मुनेश त्यागी
आज भारत की आजादी की 76वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। तिरंगे का उत्सव मीडिया और व्हाट्सएप और फेसबुक में छाया हुआ है। अगर हम अपने भारत का आधुनिक इतिहास जानना चाहें तो हमें पता चलता है कि अंग्रेज व्यापार करने के नाम पर, भारत में आये थे। मगर उनका असली मंसूबा भारत को कब्जाने का था, भारत को लूटने और भारत पर राज करने का था और इसी मुख्य मंसूबे से वे यहां आए थे। इतिहास बताता है कि उनके आने के समय से ही भारत में उनके खिलाफ विद्रोह और संघर्ष शुरू हो गए थे। उनके खिलाफ सबसे पहला संघर्ष भारत माता के महान सपूत टीपू सुल्तान ने शुरू किया था जो बाद में अट्ठारह सौ सत्तावन की भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से होते हुए 1947 तक भारत की आजादी प्राप्ति होने तक जारी रहा।
भारत की आजादी का इतिहास बताता है कि हमारे देशवासियों ने अपने देश को आजाद कराने के लिए, अंग्रेजों की गुलामी का साम्राज्य खत्म करने के लिए, अंग्रेजों से सैकड़ों से ज्यादा लड़ाइयां लड़ी थीं, विद्रोह किए थे और संघर्ष किए थे और भारत को, उसके उद्योग धंधों को, उसकी खेती-बाड़ी को, महफूज रखने लिए, भारत की हजारों लाखों बेटे बेटियों ने अपनी जानों की कुर्बानी दी थीं।
हमारे देश की आजादी के लिए, लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा अपने प्राणों की आहुति देने के बाद, हमारा देश आजाद हुआ। हमारे देश को आजाद कराने में गदरी बाबाओं, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र सिंह लाहिडी, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह और उनके दूसरे साथियों शिव वर्मा, जयदेव कपूर, यशपाल, आजाद हिंद फौज के नेताजी सुभाष चंद्र बोस, 1942 का भारत का करो या मरो और अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन, 1946 का नौ सेना विद्रोह और जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत, भीम राव अम्बेडकर और हजारों लाखों स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा था और इसी योगदान और बलिदान के बलबूते पर हमें आजादी प्राप्त हुई थी।
आजादी मिलने के वक्त सोचा गया था कि भारत में एक नए इंसान का जन्म होगा जो जाति मजहब, भ्रष्टाचार, बेईमानी की संकीर्णताओं से दूर होगा, भारत में सारे धर्म मिलकर रहेंगे, सब जातियों के लोग मिलकर रहेंगे और भारत के सारे लोग मिलकर एक नए भारत का निर्माण करेंगे, धर्म और जाति के नाम पर तमाम तरह के शोषण अन्याय जुल्म और ज्यादतियां बंद कर दी जाएंगी। आजादी के वक्त यह भी सोचा गया था की हजारों साल पुराने जुल्मों सितम, शोषण, अन्याय, गैर बराबरी, मारकाट, हिंसा, ऊंच-नीच, तमाम तरह के भेदभाव और छोटे छोटे बड़े की मानसिकता का खात्मा कर दिया जाएगा, इनका जड़ से विनाश कर दिया जाएगा और सभी जातियों और वर्णो के लोगों को सामान समझा जाएगा और उनके साथ बराबरी और भाईचारे का व्यवहार किया जाएगा।
आजादी के समय यह भी उम्मीद की गई थी कि सोवियत यूनियन की भांति सबको आधुनिकतम मुफ्त शिक्षा मिलेगी, सब को मुफ्त इलाज मिलेगा, सबको रोजी रोटी मकान दुकान और रोजगार का इंतजाम किया जाएगा। कोई भूखे पेट नहीं सोएगा।आजादी के समय यह भी सोचा गया था कि हमारे देश में गंगा जमुनी तहजीब और मिली-जुली संस्कृति का विस्तार होगा। लोगों को धर्म के नाम पर नहीं लड़ाया जाएगा। जाति और वर्ण के नाम पर लोगों का शोषण नहीं किया जाएगा।
