डॉ.अभिजित वैद्य
२८ मई २०२३ स्वतंत्र भारत के जनतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन माना जाएगा l इस दिन नरेंद्र
मोदी नामक एक अहंकारी तथा मनमौजी राजाने दिनदहाड़े हिंदू मंत्रघोष में राजदंड अपने माथे पर
लगाकर भारतीय जनतंत्र की हत्या की और स्वयं को जैसे सम्राट समझकर राज्याभिषेक करवाया l भारत
की गुलामगिरी की हर चिन्ह ख़ारिज करने की शपथ अपनानेवाले इस राजाने; घिनौने दिखनेवाले
तथाकथित हिंदू साधूओं के सम्मुख नतमस्तक होकर नई संसद का उदघाटन किया l मनुस्मृति पर आधारित
राज्य की दिशा की ओर देश चल रहा है, ऐसी ही मानो यह घोषणा थी l स्वाभाविकतः देश के सर्वोच्च पद
पर आसनस्थ आदिवासी महिला को, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूजी को उदघाटन का संविधानयुक्त
सन्मान तो दिया ही नहीं अपितु प्रवेश भी निषिध्द था l इस मनुस्मृति ने ही हमारी देश की महिलाओं को
सैंकड़ो वर्षों से शूद्रों की कतार में बिठा दिया और ज्ञानबंदी की l यह मनुस्मृति, हिंदुत्ववादी तथा उनका
नेतृत्त्व करनेवाली आर.एस.एस. को आजही २१ वी शती में वंदनीय है l तमिलनाडू के चोला साम्राज्य की
परंपरा का डंका बजाकर, राजदंड के पीछे से बिना आहट के संविधान के स्थान पर इस मनुस्मृति की
प्रतिष्ठापना करने का यह छुपा प्रयास है l यह प्रतिष्ठापना किसी वर्ण से शुद्र महिला द्वारा करना मनुस्मृति
को मंजूर नहीं हो सकती l इस राज्याभिषेक तथा राजदंड की प्रतिष्ठापना समारोह को आशीर्वाद देने के लिए
आलीशान चार्टर्ड फ्लाईट द्वारा, खासतौर पर दक्षिण भारत से लाए गए तुंदीलतनू महंतों को भी यह स्वीकृत
होना संभव नहीं था l पुलवामा में हुतात्मा हुए जवानों को ढाई सौ कि.मी. ले जाने के लिए सरकार द्वारा
हवाई जहाज नाकारे गए लेकिन महंतों के लिए हवाई जहाजों का प्रबंध किया गया l धर्मनिरपेक्षता की
रक्षा करने की जिम्मेदारी अपनानेवाले देश के सांसद की नई इमारत का उदघाटन जिस पध्दति से हुआ यह
देखकर अप्रत्यक्ष तौर पर यह हिंदू राष्ट्र की धर्मसांसद का तो उदघाटन नहीं है ? ऐसा महसूस होने लगा l
मूलतः पुराने सांसद की इमारत होते हुए हजारों-करोडों रूपए खर्च करने कि कोई आवश्यकता नहीं थी l
इस इमारत के स्थापत्यविशारद गुजरात के हैं, जिन्हें इस काम के लिए २३० करोड़ रुपयों की फ़ीस दी गई l
देश की सांसद जनता की इच्छाओं तथा आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्त्व करती है l वह जनता की आवाज है l
सभी लिंग, पंथ, धर्म, जाती, भाषा तथा संस्कृति को न्याय प्रदान करनेवाला यह मंच है l मोदी एवं उनके
मित्रपक्षों ने विरोधी पक्षों को कुचलने का अखाडा ही सांसद को बनाया है l स्वयं प्रधानमंत्री तो सांसद में
क्वचित आते हैं l और आ भी गए तो छिछलेपन से विरोधों की केवल खिल्ली उड़ानेवाले तथा उपहास
करनेवाले भाषण करते हैं l उनके इस बरताव से सांसद भी अर्धहीन बनी थी l अगर ऐसा है तो नई सांसद
इस अहंकारी राजा की आवश्यकता थी, जनता की नहीं l तानाशाह को हमेशा अपना नाम इतिहास में
कुरदने के लिए भव्य-दिव्य वस्तुओं को निर्माण करने की आवश्यकता होती है या जंग छेड़ने की l सरदार
