‘मुझे ताज्जुब है कि मोदी जी ने राज्यसभा में कहा था कि मैं सभी विपक्षियों पर अकेला भारी हूं। अगर वो सभी विपक्षियों पर अकेले भारी हैं तो वो मंगलवार को NDA की मीटिंग में 30 से ज्यादा पार्टियों को क्यों बुला रहे हैं? क्या वे हमारी मीटिंग से घबरा गए हैं?’
सोमवार को विपक्षी पार्टियों की बैठक से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये बयान दिया। दरअसल, 18 जुलाई को दिल्ली के अशोका होटल में NDA की बैठक में छोटी-बड़ी 38 पार्टियां शामिल हुईं। इनमें से 25 पार्टियां ऐसी हैं, जिनके पास लोकसभा में कोई सीट नहीं है।
BJP अपने कुनबे में ऐसी पार्टियां क्यों शामिल कर रही है, जिनके कोई सांसद तक नहीं। विपक्षी एकता या कोई और है वजह?
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने कांग्रेस को बुरी तरह हराकर बहुमत हासिल किया। BJP का अगला शिकार क्षेत्रीय पार्टियां बनने लगीं। BJP ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कई राज्यों में सहयोगी पार्टियों पर भी नए पैंतरे आजमाए। नतीजतन पिछले 4 सालों में तीन बड़े सहयोगी दलों- पंजाब में अकाली दल, बिहार में JDU और महाराष्ट्र में यूनाइटेड शिवसेना ने BJP का साथ छोड़ दिया।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले BJP को कई राज्यों में नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि BJP की नई स्ट्रैटजी अपने आक्रामक विस्तारवादी एजेंडे को दरकिनार कर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अलायंस यानी सहयोगियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसमें कई छोटी पार्टियां भी शामिल हैं।
मंगलवार को NDA की मीटिंग में 38 पार्टियां शामिल हुईं। यह विपक्ष की बैठक में शामिल पार्टियों की संख्या से 12 ज्यादा है। NDA मीटिंग में शामिल होने वाली 38 पार्टियों के नाम…
- BJP
- शिंदे शिवसेना
- NCP अजित पवार
- अपना दल (एस)
- रिप्ब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया यानी RPI
- जनसेना पार्टी
- नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी NPP
- हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी हम
- नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी यानी NDPP
- लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)
- जननायक जनता पार्टी यानी JJP
- AIADMK
- पाट्टाली मक्कल कॉची यानी PMK
- सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा यानी SKM
- ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी AJSU
- राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी यानी RLJP
- तमिल मनीला कांग्रेस यानी टीएमसी
- मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF
- असम गण परिषद यानी AGP
- यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल यानी UPPL
- शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त)
- ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस यानी AINRC
- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी SBSP
- निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल यानी निषाद
- इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी IPFT
- महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी यानी MGP
- नगा पीपुल्स फ्रंट यानी NPF
- प्रहार जनशक्ति पार्टी यानी PJP
- राष्ट्रीय समाज पक्ष
- जन सुराज्य शक्ति
- कुकी पीपुल्स अलायंस
- यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी
- हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी
- हरियाणा लोकहित पार्टी
- भारत धर्म जन सेना
- केरल कामराज कांग्रेस
- पुथिया तमिलगाम
- गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट
