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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों में टकराव की आशंका

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स पी मित्तल, अजमेर 

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर सहमति जता दी है कि पश्चिम बंगाल में पंचायती राज चुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की जाए। सुप्रीम कोर्ट की यह सहमति मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की भावनाओं के खिलाफ है। ममता बनर्जी स्वयं मानती हैं कि पंचायती राज चुनाव शांति से करवाने के लिए पर्याप्त फोर्स नहीं है, इसलिए वे छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल आदि राज्यों से पुलिस फोर्स मंगवा सकती हैं, लेकिन ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में केंद्रीय बलों की तैनाती पर एतराज है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी सहमति दे दी है तो 8 जुलाई को होने वाले पंचायती राज चुनाव में केंद्रीय बल तैनात होंगे। पश्चिम बंगाल का र्विाचन विभाग तो ममता बनर्जी के इशारे पर ही नाच रहा है। अब जब केंद्रीय बल तैनात होंगे तो बंगाल में ममता बनर्जी की पुलिस के साथ टकराव की आशंका होगी। गत बार भी तुष्टिकरण और उकसावे की नीति के कारण ही सीआरपीएफ के जवानों को फायरिंग करनी पड़ी थी। सवाल उठता है कि जब हिंसा करने वालों पर ममता की पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करेगी तो केंद्रीय सुरक्षा बल क्या करेंगे? केंद्रीय सुरक्षा बल कहां तैनात होंगे, इसका निर्णय भी ममता बनर्जी का निर्वाचन विभाग करेगा। सवाल उठता है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों और ममता की पुलिस के बीच होने वाले टकराव का जिम्मेदार कौन होगा? इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी सतर्कता और सावधानी बरतने की जरूरत है। थोड़ी सी भी लापरवाही से हालात बिगड़ सकते हैं।

तुष्टिकरण की नीति:

सब जानते हैं कि तुष्टिकरण की नीति के कारण ही ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हैं। पंचायती राज चुनाव में नामांकन के समय भी हिंसा हुई। भाजपा कांग्रेस और वामपंथी दलों का आरोप है कि उनके उम्मीदवारों को नामांकन ही नहीं करने दिया गया। उपद्रवियों ने बम फेंक उम्मीदवारों को भगा दिया। अब 8 जुलाई को मतदान के दौरान भी ऐसा ही किया जाएगा। ममता के इशारे पर पुलिस भी उपद्रवियों के साथ रहती है। बंगाल में लगातार हिन्दुओं की हत्याएं हो रही हैं, लेकिन बंगाल पुलिस मूक दर्शन है। बंगाल के अडिय़ल रवैए ने भी हालातों को और बिगाड़ा। ममता बनर्जी स्वयं को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री समझने के बजाए, प्रधानमंत्री समझती हैं। देश के संघीय ढांचे की लोकतांत्रिक व्यवस्था में ममता का भरोसा नहीं है। मालूम हो कि गत वर्ष विधानसभा चुनाव में ममता को जीत मिलने पर तीन दिनों तक बंगाल में हिंसा हुई। कई मौतें भी हुई। यह हिंसा भी तुष्टिकरण का नतीजा ही थी। सवाल यह भी है कि ममता की तुष्टिकरण की नीति आखिर कैसे निपटा जाए?

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