वल्लभभाई पटेलजी का गगनचुंबी पुतला, निर्माण होनेवाला भव्य राममंदिर और इससे पहले यह इमारत l
जनता के लिए पाठशालाओं, अस्पतालों का निर्माण करना आदि बातों का सत्ताधारी लोगों को महत्त्वपूर्ण
नहीं लगता l गुलामगिरी का चिन्ह ऐसी मुहर लगाकर पुरानी वास्तुओं को नष्ट करके राजा ने नई भव्य-
दिव्य वास्तु खड़ीकर दी l यह वास्तु दिल्ली स्थित स्वामीनारायण पंथ के अक्षरधाम की याद दिलाती है l
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यह देश हिंदुराष्ट्र है और अन्य धर्मियों को इस देश में स्थान नहीं है यह बात यह वास्तु स्पष्टता से बताती है l
इस वास्तु में नेहरु, पटेल, सुभाषबाबू, भगतसिंग इनकी तस्वीरें तो छोड़ो लेकिन गांधी, आंबेडकर की भी
तस्वीरें नहीं है l जनतंत्र का प्रतिक हुए इस सांसद का उदघाटन माफिवीर तथा तानाशाही एवं बलात्कार के
समर्थक सावरकर की १४० वीं जन्मतिथि पर किया गया l सवारकर ने हिटलर तथा उनके नाझी पक्ष को
खुलेआम समर्थन दिया था l सावरकर ने अनेक अंग्रेजी शब्दों को मराठी विकल्प दिए है ऐसी डींग
हाँकनेवाले उनके भक्तों को इस वास्तु का नामकरण करने के लिए संस्कृत या हिंदी भाषा में शब्द न मिलने
के कारण विदेशी भाषा के आधार पर इसका ‘सेंट्रल व्हिस्टा’ ऐसा नामकरण करना पड़ा l अर्थात गुलामगिरी
का चिन्ह मिटाने के लिए आवश्यकता न होने पर भी हजारों-करोड़ों रूपए फुजूल खर्ची करके वास्तु निर्माण
करने की और उसका नाम गुलामी की याद दिलानेवाला ! मोदी एवं अमित शाह का दक्षिण एवं ईशान्य
भारत पर हिंदी लादने का प्रयास है l उन्होंने ही वैद्यकीय पाठ्यक्रम हिंदी भाषा में शुरू करने का अपरिपक्व
एवं घातक उद्योग किया है l लेकिन यहाँ पर उन्होंने अंग्रेजी के सम्मुख शरणागती ली l
सेंगोल तमिल भाषा का शब्द है l इसका अर्थ है राजदंड l दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य में राजा जब
उत्तराधिकारी घोषित करता था तब यह राजदंड उसकी ओर सौंप दिया जाता था l यह राजदंड न्याय पर
आधारित, निरपेक्ष एवं नीतिमान शासन का प्रतिक माना जाता था l यह राजदंड वैभव का भी प्रतिक माना
जाता था l कुछ इतिहासकारों के मतानुसार मौर्य एवं गुप्तवंश के राज्यों में भी इसतरह के राजदंड का
उपयोग किया जाता था l महाभारत में राजा युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय ऐसा ही राजदंड इस्तेमाल
किया जाता था l इस राजदंड की रक्षा करना राजा का धर्म माना जाता था l धर्म एवं अर्थ की रक्षा करना
राजदंड का कर्तव्य माना जाता था l यह राजदंड सजा देने का अधिकार राजा को देता था l लेकिन राजदंड
जिस धर्म का प्रतिक मन जाता था उस धर्म को राजा को सजा देने का अधिकार था l इसका एहसास
दिलाकर राजपुरोहित इस राजदंड को राजा की ओर सौंप देते थे l
नए सांसद के उदघाटन के समय अमित शाह ने इतिहास की फिर एक बार तोड़-फोड़ करके एक रंजक कथा
रचाई l यह कथा इस प्रकार – ‘भारत को स्वतंत्रता प्रदान करते समय लॉर्ड माउंटबॅटन उलझन में पड़े की
सत्ता हस्तांतर का प्रतिक क्या माना जाए ? नेहरूजी की सलाह के अनुसार चक्रवर्ती राजगोपालाचारीजी
से पूछा गया l दक्षिण भारत की संस्कृति का विशेषतौर पर ज्ञान जिन्हें हैं उस राजाजी ने यह प्रतिक प्राचीन
