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चुनाव आयोग को अपनी कठपुतली बनाने पर आमादा केंद्र सरकार

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मुनेश त्यागी 

       भारत की केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त विधेयक 2023 संसद में पेश करके बता दिया है कि वह विपक्षी पार्टियों के “इंडिया” गठबंधन से पूरी तरह भयभीत हो गई है और अब वह किसी भी कीमत पर सारी नैतिकताओं और राजनीतिक सुचिताओं को ताक पर रखकर, भारत के चुनाव आयोग को अपनी मनमर्जी से नियुक्त करना चाहती है। इस नए बिल के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला तीन सदस्यीय पैनल करेगा जिसमें लोकसभा के विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। इस प्रकार सरकार अपनी मनमर्जी का चाटुकार और पिछलग्गू तोता चुनाव आयोग बनाने में सफल हो जाएगी।

     इस बिल को लाकर सरकार ने अपनी मंशा पूरे देश के सामने साफ कर दी है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और सिफारिशों को मानने को तैयार नहीं है और यह बिल लाकर उसने सर्वोच्च न्यायालय की निष्पक्ष और इमानदार चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की सलाह और आदेश को निष्प्रभावी कर दिया है। यह बिल भारत के संविधान और जनतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। वह किसी भी तरीके से 2024 के चुनाव जीतकर सत्ता में बनी रहना चाहती है, ताकि अपने चंद पूंजीपति मित्रों के हितों की रक्षा कर सके, उन्हें आगे बढ़ा सके, इसलिए उसने अपनी मनमर्जी करके, अपना मनचाहा भारत का चुनाव आयोग गठित करने की चाल चली है।

      सरकार की यह तानाशाही पूर्ण कार्रवाई बता रही है कि वह किसी भी प्रकार से अपने नियंत्रण का चुनाव आयोग चाहती है जो उसकी बात माने, उसके इशारों पर नाचे और उसकी कठपुतली बन कर रहे। वह नहीं चाहती कि भारत का चुनाव आयोग सरकार की मनमानी हरकतों में, पक्षपाती चुनावी कार्रवाइयों में खलल डाले, उन पर सवाल उठाए, चुनावी धांधलियों पर कसकर जोरदार रोक लगाये, वह नहीं चाहती कि भारत का चुनाव आयोग केंद्र सरकार के मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों की चुनावी चालबाजियों और धांधलियों पर रोक लगाये, उन पर सवाल उठाए। अपनी प्रजातंत्र विरोधी और निष्पक्ष चुनाव विरोधी हरकतों को अंजाम देने के लिए केंद्र सरकार अपना चुनाव आयोग चाहती है। भारत के जनतंत्र का यह सबसे काला कारनामा और सबसे काला और डराने वाला वक्त है। 

     इस बिल के पास हो जाने के बाद, भारत का चुनाव आयुक्त अब प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और कैबिनेट मिनिस्टर की तीन सदस्य समिति द्वारा चुना जाएगा। यह नया बिल सर्वोच्च न्यायालय के, भारत का निष्पक्ष चुनाव आयोग स्थापित करने के आदेश और परामर्श का खुल्लम-खुल्ला उलंघन और पूरा निषेध है। इस बिल ने भारत के चुनाव आयोग को “मोदी चुनाव आयोग” बना दिया है। यह विधेयक भारत के चुनाव आयोग की ईमानदारी और निष्पक्षता का पूर्ण रूप से खत्मा कर देगा। यह बिल देश की निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया को ध्वस्त करने की एक सोची समझी चाल है।

      इस विधेयक के कानून बनने के बाद चुनाव आयुक्त, बीजेपी और सरकार के पक्ष में काम करेगा। सरकार ऐसा करके जनतंत्र को बंधक बना रही है और उसका खात्मा करने पर आमादा हो चुकी है। इस बिल के प्रभावी होने के बाद, भारत के जनतंत्र को जनता का जनतंत्र नहीं कहा जा सकता। इस बिल के कानून बनने के बाद यह आशंका पूरी तरह से सच साबित होती दिख रही है कि अब भारत की जनता निष्पक्ष तरीके से अपनी वोट नहीं डाल पाएगी, सही तरीके से मतदाता सूची नही बनायी जायेगी, निष्पक्ष तरीके से मतदान नहीं हो पाएगा और निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से मतगणना भी नहीं हो पाएगी, अब भारत का चुनाव आयोग निष्पक्षता, आजादी और ईमानदारी के साथ अपना काम नहीं कर पाएगा।

