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त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती, प्रेमकृष्ण खन्ना और सैय्यद अहमदुल्ला कादरी कीकहानी…

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त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती

देश की आजादी के लिए काटी कालापानी की सजा

जन्म : 1889, मृत्यु : 9 अगस्त, 1970

त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती का जन्म 1889 में मयमनसिंह जिले के कपासतिया गांव में हुआ था जो अब
बांग्लादेश में है। उनके पिता का नाम दुर्गाचरण चक्रवर्ती था। बचपन से ही त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती के
परिवार का वातावरण राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत था। वह क्रांतिकारियों के बीच ‘महाराजा’ के
नाम से लोकप्रिय थे। उनका संघर्षशील व्यक्तित्व, अन्याय, अनीति से जीवनपर्यंत जूझने की प्रेरक
कहानी है। वह 1906 में मात्र 7 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। वह ढाका अनुशीलन
समिति के सदस्य बन गए और पूरे मयमनसिंह जिले में युवाओं के साथ मिल कर काम किया।
उन्होंने करीब 30 वर्ष जेल में बिताए। 1908 में उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए पहली बार
गिरफ्तार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे शिक्षा पूरी नहीं कर सके।
1910 में, जब पुलिस ढाका षडयंत्र मामले में उनकी तलाश कर रही थी, तब वह फरार हो गए। उन्हें
1912 में हत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया गया लेकिन पुलिस इसे अदालत में साबित करने में
विफल रही। इसके बाद वह मालदा, राजसाही और कोमिला जिलों में काम करते रहे। क्रांतिकारी
गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी के कारण त्रैलोक्यनाथ को 1914 में कलकत्ता में फिर से गिरफ्तार
कर लिया गया। उन्हें बारीसल षडयंत्र मामले के कारण अंडमान के सेल्युलर जेल भेज दिया गया।
जिस समय उन्हें कालापानी की सजा दी गई उस समय उनकी उम्र महज 25 साल थी। हालांकि, वह
इसे सजा नहीं मानते थे। उन्हें विश्वास था कि उनकी इस तपस्या से देश को आजादी जरूर मिलेगी।
माना जाता है कि वहां उनकी मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर से हुई और वे उनसे काफी
प्रभावित हुए।
सजा समाप्त होने पर त्रैलोक्यनाथ कोलकाता वापस आ गए। वहां उन्होंने नेशनल स्कूल की कमान
संभाली लेकिन अपनी भूमिगत गतिविधियों को जारी रखा। 1927 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया

गया और बर्मा की जेल में भेज दिया गया। बर्मा जेल में एक साल तक रहकर छूटने के बाद वह
चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए। उन्होंने 1929 के लाहौर कांग्रेस
अधिवेशन में भाग लिया। वह 1930 से 1938 तक दक्षिण भारत के विभिन्न जेलों में 8 वर्ष बंद रहे।
रिहाई के बाद उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 1942 में जेल गए। उन्हें 1946 में जेल
से रिहा कर दिया गया। उन्होंने उस कठिन और चुनौतीपूर्ण माहौल में भी सामाजिक सद्भाव के लिए
काम किया। जब महात्मा गांधी नोआखाली गए थे तो वे वहां उनके साथ थे। पूर्वी पाकिस्तान के
निर्माण के बाद वे वहां जनसेवा में सक्रिय रहे। 1970 में वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण
दिल्ली आए। 9 अगस्त, 1970 को दिल्ली में ही उनका निधन हो गया।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के प्रमुख सदस्य थे:प्रेमकृष्ण खन्ना

