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छोटा बच्चा जानके…चार नन्हें जांबाजों की कहानी

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अक्सर हम छोटी-छोटी मुश्किलों में बेचैन हो जाते हैं। बेचैन मन समस्याओं को विकराल बनाने में ही मदद करता है, उससे निपटने में नहीं। लेकिन हौसला कठिन से कठिन चुनौतियों को भी मात दे सकता है। बड़ी बात है कि कोई बच्चा हिम्मत से लबाबल हो सकता है और कोई बड़ा बिल्कुल डरपोक। अगर आप भी चुनौतियों के आगे तुरंत घुटने टेकने लगते हैं तो इन चार बच्चों से सीखिए। ये बच्चे बेहद खास हैं। इन्होंने उस बीमारी को मुंह के बल कर दिया है जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाते हैं। आइए, कैंसर को मात देकर जिंदगी का नया अध्याय जोड़ने वाले इन बच्चों से मिलिए…

अतुल सिंह राठौर- पिता ने छोड़ा, मां ने जान लगा दी

अतुल सिंह राठौर तब सिर्फ दो वर्ष का था जब पिता ने उसकी मां ममता राठौर को छोड़ दिया। अमूमन पति-पत्नी के बीच अनबन की सीमा पार होने के बाद ऐसा होता है, लेकिन यहां मामला अलग था। मासूम अतुल को कैंसर था। कहना ना होगा कि यह बीमारी किस तरह किसी को जीते जी मार देती है। फिर कैंसर पीड़ित ही क्यों, उसका परिवार भी तबाह हो जाता है। अतुल के पिता ने एक वक्त पर धैर्य खो दिया। उन्होंने पत्नी और बेटे को यह कहकर खुद से दूर कर दिया कि अब उनके पास ना अतुल के इलाज के लिए पैसे बचे हैं और ना धैर्य। सोचिए, क्या बीती होगी उस मां पर जिसका मासूम बेटा कैंसर से जूझ रहा है और पति ने हाथ खड़े कर दिए। उसने ना सिर्फ इलाज करवाने से इनकार कर दिया बल्कि साथ भी छोड़ दिया। लेकिन कहते हैं ना- समय सबसे बलवान होता है। 16 साल बाद अतुल सिंह राठौर एक मिसाल बन चुका है। वह बच्चा अब 18 वर्ष का युवा है। कैंसर के इलाज में उसे अपनी दाईं आंख गंवानी पड़ी। लेकिन जीवन के प्रति उसकी दृष्टि ऐसी है कि क्या कहने। 12वीं का छात्र अतुल न केवल आजीविका जुटाने में अपनी मां की मदद कर रहा है बल्कि दूसरे कैंसर पीड़ितों का भी हौसला आफजाई कर रहा है।

अतुल से सीखिए चुनौतियों से पार पाने की ‘कला’

कैंसर से उबरना आसान नहीं होता। अतुल के लिए भी यह सफर बहुत कठिन रहा। अतुल और उसकी मां ममता को अनिश्चितताओं के लंबे दौर से गुजरना पड़ा। अतुल का कहना है, ‘चूंकि मुझे रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर था, इसलिए मुझे पता है कि कैंसर पीड़ित किस डर और चिंता से गुजरते हैं। लेकिन मुझे यह भी पता है कि इस बीमारी से निजात पाना संभव है।’ उसने कहा, ‘मैंने अपने अनुभव से सीखा है कि सकारात्मक रुख, हंसी और रचनात्मकता कैंसर के खिलाफ लड़ाई में काफी ताकतवर औजार का काम करते हैं। एक कवि, स्टैंड-अप कमीडियन, लेखक और एक्टर के रूप में मुझे लगता है कि कला के जरिए खुद को व्यक्त करने से मुझे कैंसर की चुनौती से निपटने के साथ-साथ कठिनाइयों के बावजूद जीवन का आनंद उठाने में काफी मदद मिली।’ अपनी मां के लिए कुछ बोलते हुए अतुल की भावनाएं उमड़ने लगती हैं। वो कहता है, ‘पिता ने छोड़ दिया तो मां मुझे लेकर ग्वालियर से दिल्ली आ गईं। मेरा इलाज कभी नहीं रुका।’

