,मुनेश त्यागी
पूरी दुनिया समेत, हमारे समाज में भी भगवान के बारे में कहा जाता है कि वह सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापी है, सबसे सुंदर है, सबसे ताकतवर है, सर्वज्ञ है, सबसे दयालु है, न्याय कर्ता है, सर्व व्याप्त है, वह कण-कण में और घट घट में मौजूद है।
इसी के साथ साथ जब हम पूरी दुनिया और समाज में शोषण, दमन, भेदभाव, अन्याय, गरीबी, भुखमरी, हिंसा, मारकाट, अपराध, युद्धों की विभीषिका, समाज में फैली ऊंच-नीच और अमीरी गरीबी की खाई भयंकर रोग से व्याप्त गरीबी और साधनहीनता देखते हैं और वहीं पर दूसरी तरफ देखते हैं कि एक अमीर वर्ग, देश और पूरी दुनिया पर शासन और कब्जा करना चाहता है। वह सब कुछ का मालिक है, उसके लिए स्वर्ग यहीं मौजूद है। तब लगता है कि ये सारे अत्याचार, शोषण, दमन, अन्याय, गरीबी और अमीरी, सब के सब मानव निर्मित है और इसमें भगवान की कोई भूमिका नहीं है। यहीं पर लगता है कि यह सब कुछ उस भगवान के नाम पर किया जा रहा है जो सिर्फ और सिर्फ एक हसीन काल्पना है और वह दुनिया में कहीं मौजूद नहीं है।
पिछले कई दिनों से हम भगवान के ऊपर लिखी गई बहुत सारी कविताओं पर विचार कर रहे थे। बहुत समय पहले से हमारे कई विचारक, लेखक, दार्शनिक, कवि, शायर और साहित्यकार भगवान के ऊपर अपने लेखों और कविताओं के माध्यम से विचार विमर्श करते रहे हैं। कईयों ने तो भगवान के अस्तित्व पर ही सवाल उठाए हैं।
हमारी आज की दुनिया में इतने सारे ज्ञान-विज्ञान के बाद भी, बहुत सारे लोग भगवान में विश्वास करते हैं। वहीं दूसरी ओर बहुत सारे लोग भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाते रहे हैं। जब हम आज दुनिया और समाज में घट रही बहुत सारी चीजों के बारे में सोचते विचारते हैं जैसे ओला, पाला, गर्मी, लू, आंधी, तूफान, बाढ़, मक्खी, मच्छर, बहुत सारे विषय ले जीव जंतु, टायफून, चक्रवात, टी सीटीसी मक्खी जिसके काटने से आदमी मर जाता है और सारी की सारी बिमारियां जैसे हालात,भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाते रहते हैं।
बहुत सारे लेखकों, दर्शकों, दार्शनिकों और कवियों ने भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाए हैं जैसे गौतम बुद्ध, महावीर, चार्वाक, कोपरनिकस, ज्यार्दन ब्रूनो, डार्विन, कार्ल मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, आइंस्टीन, शहीदे आजम भगत सिंह, अंबेडकर, नंबूद्रीपाद, बीटी रणदिवे, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, बाल्मीकि, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद, पेरियार, दुनिया के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग आदि आदि सैकड़ों करोड़ों, अरबों लोगों ने भगवान की मौजूदगी को कभी स्वीकार नहीं किया और आज भी ये सब सर्वशक्तिमान भगवान की मौजूदगी पर बड़े बड़े सवाल खड़े रहे हैं।
भगवान और धर्म, हमारे समाज की सोच और मानसिकता का हजारों साल से अभिन्न हिस्सा रहे हैं। बहुत सारे लोग इन पर चर्चा करते आए हैं। आज हमारे समाज में जिस तरह से अंधविश्वास फूल-फल रहे हैं, जिस तरह से धर्मांधता को बढ़ाया जा रहा है और अभी और अभी हाल फिलहाल में, जिस तरह से हमारी सरकार द्वारा डार्विन के विकासवादी सिद्धांत को पाठ्यक्रमों से हटाया गया है, जिस प्रकार से बच्चों की समझ को जानबूझकर, विकृत करने की और सवाल न उठाने की प्रक्रिया और समझ पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। इन सब को लेकर, इन पर चर्चा की जानी चाहिए।
मगर यहां पर यह ख्याल जरूर रखना चाहिए कि बहस में या लेखन में, भगवान या धर्म का एकदम निरादर, अपमान या खिल्ली न उड़ाई जाए। इन पर सोच समझकर विचार विमर्श किया जाए, क्योंकि ये दोनों विचार, जनता के दिलों दिमाग में बहुत गहरे से पैंठ बनाए हुए हैं। बहुत दिनों से मानवीय समाज इनमें विश्वास करता चला रहा है, मगर वहीं इनके खिलाफ आवाजें भी उठती रही हैं, वरना भगवानजीवी दुश्मन वर्ग, हमारे खिलाफ इनका भयंकर दुरुपयोग और गलत इस्तेमाल करेगा और जनता की मुक्ति और ज्ञान विज्ञान बढ़ाने के हमारे अभियान में, रोड़े अटकाएगा और उसको और ज्यादा मुश्किल बना देगा।
हमारे देश के बहुत सारे लेखकों और कवियों ने भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाए हैं, जिन्हें हम यहां पर पेश कर रहे हैं,,,,
कबीरदास ने सबसे पहले अपने दोहों के माध्यम से मंदिर मस्जिद और भगवान और खुदा पर सवाल उठाए थे। वे कहते हैं,,,,
पाहन पूजे हरि मिलें तो मैं पूंजू पहार
या ते तो चाकी भली पीस खाए संसार।
वे अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं,,,
कांकर पाथर जोड़ि के मस्जिद नई चुनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय?