भारत में सेंगॉल याने राजदंड माना जाता था ऐसा कहा l चेन्नई के प्रसिध्द सुवर्णकार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी
के पास माथे पर नंदी-वृषभ धारण किया हुआ पाँच फिट का सोने का सेंगोल तैयार करने की जिम्मेदारी
सौंप दी गयी l तमिलनाडू में नंदी, न्याय एवं सुशासन का प्रतिक माना जाता है l यह सेंगोल देने के लिए
राजाजी ने थिरुवावदुथूरई के २० वें गुरु महासन्निधानमश्रिला श्री अंबलवाण देसिगर स्वामी का चयन
किया l सेंगोल तैयार होने पर उन्होंने उसे लॉर्ड माउंट बॅटन की ओर तमिल जनता की ओर से भेज दिया
और उन्होंने उसे १४ अगस्त १९४७ की आधी रात को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरूजी को सुपूर्द
किया l यह सेंगोल अंग्रेजों की ओर से भारत की ओर किए गए सत्तांतर का प्रतिक माना गया’ l इस कथा पर
जनता विश्वास रखे इसलिए एक झूठा वृत्तचित्र भी तैयार किया गया l
महात्मा गांधी तथा राजाजी के पोते – महान इतिहासकार राजमोहन गांधी ने अमित शाह की इस कहानी
को साफतौर पर दुतकार दिया l उनके कहने के अनुसार शैव महंतों ने सेंगोल तैयार करके शोभायात्रा के
जरिए नेहरूजी के निवासस्थान पर जाकर उन्हें दे दिया l यह सेंगोल लेकर मद्रास की रेलगाड़ी में बैठनेवाले
इस साधुओंका का छायाचित्र ‘दी हिंदू’ नामक समाचारपत्र को प्राप्त हुआ है I सेंगोल को उन्होंने प्रथम लॉर्ड
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माउंटबॅटन के हाथों में सौंप दिया और उनकी ओर से तुरंत वापस लेकर नेहरुजी को दिया इस बात का भी
कोई गवाह नहीं है l नेहरूजी ने इस सेंगोल की प्रतिष्ठापना ना सांसद में की और ना ही मंत्रालय में l अपितु
इसकी रवानगी अलाहाबाद वस्तुसंग्रहालय में की l ऐसा होते हुए भी तमिलनाडू के डी.एम.के पक्ष के
संस्थापक अध्यक्ष सी.एन. अन्नादुराई ने यह सेंगोल राज्यव्यवस्था का प्रतिक है जनतंत्र का नहीं ऐसा इशारा
दिया l पहले स्वतंत्रता दिन के पूर्व, देश के प्रधानमंत्रीजी को पूरे देश में से विविध संस्थाओं, संघटनाओं की
ओर से अनेक उपहार प्राप्त हुए l अतः नेहरूजी ने यह उपहार अपने निवासस्थान पर किसी भी प्रकार का
अधिकृत समारोह न करते हुए स्वीकृत किया और तुरंत अलाहाबाद के वस्तुसंग्रहालय में भेज दिया l
आजतक यह सेंगोल वहीं पर ही पड़ा हुआ था l
नए सांसद के उदघाटन के समय पर मोदीजी की ओर से वस्तुसंग्रहालय में पडे हुए इस सेंगोल को लाने का
प्रबंध किया गया और शैवपंथी महंतों ने उसे मोदीजी के हाथों में दिया l भक्तिभाव से इस सेंगोल को
मोदीजी ने अपने माथे को लगाया और राज्यव्यवस्था का प्रतिक यह सेंगोल देश की जनतंत्र की रक्षा
करनेवाले लोकसभा सभापति के आसन के बाजू में इसे स्थापित किया l मूलतः राजेशाही का प्रतिक
लोकशाही में लाना कालबाह्य नहीं अपितु जनतंत्र एवं संविधान विरोधी है l तमिलनाडू के चुनाव सम्मुख
रखकर तमिल जनता को खूष करने के लिए इस सेंगोल को लाना था तो उसे लोकसभा के सभापति के हाथों
में क्यों नहीं दिया ? ऐसा सवाल उठता है l लेकिन सच में प्रश्न ऐसा भी उत्पन्न होता है की तथाकथित
‘राजपुरोहितों’ ने यक़ीनन किस सत्तांतरण का प्रतिक मानकर यह राजदंड राजा मोदीजी के हाथों में दिया?