कपिल ने दी कैंसर को मात

अतुल की तरह ही कपिल की कहानी भी काफी भावुक है। उत्तर प्रदेश के खुर्जा का कपिल कुमार कैंसर पीड़ित है। यह छह वर्ष का बच्चा पिता प्रेम सिंह के साथ एक साल से दिल्ली में है। कपिल यह सोचकर फूला नहीं समा रहा है कि अब वो दोबारा स्कूल जा सकता है क्योंकि उसका इलाज लगभग पूरा हो चुका है। कपिल के पिता प्रेम सिंह बताते हैं, ‘स्कूल ने कैंसर की वजह से उसे एडमिशन देने से इनकार कर दिया था। दरअसल, कैंसर के कारण सिर का बांया हिस्सा सूज गया था।’

हा हा हा! इस नादान से हार गया कैंसर

उत्तर प्रदेश का अर्णव गौतम तो महज ढाई साल का है। हापड़ा निवासी अर्णव का इलाज दिल्ली के एम्स अस्पताल में चल रहा है। 5 जून को चाइल्डहुड कैंसर सर्वाइवर डे के दिन हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) ने एम्स का दौरा किया। वहां अर्णव खेल रहा था। उसके चाचा आनंद प्रकाश ने टीओआई से कहा कि परिवार में किसी को अब तक कैंसर नहीं हुआ था। अर्णव को जब कैंसर का पता चला तो हड़कंप मच गया। हम बुरी तरह घबरा गए थे। हालांकि, एम्स में दूसरे कैंसर पीड़ितों के परिजनों से बातचीत करके जान में जान लौटने लगी। जब एक के बाद एक लगातार ऐसे लोग मिलते गए जिन्होंने सकारात्कक बातें कीं तो लगा कि कैंसर से लड़ा जा सकता है।

वीरांगना स्निति की कहानी तो मुर्दे में जान ला दे!

12 साल की स्निति दुबे की आठवीं कक्षा की छात्रा है। उसका अपना यूट्यूब चैनल है- मास्टर फ्रेंच विद स्निति। इस बच्ची के साथ कैंसर लुकाछिपी का खेल खेल रहा है। स्निति कैंसर से उबर चुकी थी, लेकिन अब पता चला है कि इस वर्ष बीमारी फिर लौट आई। स्निति का सौभाग्य है कि पिता जुगल किशोर दुबे एम्स में ही टेक्निकल ऑफिसर हैं। उसने कहा, ‘मैं तो कैंसर फ्री हुआ करती थी, लेकिन इसने दोबारा मुझे घेर लिया। मैं हर किसी को यह कहना चाहती हूं कि वो सभी कैंसर मरीज को इस बीमारी से उबरने में मदद करें। किसी के पीछे खड़े होने के अहसास से इस भयावह बीमारी से लड़ने में काफी हौसला मिलता है। इसी वजह से मैं इस कठिन वक्त में भी मुस्कुरा पाती हूं।’

फिर हारेगा कैंसर, स्निति कहां बख्शने वाली!

स्निति को भी अतुल की तरह ही रेटिनोब्लास्टोमा ही है। जब वो सिर्फ चार महीने की थी तभी उसकी दोनों आखों में इसके लक्षण मिले थे। एम्स के डॉक्टरों ने स्निति की बाईं आंख तो बचा ली, लेकिन इस मासूम को अपनी दाहिनी आंख खोनी पड़ी। जुलाई 2021 तक वह बिल्कुल सामान्य जिंदगी जी रही थी, लेकिन अचानक उसके बाएं पैर में कैंसर मिल गया। 2022 में बोन मैरो ट्रांसप्लांट से यह ठीक हो गया तो अप्रैल में फिर से यह बीमारी लौट आई। लेकिन स्निति की हिम्मत के सामने फिर कैंसर को हारना ही पड़ेगा।

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