जन्म : 2 जनवरी 1894, मृत्यु : 3 अगस्त 1993

स्वतंत्रता सेनानी प्रेमकृष्ण खन्ना का जन्म एक धनी परिवार में 2 जनवरी 1894 को लाहौर में हुआ
था। उनके पिता का नाम रायबहादुर रामकिशन खन्ना था। उनके मन में बचपन से ही देश की
आजादी के लिए काम करने की इच्छा जग गई थी। वह कांग्रेस में शामिल हुए और 1921 के
असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। बाद के दिनों में वह राम प्रसाद बिस्मिल के करीबी
बन गए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।
वह शाहजहांपुर में रेल विभाग के ठेकेदार थे। यही कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें पिस्तौल का लाइसेंस
दे रखा था। कहा जाता है कि बिस्मिल ने कई बार उनकी पिस्तौल का इस्तेमाल क्रांतिकारी कार्यों के
लिए भी किया और काकोरी कांड में इस्तेमाल किए गए माउजर के कारतूस भी खन्ना के लाइसेंस पर
खरीदे गए। काकोरी कांड का मुकदमा दो वर्ष तक चला। उन्हें काकोरी षड्यंत्र मामले में दोषी ठहराया
गया और पांच साल की सजा सुनाई गई। सजा के बाद जब वह जेल से छूट कर आए तो उन्होंने
अविवाहित रहकर देश सेवा का व्रत लिया जिस पर वह जीवन भर कायम रहे।
जेल से छूटने के बाद उन्होंने अपनी सारी निजी संपत्ति राम प्रसाद बिस्मिल मेमोरियल ट्रस्ट,
शाहजहांपुर को दान कर दी और काकोरी के नाम पर कई संस्थाएं बनाईं। प्रेमकृष्ण खन्ना को पढ़ने
का बड़ा शौक था और उन्होंने पुस्तकों का बड़ा अच्छा संग्रह कर रखा था। जेल में रहने के दौरान
उन्होंने बहुत-सी अच्छी पुस्तकें खरीदी थीं। सौ साल पूरे होने से ठीक छह महीने पहले 3 अगस्त
1993 को उनका निधन हो गया।

अगस्त क्रांति

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अगस्त महीने का अपना एक विशेष महत्व है। यह वही
महीना है जिसमें भारत की आजादी की नींव कहे जाने वाले तीन प्रमुख जनआंदोलन हुए थे। आइये
जानते हैं उन तीन प्रमुख आंदोलनों के बारे में…

असहयोग आंदोलन

अंग्रेजी शासन की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को
असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों
में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक
हड़ताल पर चले गए। शहर से लेकर गांव देहात तक इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा। सन
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी सत्ता की नींव हिल गई।
फरवरी 1922 में एक थाने पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दिए जाने की घटना के बाद महात्मा
गांधी ने यह आंदोलन वापस ले लिया।

भारत छोड़ो आंदोलन

देश के स्वतंत्रता संग्राम में 8 अगस्त की मध्य रात्रि का एक खास महत्व है। महात्मा गांधी ने
अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी।
इस आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने अपने शक्तिशाली नारे ‘करो या मरो’ के जरिए देशवासियों
को प्रोत्साहित करते हुए की। महात्मा गांधी की प्रेरणा से भारत छोड़ो आंदोलन की गूंज पूरे देश में
सुनाई देने लगी थी, जिसने हमारे देश के नौजवानों को जोश से भर दिया था।

स्वदेशी आंदोलन

स्वदेशी आंदोलन, हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रमुख आंदोलनों में से एक था। 7 अगस्त, 1905 को शुरू
किए गए इस आंदोलन ने स्वदेशी उद्योगों और स्वदेशी भावना को प्रोत्साहित किया, जिसमें हथकरघा
से जुड़े बुनकर भी शामिल थे। स्वदेशी आंदोलन को मनाने के लिए भारत सरकार ने 2015 में हर
साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (एनएचडी) मनाने का फैसला किया। पीएम मोदी ने 07
अगस्त, 2015 को चेन्नई में पहले हथकरघा दिवस का शुभारंभ किया था।

एक राष्ट्र सिद्धांत के पक्ष में लिखने वाले हैदराबाद के पहले पत्रकार:सैय्यद अहमदुल्ला कादरी

जन्म : 9 अगस्त 1909, मृत्यु : 5 अक्टूबर, 1985

स्वतंत्रता सेनानी सैय्यद अहमदुल्ला कादरी का जन्म 9 अगस्त 1909 को हैदराबाद में हुआ था। उनके
पिता का नाम शमशुल्लाह कादरी था। सैय्यद के पिता शमशुल्लाह कादरी एक प्रसिद्ध लेखक थे।
उन्होंने सैय्यद को काफी कम उम्र में साहित्यकारों से परिचित कराया। सैय्यद अहमद कादरी ने
प्रसिद्ध समाचार पत्र सल्तनत की स्थापना की। साथ ही उन्होंने पैसा और तारीख नाम के दो
समाचार पत्रों के लिए भी लिखा। कादरी हैदराबाद राज्य के पहले पत्रकार थे जिन्होंने 1946 में उर्दू
समाचार दैनिक सल्तनत में एक राष्ट्र सिद्धांत के पक्ष में लिखा था। उन्होंने राष्ट्रव्यापी आंदोलन में
शामिल होने का फैसला किया और आंध्र प्रदेश राज्य विधान परिषद के सदस्य बने। वे आंध्र प्रदेश
राज्य हज समिति के अध्यक्ष भी रहे। कादरी ने जीवन भर कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे
लुत्फुद्दौला ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। सैय्यद अहमदुल्ला कादरी
को 1966 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। 5 अक्टूबर, 1985 को उनका निधन हो
गया। n

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