     इस बिल को लाकर सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति से बाहर कर दिया है। यहीं पर सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने ऐसा पक्षपाती कम क्यों उठाया? आखिर सरकार को भारत के मुख्य न्यायाधीश से क्या परेशानी है? सरकार का यह जनतंत्र विरोधी, संविधान विरोधी और पूर्ण रूप से पक्षपाती कदम बताता है कि सरकार बिल्कुल डरी हुई है। वह एक निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव आयोग का गठन नहीं करना चाहती वह किसी भी तरह से अपना मनमाफिक चुनाव आयुक्त चाहती है जो उसके इशारों पर नाचे, उसके मनमाफिक कम करे। क्योंकि भारत के मुख्य न्यायाधीश आंख मूंदकर सरकार की नीतियों और चालबाजियों का समर्थन करने वाले नहीं हैं, इसलिए सरकार ने जानबूझकर एक सोची समझी साजिश के तहत, भारत के मुख्य न्यायाधीश को भारत के चुनाव आयोग की चयन समिति से बाहर कर दिया है।

        इस बिल को लाने से पहले सरकार ने विपक्षी दलों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया। आखिर क्यों? अगर सरकार चाहती तो विपक्ष को साथ लेकर एक निष्पक्ष चुनाव आयोग का गठन कर सकती थी। मगर उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसका जनतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं है। वह किसी भी तरह से 2024 के चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है। वह चुनाव जीतने के लिए एक ऐसा चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग बनना चाहती है जो उसके इशारों पर चले, उसकी हां में हां मिलाये, उसकी कठपुतली बन जाए। यह बिल इस दिशा में बढा हुआ एक सोचा समझा कदम है।

      यहीं पर यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह मोदी सरकार, आर एस एस की सरकार है। आर एस एस भारत में हिंदुत्ववादी राष्ट्र की स्थापना करनी चाहती है। आर एस एस का भारत की आजादी के संग्राम में कोई योगदान नहीं है, वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल ही नही थी। वह तब भी भारत के जमींदार और पूंजीपतियों और साम्राज्यवादी लुटेरे अंग्रेजों के साथ थी। उसे भारत के संविधान में, भारत के झंडे में कभी कोई विश्वास नहीं रहा। उसने संविधान निर्माण के समय इनका विरोध किया था और कहा था कि इस देश को किसी संविधान की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां तो पहले से ही मनुस्मृति विद्यमान है, इसीलिए मोदी सरकार भारत के संविधान को, भारत के जनतंत्र को, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को संविधान में बनाए रखना नहीं चाहती।

       वह इन जनकल्याणकारी सिद्धांतों और कार्यक्रमों का पालन और इन्हें लागू करना नहीं चाहती और क्योंकि 2025 में आर एस एस की स्थापना की सौंवी वर्षगांठ मनाई जाएगी, इसलिए हिंदू राष्ट्र के रास्ते में खड़े भारतीय संविधान को, जनतंत्र गणतंत्र धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के मूल्यों को, पूरी तरह से धराशाई कर देना चाहती है। इसलिए इस मार्ग को निष्कंठक बनाए रखने के लिए  आर एस एस की मोदी सरकार ने, अपनी मनमर्जी का चुनाव आयोग बनाने का निर्णय लिया है।

       सरकार नहीं चाहती कि भारत का चुनाव आयोग ईमानदारी और निष्पक्षता से अपना काम करें, सर्वसम्मति से मतदाता सूची बनाते, इमानदारी और निष्पक्षता से चुनाव कराये, ईमानदारी से मतगणना कराये, सभी प्रकार की चुनावी धांधलियों और अनियमिताओं को रोके और निष्पक्ष चुनाव कराए। भारत की सरकार जैसे सारी भारतीय केंद्रीय संस्थानों को कठपुतली बना चुकी है, उसी प्रकार वह चाहती है कि भारत का चुनाव आयोग भी ईडी, सीबीआई, और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरह, उसकी कठपुतली बनकर रहे, उसकी हां में हां मिलाये और उसके इशारों पर नाचे और और 2024 के चुनाव जीतने में उसका वफादार भागीदार बने, इसलिए वह सोच समझकर एक साजिश के तहत 2024 के चुनाव जीतने की साजिश को मुकम्मल करने के लिए, अपनी मनमर्जी का कठपुतली चुनाव आयोग बनाने स्थापित करने की मुहिम पर चल पडी है।

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