और यह भी सोचा गया था कि कोई अमीर नहीं होगा, कोई गरीब नहीं होगा, कोई भूख से नहीं मरेगा, सब को न्याय मिलेगा, सब को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आजादी मिलेगी। सबको समता और समानता मुहैया कराई जाएंगी, कानून के सामने सब बराबर होंगे और हजारों साल से चले आ रहे अन्याय, शोषण और जुल्मों सितम के साम्राज्य का जड से खात्मा कर दिया जाएगा।
आजादी मिलने के कुछ वर्षों बाद सबको मुफ्त शिक्षा का इंतजाम किया गया, सबको रोजी-रोटी का इंतजाम किया गया, स्कूल खोले गए, अस्पताल खोले गए, लोगों को नौकरियां दी गईं, बहुत सारे किसानों को जमीन का मालिक बनाया गया और जमीदारों का शोषण बंद किया गया। हरित क्रांति हुई, बहुत सारे सरकारी उद्योग धंधे खोले गए, प्राइवेट उद्योग धंधों का जाल बिछा और बहुत सारे लोगों को भूख से आजादी मिली और अनाज का संकट खत्म हुआ।
हमारी आजादी पर कुछ काले बादल भी आए जैसे 1957 में ई एम एस नम्बूदरीपाद की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को राष्ट्रपति शासन लगा कर गिरा दिया गया।1977 में देश पर इमरजेंसी थोप दी गई। लगभग सारे में विपक्षियों को जेल के अंदर ठूंस दिया गया। मगर भारत की जनता ने हार नहीं मानी। वह आजादी और संविधान की रक्षा के लिए खड़ी हो गई और उसने, इमरजेंसी लगाने वालों को सत्ता से दूर कर दिया। आजाद भारत में बहुत कुछ हासिल किया है। बहुत सारी मुसीबतों पर विजय पाई है। कई अन्य क्षेत्रों में विकास किया है मगर आजादी मिलने के 76 साल बाद आजाद भारत की जो तस्वीर बननी थी, वह नहीं बन पाई।
इसके बाद भारत की आजादी जैसे तैसे बनी रही, मगर भारत की आजादी पर सबसे बड़ा हमला 1991 में हुआ, जब भारत के तत्कालीन मंत्री, मनमोहन सिंह के सुझाव पर भारत के प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने भारत में उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की जनविरोधी और लुटेरी नीतियों को लागू कर दिया गया, जिसका परिणाम हम आज देख रहे हैं कि पहले कांग्रेस इन जनविरोधी नीतियों को कुछ रियायतों के साथ धीरे धीरे लागू करती रही और वह भारत के प्राकृतिक संसाधनों को चंद्र पूंजीपतियों को धीरे-धीरे बेचती रही और जनता की आजादी पर धीरे-धीरे हमले करती रही।
आज स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। पिछले नो साल से जब से मोदी की सरकार आई है तब से भारत की आजादी के सपनों को धूल धूसरित कर दिया गया है। भारत के अधिकांश लोगों की आजादी को लगभग खत्म कर दिया गया है और आज भारत की आजादी और भारत के संविधान पर सबसे ज्यादा काले बादल मंडरा रहे हैं। आज हम देख रहे हैं कि वर्तमान सरकार ने कांग्रेस द्वारा लागू की गई उदारीकरण की जनविरोधी नीतियों को बहुत तेज गति प्रदान कर दी है।
उसने भारत की सरकारी संपत्तियों को अपने चंद पूंजीपति मित्रों को कोड़ी के दाम बेचना शुरू कर दिया है। उसने भारत के लगभग तमाम प्राकृतिक संसाधनों को, खनिज पदार्थों को, चंद पूंजीपतियों के हवाले कर दिया है। आज भारत पर दुनिया का सबसे ज्यादा कर्ज है, आज हमारे देश में सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं, सबसे ज्यादा अनपढ़ हैं, सबसे ज्यादा गरीब हैं, सबसे ज्यादा बीमार हैं। सबसे ज्यादा कुपोषित लोग हैं। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से हमारे देश में आज एस एससी, एसटी, ओबीसी और तमाम जातियों के लगभग 100 करोड़ लोग गरीब हैं। हमारे देश के लगभग समस्त सरकारी और प्राइवेट संस्थान भ्रष्टाचार के साम्राज्य में आकंठ डूबे हैं।
