मप्र में भाजपा ने गुजरात की तरह रिकॉर्ड जीत दर्ज करने के लिए चुनावी रणनीति के साथ टिकट वितरण का फॉर्मूला भी लगभग तैयार कर लिया है। इसके तरह पार्टी केवल जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट देगी। यानी जो नेता पूर्व में चुनाव हार चुके हैं, उन्हें टिकट मिलना मुश्किल है। वहीं जिन मंत्रियों, विधायकों की सर्वे में रिपोर्ट अच्छी नहीं रहेगी, उनका भी टिकट कट सकता है। इसकी वजह यह है कि पूर्व के विधानसभा चुनावों में पार्टी के कई विधायकों के साथ ही कुछ मंत्रियों को भी हार का सामना करना पड़ा था। इसलिए भाजपा के रणनीतिकारों ने टिकट वितरण का जो प्लान तैयार किया है, उसके अनुसार हरल्लों के टिकट खतरे में पड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर दावेदारों की फौज है। इन सीटों पर विधायकों सहित दर्जनों दावेदार टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। इस भीड़ को देखते हुए भाजपा राज्य में सख्ती से फार्मूला लागू करने वाली है। इसके चलते तीन बार या उससे ज्यादा बार के विधायकों की उम्मीदवारी तो खतरे में पड़ ही सकती है, साथ में दिग्गज नेता चुनाव न लड़ने का ऐलान तक कर सकते हैं। राज्य में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को डेढ़ दशक बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था, मगर इस बार परिस्थितियां पार्टी को पिछले चुनाव से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण नजर आ रही हैं। ऐसे में पार्टी ने इस बार टिकट वितरण का सख्त फॉर्मूला तैयार किया है। जिसमें टिकट के दावेदार को फिट बैठना अनिवार्य है।
60 पार नेताओं की दावेदारी पर संदेह
सूत्रों की मानें तो पार्टी की सबसे ज्यादा नजर तीन बार से ज्यादा बार के विधायकों, 60 पार कर चुके नेताओं और उन खास लोगों पर है, जिनके चलते पार्टी को नुकसान की आशंका है। पार्टी में यह भी राय बन रही है कि, जिन नेताओं की छवि अच्छी नहीं है या जनता में नाराजगी है, उनसे चुनाव से लगभग दो माह पहले ही यह ऐलान करा दिया जाए कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। ऐसा करने पर एंटीइंकम्बेंसी को कम किया जा सकेगा। इसके बाद तीन बार के विधायकों और अन्य पर फैसला हो। इसमें पार्टी को बगावत की आशंका है, मगर पार्टी जोखिम लेने को तैयार है। इसकी भी वजह है, क्योंकि पार्टी को इतना भरोसा है कि जिनके टिकट कटेंगे, उनमें से मुश्किल से पांच फीसदी ही नेता ऐसे होंगे, जो दल बदल करने का जोखिम लेंगे।
हर चुनाव में हार रहे कई मंत्री
अगर पिछले कुछ चुनावों का विश्लेषण करें तो यह तथ्य सामने आता है, कि हर बार के चुनाव में कुछ न कुछ मंत्रियों की हार हो रही है। 2018 के चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत थी, लेकिन पार्टी के 13 मंत्री हार गए थे। इस हार ने समीकरण बदल दिए और भाजपा सत्ता से दूर हो गई। इस बार 1-1 सीट महत्वपूर्ण है। ऐसे में अब मंत्रियों के मामले में भी फूंक-फूंककर कदम रखने की तैयारी है। गौरतलब है कि 2020 के उपचुनाव में सत्ता परिवर्तन के बाद 28 सीट पर हुए उपचुनाव में 9 मंत्रियों में से इमरती देवी, एंदल सिंह कंसान और दंडोतिया हार गए। 