सत्ता में भी मोदी और सत्तांतरण का प्रतिक स्वीकृत करनेवाले भी मोदी l इसका सही गर्भितार्थ यह है की
जनतंत्र की ओर से हिंदू राष्ट्र की ओर होनेवाले सत्तांतरण का प्रतिक के रूप में सेंगोल को बस्ते से निकाल
दिया गया l इस हिंदू राष्ट्र के सम्राट के रूप में मोदीजी को आसनस्थ किया गया और सेंगोल का पातक
नेहरूजी के माथे पर चढाया गया l
न्याय एवं नैतिकता का पारंपारिय प्रतिक है यह सेंगोल, राजदंड, जनतंत्र एवं भारतीय संविधान के सभी
संकेत दुतकार कर नरेंद्र मोदीजी ने उसे स्थानापन्न किया l उसी दिन अन्याय एवं अनैतिकता के विरुध्द
न्याय माँगनेवाली भारतमाता की पहलवान कन्याओं को उनकी पुलिस ने कुचल डाला l राष्ट्रिय कुस्ती
महासंघ के अध्यक्ष बाहुबली एवं भाजपा सांसद ब्रिजभूषण शरणसिंग के लैंगिक गैरवर्तन के विरुध्द साक्षी
मलिक, फोगाट आदि पहलवान कन्या न्याय माँगने के लिए गत महीने से राजधानी दिल्ली के जंतरमंतर के
पदपथ पर आंदोलन करके बैठ गई हैं l प्रधानमंत्री तो नहीं अपितु सत्ताधारी भाजपा के किसी ने भी इन
कन्याओं की ओर देखा भी नहीं l मोदीजी के अंधभक्तों ने तो अधमता की ऊँचाई को छुकर उन्हें घटिया
शब्दों में हमेशा ट्रोल किया l इसमें महिलाओं का भी समावेश हैं यह बात लज्जायुक्त है l हम स्वयं आरोग्य
सेना की ओर से दिल्ली में जाकर उनका समर्थन करके आए l लेकिन नए सांसद भवन के उदघाटन के दिन
इसकी सिमाएँ पार हुई l भारतमाता की गर्दन विश्व में उठानेवाली इस पहलवान महिलाओं की गर्दन सेंगोल
के सम्मुख लज्जा से झुक गई l राजदंड धनवानगुंडों के सम्मुख लाचार हो गया l यह राजदंड धारण
करनेवाला विश्वगुरु और अब हिंदूराष्ट्र सम्राट, ब्रिजभूषण शरणसिंग जैसे सामान्य गुनाहगार के साम्राज्य के
आगे झूक गया l राजदंड ने जनतंत्र की खुलेआम रास्ते में हत्या की अर्थात नरेंद्र मोदी के सत्ता कालके दीर्घ
कालावधि में अपने पक्ष को या पक्ष के किसी व्यक्ति को उसपर कितने भी गंभीर आरोप हो – आज तक
किसी भी प्रकार की सजा नहीं कीई l अपितु इन सभी लोगों को कुछ भी करके बचाने के प्रयास किए है l
जब यह संभव नहीं हुआ तब न्यायव्यवस्था को भी झुका दिया और उन्हें निर्दोष मुक्त करने की व्यवस्था की
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गई l बाहर आने पर उनके सत्कार किए गए l अनेकों पर पदों की बौछार की गई l यह मोदीजी पर है संघ
का संस्कार ! हिंदुत्व, एवं मुख्यतौर पर ब्राम्हणत्व का पुरस्कार करनेवाली व्यक्ति के सभी गुनाह माफ़ किए
जाते हैं ऐसी ही हिंदुत्ववादीयों की परंपरा है l इतना ही नहीं ऐसे व्यक्तियों का उदात्तिकरण किया जाता है
और इतिहास उन्हें गौरवान्वित करेगा ऐसी भी व्यवस्था की जाती है l जो हिंदुत्व का एवं ब्राम्हणत्व का
विरोध करता है उसे गुनाहगार ठहराया जाता है l मोदीजी ने २१ वीं सदी में अपने देश में ‘राजदंड’ जो
प्रस्थापित किया इस परंपरा को धर्म का अधिष्ठान देने के लिए, भारत का जनतंत्र मजबूत करने हेतु नहीं l