी (2017)- इसने केरल, तमिलनाडु और गुजरात तीनों राज्यों में तबाही मचाई। लगभग 245 लोग मारे गए।