2018 में 13 मंत्री हारे। इनमें ललिता यादव, उमाशंकर गुप्ता, अर्चना चिटनीस, शरद जैन, जयंत मलैया, अंतर सिंह आर्य, जयभान सिंह पवैया, लालसिंह आर्य, रूस्तम सिंह, दीपक जोशी, नारायण सिंह कुशवाह, ओमप्रकाश धुर्वे, बालकृष्ण पाटीदार शामिल थे। 2013 में 9 मंत्री हारे। इनमें कन्हैया लाल अग्रवाल, अजय विश्नोई, दशरथ सिंह लोधी, जगन्नाथ सिंह, डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया, अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा, करण सिंह वर्मा और हरिशंकर खटीक शामिल थे। वहीं 2008 में 8 मंत्री हारे। इनमें हिम्मत कोठारी, कुसुम महदेले, गौरीशंकर शेजवार, चौधरी चंद्रभान सिंह, रमाकांत तिवारी, रूस्तम सिंह, अखंड प्रताप सिंह और निर्मला भूरिया शामिल थे।
कई विधायकों का टिकट खतरे में
पार्टी के पास अब तक जो जमीनी हालात का ब्यौरा आया है, उसके आधार पर पार्टी कई विधायकों का टिकट तो कटेगी ही, इसमें बड़ी तादाद में ऐसे नेता होंगे, जो तीन बार से ज्यादा विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। अभी तक प्रदेश में भाजपा के दो सर्वे हो चुके हैं। अब तक हुए सर्वे और फीडबैक में कुछ मंत्रियों की छवि खराब आ रही है। कुछ मंत्रियों की परफॉर्मेंस भी खराब आई है। उनके टिकट पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। ऐसे में कितने मंत्रियों को टिकट मिलेगा, कितने जीतेंगे, यह बड़ा सवाल है। गौरतलब है कि गुजरात में जहां बड़ी तादाद में विधायकों के टिकट काटे गए थे, वहीं कई दिग्गजों ने खुद चुनाव न लडऩे का ऐलान किया था। रणनीतिकारों ने पार्टी को सुझाव दिया है कि अगर हमें आगे चुनाव जीतने का क्रम जारी रखना है ,तो कड़े फैसले लेना होगें। ऐसा करने पर जनता की नाराजगी को कम किया जा सकेगा। उसी के बाद से मप्र में चुनाव कैसे जीता जाए, इस पर होमवर्क हो रहा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने तीन मुद्दों पर राज्य में कई बार जमीनी फीडबैक मंगाया। इसमें सरकार को लेकर मतदाताओं का रुख , मंत्रियों के प्रति जनता की राय क्या है और क्षेत्रीय विधायक से कितना संतुष्ट हैं मतदाता। इन तीन मुद्दों को लेकर आए फीडबैक के बाद पार्टी ने टिकट वितरण का फॉर्मूला तैयार किया है।
मंत्रियों की भी होगी अग्नि परीक्षा
भाजपा ने टिकट वितरण का जो फॉर्मूला तैयार किया है उसके अनुसार दावेदारियों के बीच सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा सरकार के मंत्रियों की है। जनता की बेशुमार अपेक्षाओं के कारण वे सबसे ज्यादा संकट में हैं। ज्यादा वजनदारी के कारण उनकी घेराबंदी भी ज्यादा है। प्रदेश के पिछले चुनावी रिकार्ड में भी साफ है कि हर चुनाव में कई मंत्रियों की हार हुई है। पिछले तीन विधानसभा और एक जंबो उपचुनाव में 33 मंत्री चुनाव हारे थे। सिर्फ तीन विधानसभा चुनाव में ही 30 मंत्री हार गए थे। 2018 में सबसे ज्यादा 13 मंत्री हारे। फिर उपचुनाव में भी 3 मंत्री दोबारा विधानसभा नहीं पहुंच सके। चारों कार्यकाल में औसत 33 प्रतिशत विधायक जीत नहीं सके। इस बार सरकार के 30 मंत्री फिर चुनौती की दहलीज पर हैं। भाजपा में सत्ता संगठन उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट चेक कर रहे हैं।