बिना सांसद वाली छोटी पार्टियां BJP के लिए इन तीन राज्यों में बेहद अहम…
बिहार : महागठबंधन को काउंटर करने में मददगार
- 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में BJP की सहयोगी LJP ने 6 सीटें जीतीं और उसे 8% वोट मिले।
- दूसरी छोटी पार्टियां जैसे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी RLSP, विकासशील इंसान पार्टी यानी VIP और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी हम की लोकसभा में कोई सीट नहीं है।
- हालांकि इन्हें 7% वोट मिले थे। यानी बिहार में महागठबंधन की काट के लिए ये पार्टियां BJP की मददगार हो सकती हैं।
UP : सोशल इंजीनियरिंग में मदद मिलेगी
- ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी NDA में शामिल हो गई है। राजभर की पार्टी को 2019 में UP में 1% से भी कम वोट मिले।
- हालांकि पूर्वांचल की 15 सीटों पर राजभर वोटबैंक का प्रभाव है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- UP में 2019 में जहां BJP की सहयोगी अपना दल को 1.2% वोट मिले और उसने दो लोकसभा सीटें जीतीं। वहीं इससे BJP को कुर्मी वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करने में मदद मिली।
- इसी तरह संजय निषाद की निषाद पार्टी ने BJP के चुनाव चिह्न पर एक उम्मीदवार खड़ा किया और BJP की तरफ निषाद वोटों को लाने में मदद की।
झारखंड : कुशवाहा वोटर्स एकजुट करने में मदद
- झारखंड में NDA की सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन को 4.3% वोट मिले और एक लोकसभा सीट जीती।
- इससे BJP को कुशवाहा वोटरों को एकजुट करने में मदद मिली।
- इसी के साथ महाराष्ट्र में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और RPI जैसे पार्टियों को BJP ने अपने साथ जोड़ रखा है। हालांकि, इन दोनों पार्टियों का भी कोई सांसद नहीं है।
BJP को किस बात का डर, जिससे NDA का कुनबा बढ़ाने में जुटी है। राज्यवार हालात जानते हैं…
बिहार : नीतीश की कमी पूरी करने के लिए मांझी-कुशवाहा को जोड़ा
2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने बिहार में कुल 40 सीटों में से अकेले 17 सीटें जीती थीं। उस वक्त BJP की सहयोगी रही JDU को 16 और LJP को 6 सीटें मिली थीं। यानी NDA ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं।
वर्तमान में स्थिति एकदम उलट है। JDU अब BJP से अलग हो चुकी है। अब वह कांग्रेस और राजद गठबंधन का हिस्सा है। वहीं दो धड़ों में बिखरी LJP को BJP एकजुट करने में जुटी है।
यही वजह है कि BJP ने कुछ दिन पहले ही बिहार के महागठबंधन से जीतन राम मांझी को तोड़ लिया है। मांझी से पहले BJP महागठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ मिला चुकी है। BJP ने VIP पार्टी के प्रमुख मुकेश साहनी को भी अपने पाले में कर लिया है।
महाराष्ट्र : NCP तोड़ने से पहले BJP कमजोर नजर आ रही थी
UP के बाद लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने कुल 48 सीटों में से 23 पर जीत दर्ज की और उस वक्त सहयोगी रही शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं।
हालांकि, विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना NDA से अलग हो गई और कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना लिया। इससे राज्य में BJP अकेले पड़ गई। इसी वजह से BJP ने 2022 में शिवसेना में फूट करवाकर एकनाथ शिंदे से हाथ मिलाया।
इसके बावजूद BJP को विधान परिषद और विधानसभा के उप चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। यानी शिंदे शिवसेना के आने के बावजूद BJP को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा था।
साथ ही कांग्रेस, उद्धव शिवसेना और NCP के साथ आने से BJP को लोकसभा चुनाव में काफी नुकसान हो सकता है। 2 जुलाई को NCP में फूट होती है और अजित पवार NCP के कई विधायकों के साथ BJP के साथ आ गए। यानी BJP ने यहां दो बड़ी पार्टियों को तोड़कर उन्हें NDA में मिला लिया है।