हमारे देश में 10 करोड़ से ज्यादा मुकदमें अदालतों में पेंडिंग हैं, मुकदमों के अनुपात में जज नहीं हैं, अदालतें, स्टेनो, पेशकार और कर्मचारी नहीं हैं। सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। सस्ता और सुलभ न्याय सरकार के एजेंडे में नहीं है और हमारे यहां करोड़ों लोग पिछले अनेक वर्षों से अन्याय का शिकार बने हुए हैं। सरकार लगातार शिक्षा और स्वास्थ्य पर बजट को कम करती चली जा रही है और इनका निजीकरण करके जनता को उनके रहमों करम पर लूटने के लिए छोड़ दिया गया है। गजब की बात यह है कि सरकार का इस अनियंत्रित लूट खसोट पर कोई नियंत्रण और अंकुश नहीं है।
भारत की आजादी पर सबसे बड़ा हमला सरकारी संपत्तियों को चंद्र पूंजीपतियों को कौड़ियों के दाम बेचकर किया जा रहा है। सरकार जनता पर तरह-तरह के टैक्स लगाकर धन एकत्रित कर रही है, महंगाई पर कोई अंकुश नहीं है, कमरतोड़ और आकाश छूती हुई महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। सरकार इस ओर से आंखें मीचे हुए हैं। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से भारत की सरकार ने पिछले 5 सालों में भारत के पूंजीपतियों को ढाई लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की टैक्स की छूट दी है और उसने अपने चंद पूंजीपति मित्रों को 10 लाख करोड़ रुपए के लोन दे रखे हैं और सरकार ने इन पूंजीपतियों से इन ऋणों को वसूलने से इनकार कर दिया है जिस वजह से भारत के “लाइफ लाइन” बनें सरकारी बैंकों की कमर टूटने के कगार पर है।
आज सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही बताया जा रहा है, उन्हें झूठे मुकदमे के आधार पर जैलों के अंदर ठूंसा जा रहा है। कई कई साल से जेल में पड़े कैदियों पर आरोप तय नही किए गए हैं उनकी स्वतंत्रता का हनन करके, उन्हें जबरदस्ती जमानत देने से इनकार किया जा रहा है और उन्हें लगातार जेलों में रखा जा रहा है। सबसे बड़ा हमला भारत के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर हुआ है। लगभग सारे मीडिया का निजी करण कर दिया गया है। सरकारी मीडिया को लगभग चुप करा दिया गया है। आज पूरा मीडिया सरकार की जनविरोधी नीतियों का प्रचार प्रसार करने में जुटा हुआ है। वह सरकार का गोदी मीडिया बन गया है।
भारत की आजादी मिलने के समय यह कामना की गई थी कि हजारों साल से फैले अंधविश्वास, पाखंड, धर्मांधता और अज्ञानता के साम्राज्य का विनाश किया जाएगा और इसके स्थान पर वैज्ञानिक संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जाएगा और एक आधुनिक और वैज्ञानिक समाज का निर्माण किया जाएगा और भारत में ज्ञान विज्ञान का साम्राज्य कायम किया जाएगा, मगर आज हम देख रहे हैं कि हमारी सरकार और उसके नेता और मंत्री सभी प्रकार की संकीर्णता, धर्मांधता, अंधविश्वास और अज्ञानता को पाल पोस रहे हैं, उन्हें पानी दे रहे हैं। वह इस जन विरोधी मानसिकता से लड़ने को तैयार नहीं है। उन्होंने वैज्ञानिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार को तिलांजलि दे दी है।
