अग्नि आलोक
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उनींदा राजा … 

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रिबोर्न मनीष

जनसंवदियों!!! ये कहानी है, एक उनींदे राजा की। जो एक दूर, बहोत दूऊऊssssर देश का राजा था। कहानी अभी शूरू की है.. 

तो तुम लोग अभी से ही हिहि करना बंद करो।

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हां। तो दूर देश का राजा था। उसे नींद नही आती थी। वो दिन में 18-18 घण्टे जागा करता था। पूछो की बाकी के 6 घण्टे क्या करता था??? 

तो उस समय औरो की नींद हराम करता था। 

टोटल हुए चौबीस। 

तो राजा 24-24 घण्टे काम करता था। एक बार की बात है, मने हर बार की बात है। शाम हो गयी, रात हो गई राजा को नींद नही आ रही थी। तभी उसका छोटा राजा आया। 

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हां। उसने एक छोटा राजा बना रखा था। छोटा राजा देश दुनिया में घूमकर चुनावी प्रबंध करता था। उसने बताया कि वह आज दिन भर बूथ मजबूत करता रहा है। स्ट्रेटजी मीटिंग की है, अब वह बेहद थका हुआ है। उसे नींद आ रही है। 

राजा खुश हुआ। उसने मीटिंग रख ली। देश भर के सारे कारिंदों को भाषण दिया। सबने उबासी लेते हुए बूथ मजबूत करने की कसमें खाई। कसम खाकर सब सोने चले गए। राजा जागता रहा। 

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अब वह टहलने निकला। रास्ते मे सेठ का घर पड़ा। सेठ उसका दोस्त था। खिड़की से झांका तो दोस्त अपने पैसे गिन रहा था। इतने अरब, इतने खरब.. तभी खिड़की से झांकते राजा को देखा। अंदर बुला लिया। 

राजा ने पूछा क्या कर रहे हो, सेठ बोला- पैसे गिन रहा हूँ। इसे गिनने से अच्छी नींद आती है। राजा खुश हुआ। बोला-पैसे तो मेरे ही हैं, मैं गिनूंगा। 

सेठ क्या करता। सब तो राजा की ही बेनामी दौलत थी। चुपचाप सोने चला गया-राजा पैसे गिनता रहा, गिनता रहा। गिनाई खत्म हो गई पर नींद न आई। 

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अब राजा रेलवे स्टेशन पहुँचा। एक गार्ड उबासी लेता हुआ झंडी हिला रहा था। राजा ने पूछा/ क्या कर रहे हो। 

गार्ड बोला- झंडी हिला रहा हूँ। इससे मुझे बड़ी नींद आती है। राजा ने झंडी छीन ली, खुद हिलाने लगा। एक दर्जन ट्रेनों को झंडी दिखा ली, पर नींद का नामोनिशान न था। चिढ़कर झंडी फेंककर चला गया। 

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रात भर राजा ने कई काम किये। कभी भिक्षाटन किया, कभी मोर बने, कभी मदारी, कभी साइंटिस्ट, कभी बाबा बनकर प्रबचन दिए। सुबह हो रही थी। रेडियों स्टेशन पास था, तो मन की बात भी कर ली। 

उद्घोषक उबासी लेता रहा, मगर राजा को नींद का नामोनिशान न था। दुखी मन से महल लौट आये। दन्तमंजन किया, नहाए, धोए, नई सदरी डाली। मोर मुकुट पहना, सेंगोल हाथ मे लिया 

और दरबार की ओर चल पड़े। 

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राजा बहुत दिनों के बाद दरबार आया था। फाइलों का अंबार लगा था। राजा इवन फाइल पर दाएं हाथ से “एप्रूव्ड” और ऑड फाइल पर बायें हाथ से “रिजेक्ट’ का अंगूठा लगाता रहा। 

तभी प्रधान सचिव भीतर आया। 

– महाराज। मंत्रीगण आये हैं। मिलना चाहते हैं। 

– भेज दो

राजा के सभी मंत्री नासमझ थे। ऐसे तो वह खुद ही सारे मसले सुलझा सकता था। मगर नियम के अनुसार मंत्री रखना पड़ता था, तो उसने रखा था। ऐसे में जब वे मिलने जुलने आते, तो इजाजत भी देनी पड़ती थी। 

मंत्रियों का रेला घुसा। सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। राजा ने इशारा किया, सबको बोलने की इजाजत दी। 

– वित्त मंत्राणी बोली- महाराज, राज्य का कर्ज गले गले तक आ गया है। 

– रक्षामंत्री बोला- महाराज, दुश्मन ने हमला करके जमीन कब्जा कर ली है। 

– गृहमंत्री बोला- महाराज फलां फलाँ स्टेट में दंगे हो रहे। आग लगी हुई है। 

– विदेशमंत्री बोला-महाराज, दुनिया भर में थू थू हो रही है

– सड़क मंत्री बोला – महाराज, सड़कें धसक रही हैं 

– रेलमंत्री बोला …..

नहीं!! रेलमंत्री नही बोला। रेलमंत्री बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि कमरे में खर्राटों की गगनभेदी आवाज गूँजने लगी। 

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महाराज, कुर्सी पर झुके, फाइलों पर मुंह टिकाए औंधे पड़े थे। वे सुकून से गहरी निद्रा में सो रहे थे। 

खर्राटों की आवाज अब देश भर में गूंज रही थी। 

#रिबोर्न_की_बोधकथाऐं

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