पश्चिम बंगाल : तृणमूल, कांग्रेस और लेफ्ट मिल गए तो BJP के लिए डबल डिजिट में पहुंचना मुश्किल
BJP 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 18 सीटें जीती थीं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यहां पर अगर लेफ्ट, कांग्रेस और तृणमूल साथ आ गए तो BJP को सिंगल डिजिट से आगे बढ़ने में भी दिक्कत होगी।
कर्नाटक : कांग्रेस को काउंटर करने के लिए JDS का साथ जरूरी
2019 के लोकसभा चुनाव में BJP ने कर्नाटक की कुल 28 में से 25 सीटें जीती थीं। वहीं कांग्रेस और JDS को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था। हालांकि, अब विधानसभा चुनाव के बाद राज्य के सियासी समीकरण बदल गए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में BJP 14-15 सीटों तक सिमट सकती है। ऐसे में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद BJP यहां पर भी सहयोगी की तलाश में है।
BJP की नजर देवगौड़ा की JDS पर है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 42.9% वोट शेयर के साथ 135 सीटें जीतीं। वहीं BJP ने 36% वोट शेयर के साथ 66 सीटें और JDS ने 13.3% वोट शेयर के साथ 19 सीटें जीतीं। यानी यहां पर अगर BJP और JDS का वोट शेयर मिला दें तो यह 49.3% हो जाता है, जो कांग्रेस से लगभग 7% ज्यादा है।
यानी BJP को इन चारों राज्यों से 50-60 सीटों की जो कमी होगी उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, UP, हिमाचल, गुजरात और उत्तराखंड से पूरा करना संभव नहीं है। क्योंकि यहां पर BJP पहले से ही 90% सीटें जीत चुकी है। यहां वह दोबारा 90% सीटें जीतती है, तो भी उसकी संख्या नहीं बढ़ेगी। इसलिए BJP अपना कुनबा बढ़ाकर इस नुकसान की भरपाई करना चाहती है।
पंजाब जैसे राज्यों में पुराने दोस्त को जोड़ने की जरूरत
पंजाब दूसरा राज्य है जहां भाजपा को एक सहयोगी की जरूरत है और अकाली दल एक पुराने दोस्त की प्रतीक्षा कर रहा है। 2017 के बाद से लगातार हार के बाद अकाली दल को BJP के समर्थन की ज्यादा जरूरत थी। यह उतना ही मजबूत है जितना हाल ही में जालंधर लोकसभा सीट के उपचुनाव के नतीजों ने दिखाया।
जालंधर सीट को आप ने जीता और उसे 34.05% वोट मिले। कांग्रेस को 27.4%, BJP को 15.2% और अकाली दल को 17.9% वोट मिले। यानी अगर दोनों को मिला दें तो यह 33.1% होता है। यह आप से सिर्फ 1% कम है और कांग्रेस से ज्यादा।
यानी अगर BJP और अकाली साथ आते हैं तो फायदा हो सकता है। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद भी BJP फिर से NDA में अकाली दल को लाने में कामयाब नहीं हो पाई है।
ओडिशा, आंध्र जैसे राज्यों में नए सहयोगी की तलाश
बताया जा रहा है कि BJP को बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में 2024 में 50 से 60 सीटों का नुकसान हो सकता है। ऐसे में उसे ओडिशा और आंध्र जैसे राज्यों में नए सहयोगी की तलाश होगी।
आंध्रप्रदेश का सिनैरियो इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जगन मोहन रेड्डी की अगुआई वाली YSR कांग्रेस अब राज्य में कांग्रेस को उभरने नहीं दे रही है और BJP को पैर जमाने से रोक रखा है।
BJP के लिए जगन ओडिशा के CM नवीन पटनायक जैसे हैं। जगन भी पूरी तरह से पटनायक के रास्ते पर चल रहे हैं। वह पटनायक की तरह ही BJP और कांग्रेस से समान दूरी बनाए हुए हैं। मिड पॉइंट पर खड़े रहकर पटनायक और जगन ने मोदी सरकार के साथ वर्किंग रिलेशन बनाए हैं। इससे उनके राज्यों को केंद्र की लगातार सहायता भी मिल रही है।
BJP का सेंट्रल कमांड 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जगन और पटनायक को जरूरतमंद दोस्त मान रहा है। यानी उस वक्त ज्यादा सहयोगियों की जरूरत पड़ने पर ये काम आ सकते हैं।