आज सरकार द्वारा सबसे बड़ा हमला भारत के करोड़ों किसानों मजदूरों पर किया जा रहा है। सरकार कानून बनाकर किसानों की जमीन छीन कर इस देश के बड़े-बड़े पूंजीपतियों को देना चाहती है। आजादी के 75 साल के बाद हुई किसानों का फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया जा रहा है। फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइस भी उन्हें नहीं दिया जा रहा है। इसी तरह भारत की सरकार ने चार श्रम संहिताएं बनाकर मजदूरों से उनके अधिकार छीन लिए हैं। देश के चंद पूंजीपतियों को खुश करने के लिए और उनके द्वारा शोषण के दरवाजों को खुला रखने के लिए ये चार नए कानून बनाए हैं और मजदूरों को आधुनिक गुलाम बना दिया गया है। उनसे अस्थाई नौकरी का अधिकार, पेंशन का अधिकार, ओवरटाइम का अधिकार छीन लिया गया है और यूनियन बनाना लगभग असंभव कर दिया गया है।
आज हमारी गंगा जमुनी तहजीब और मिली-जुली संस्कृति पर सबसे ज्यादा हमले हो रहे हैं। हिंदू मुसलमान के नाम पर समाज को बांटा जा रहा है, जनता को आपस में लड़ाया जा रहा है। जनता की हजारों साल पुरानी एकता को तोड़ा जा रहा है। धर्मांध ताकतें निर्दोष लोगों को मार पीट रही है, उनकी दाढ़ी नोच रही हैं, उन्हें घोड़े पर चढ़ने से मना कर रही हैं। हकीकत यह भी है किसानों द्वारा दलित और पिछड़े लोगों को मंदिरों में प्रवेश भी नहीं करने दिया जाता है, उन्हें वहां जल तक चढ़ाने से रोका जाता है।
सबसे ज्यादा अचम्भे की बात यह है कि अधिकांश सरकारें, इन जन विरोधी और देश विरोधी ताकतों के खिलाफ, पंडो और मुल्लाओं के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्हें लगभग खुला छोड़ दिया गया है और वे अपनी अनाप-शनाप धर्मांध बातों से जनता में भ्रम और बदमनी भी फैला रहे हैं। सरकार लंगड़ी लूली और बहरी मुद्रा में आ गई है। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि आज भारत की आजादी पर बेरोजगारी, गरीबी, अज्ञानता, अंधविश्वास, अवैज्ञानिकता, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, बेईमानी, और सरकार की बेरुखी के और जनविरोधी नीतियों के गंभीर बादल छा गए हैं और भारत की आजादी और संविधान आज सबसे ज्यादा संकट में है।
हम बेहद अफसोस के साथ कहने को मजबूर हो गए हैं कि जिस आजादी के सपने 1947 में आजादी मिलने के वक्त देखे गए थे, यह वह आजादी नहीं है, यह वह भारत नहीं है। हमारे देश के करीब 100 करोड़ से ज्यादा लोगों की शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार और विकास का कोई रोड मेप सरकार के पास नहीं है। आज भारत की 76 साल की आजादी के बाद हमारे देश में अमीरी गरीबी, शोषण, जुल्म, अन्याय, भुखमरी, बेरोजगारी, सर्वव्यापी भ्रष्टाचार, कमर तोड़ महंगाई, धर्मांधता, लोगों को बौद्धिक रूप से ग़ुलाम बनाते अंधविश्वास जैसी नई नई गुलामियां उग आई हैं। हमें इन नयी गुलामियों को नेशनाबूद करने के लिए, एक बार फिर से नयी आजादी के आंदोलन को शुरु करना पड़ेगा और और आजादी का नया बिगुल बजाना पड़ेगा। यहां पर हम यही कहेंगे,,,,,
यह दाग दाग उजाला
यह डसी डसी सी सुबह,
वो इंतजार था जिसका
ये वो सुबह तो नहीं।
और
वही सब गजनवी अंदाज होगा
वतन को लूटने का काज होगा,
शहीदों ने कभी सोचा नहीं था
उन्हीं के कातिलों का राज होगा।
और
मैं इस देश की एक इंच भूमिका स्वामी नहीं
क्या यह इस देश के संविधान की खामी नहीं,
न रोजी, न रोटी, न शिक्षा और ना ही दवाई
मैं ऐसी झूठी आजादी की भरता हामी नहीं।