फिराक गोरखपुरी कहते हैं,,,,
हो जिन्हें शक वो करें, और खुदाओं की तलाश
हम तो इंसान को ही, दुनिया का खुदा कहते हैं।
अगले कवि कहते हैं,,,,
वर्गों की उत्पत्ति से जन्मा
भगवान किसी को क्या देगा,
अवलंब व्यवस्था है जिसकी
वरदान किसी को क्या देगा?
बाल्मीकि कहते हैं कि,,,,,
जो कायर हैं, जिनमें
पराक्रम का नाम नहीं है,
वही किया करते हैं
भगवान पर भरोसा।
जन्नत की हकीकत के बारे में ग़ालिब क्या कहते हैं, आइए देखते हैं,,,,,
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल बहलाने को ग़ालिब, ये ख्याल अच्छा है।
अगले शायर क्या खूबी से कहते हैं,,,,
आसमानों से उतरते हैं पयम्बर ना किताब
आसमानों में कुछ भी नहीं अंधेरों के सिवाय।
कैफी आज़मी कहते हैं,,,,,
एक के बाद एक बनकर
चला आता है खुदा यहां,
दिल ने आखिर कह ही दिया
यहां पर तो खुदा कोई भी नहीं।
दूसरे शायर बखूबी कहते हैं,,,,
अगर नाखुदा डुबोता तो कोई बात नहीं
हम तो डूबे हैं सनम, खुदाओं पर भरोसा करके।
स्वर्गीय बृजपाल ब्रज कहते हैं,,,,
जो दूसरों के भवन बनाएं
उनकी अपनी छान नहीं है,
जो बेशकीमती पलंग बनाएं
उनकी खटिया में बाढ़ नहीं हैं।
यह विसंगति और दुर्दशा देख
सारे मेहनतकश इंसानों की,
मुझको ऐसा लगता है कि
दुनिया में भगवान नहीं है।
जनवादी लेखक मुनेश त्यागी कहते हैं,,,, अंधविश्वास फैलाए जो समाज में
हम ना ऐसे ज्ञानवान बनें,
बौना बनाए जो मानव को
हम ऐसे ना भगवान बनें।
वे आगे कहते हैं,,,,,
जो काटे हैं शंभू का सर
जो करे है सीता का निष्कासन
जो चुराए है गोपियों के वसन
जो कराए कुरुक्षेत्र में
अपनों के सर कलम,
ऐसे भगवान को
ऐसे रामराज को,
मैं नहीं मानता,
मैं नहीं मानता।
प्रगतिशील कवि रामगोपाल भारतीय भगवान से कई सारे सवाल पूछते हैं,,,
न सच, न पूण्य, यहां झूठ, पाप, बिकता है
पढा है हमने किताबों में, मेहरबां तुम हो,
सवाल ये भी है, चुपचाप तू खड़ा क्यों है?
कभी धर्म पे, कभी जात पे, यह झगड़ा क्यों है?
तुम्हीं ईसाई हो, हिंदू हो, मुसलमान हो
मैं कब से ढूंढ रहा हूं, कहो, कहां तुम हो?
अपने लेख “मैं नास्तिक हूं” में शहीद-ए-आजम भगतसिंह भी भगवान की मौजूदगी पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं,,,,,
तुम्हारा सर्वशक्तिमान ईश्वर, इंसान को उस वक्त क्यों नहीं रोकता, जब वह कोई पाप कर रहा होता है?”
वर्तमान ज्ञान विज्ञान की रिसर्च होने के बाद दुनिया के बहुत सारे देशों ने जैसे न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, स्वीडन, हॉलेंड, स्वीटजरलैंड आदि देशों ने अपने को नास्तिक देश घोषित कर दिया है। ज्ञान विज्ञान की उपलब्धता के कारण और वहां की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था सुधारने के बाद, वहां पर अपराध कम कर हो गए हैं, कई देशों में जेलें बंद कर दी गई हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें भी इन समस्त परिस्थितियों पर विचार विमर्श करते रहना चाहिए। इनसे भागने की या क्रोध करने की, कोई जरूरत नहीं है। यह ज्ञान विज्ञान का मामला है। इस पर बहस जारी रहनी चाहिए।
यह भी सर्वविदित है की दुनिया में ज्ञान विज्ञान आने के बाद ही, आधुनिक दुनिया का उदय हुआ। इसी ज्ञान विज्ञान के आधार पर अंधविश्वासों और धर्मांधताओं का अंत किया गया और देखते ही देखते यूरोप के देश, अमेरिका कनाडा जापान चीन रूस वियतनाम कोरिया क्यूबा ब्राजील मेक्सिको चिल्ली आदि देश विकास के मार्ग पर चल पड़े। हमारा मानना है कि हमारा देश भी अंधविश्वासों और धर्मांधताओं का परित्याग करके और ज्ञान विज्ञान के मार्ग पर चलकर ही विकास कर सकता है।