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क्या राहुल गांधी वाले तर्क का फायदा अन्य प्रकरणों में भी मिलेगा?

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एस पी मित्तल, अजमेर 

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को मानहानि के प्रकरण में चार अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही कांग्रेस और खुद राहुल गांधी को भारत की न्याय व्यवस्था पर भरोसा हो गया है। सूरत की अदालत की सजा को लेकर राहुल गांधी ने अमेरिका में जाकर आरोप लगाया कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है और देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा सरकार का कब्जा है। राहुल ने अपने संबोधन में न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। लेकिन चार अगस्त को फैसला आते ही राहुल और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने न्याय व्यवस्था की प्रशंसा करना शुरू कर दिया। खुद राहुल गांधी ने कहा, यह सत्य की जीत है। मालूम हो कि मोदी सरनेम को लेकर जो टिप्पणी की थी, उस पर ही राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने दो वर्ष की सजा सुनाई थी। राहुल ने सजा पर रोक लगाने के लिए जिला न्याय और हाई कोर्ट में गुहार लगाई, लेकिन राहत नहीं मिली। अब सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी है, लेकिन राहुल गांधी को हिदायत दी है कि भविष्य में एहतियात बरतते हुए भाषण दें। न्याय व्यवस्था ने खुद को भी आलोचना से बचा लिया।

बहाली जल्द:

एनसीपी के सांसद मोहम्मद फेजल को हत्या के प्रयास के गंभीर मामले में दोषी मानते हुए अदालत ने 10 वर्ष की सजा सुनाई थी। इस सजा के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने फैजल की संसद सदस्यता रद्द कर दी और चुनाव आयोग ने फैजल के निर्वाचन क्षेत्र लक्षद्वीप में उपचुनाव का ऐलान कर दिया, लेकिन इस सजा पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। हाईकोर्ट के आदेश की प्रति लोकसभा सचिवालय में दी गई ताकि बहाली हो सकी, लेकिन मोहम्मद फैजल की बहाली दोपहर बाद तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। जानकार सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी के मामले में लोकसभा सचिवालय में लंबित नहीं रखा जाएगा। कोर्ट के आदेश की प्रति मिलने के साथ ही राहुल की संसद सदस्यता बहाल कर दी जाएगी। भले ही राहुल गांधी लोकसभा में रखे अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की तारीख तय नहीं हुई है। राहुल गांधी को सरकारी बंगला भी अलाट हो जाएगा।

अन्य प्रकरण:

चार अगस्त को राहुल की सजा पर रोक का एक कारण वायनाड के मतदाताओं के अधिकार भी रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वायनाड के जिन मतदाताओं ने राहुल गांधी को अपना सांसद चुना है, उन्हें अपने सांसद से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रखा जा सकता। यानी सुप्रीम कोर्ट को संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के अधिकारों की भी चिंता रही। सवाल उठता है कि क्या अन्य मामलों में भी मतदाताओं की चिंता को देखा जाएगा? क्या इस आधार पर अन्य जनप्रतिनिधियों की सजा पर भी रोक लगेगी? देश के अनेक जनप्रतिनिधियों को हत्या बलात्कार आदि संगीन मामलों में निचली कोर्ट से सजा मिली हुई है। 

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