अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

लक्ष्मी के जज्बे को देख हर कोई कर रहा सलाम

Share

नई दिल्ली: 32 साल की लक्ष्मी देवी का पिछले साल हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था। अभी एक साल भी पूरे नहीं हुए हैं। लेकिन, लक्ष्मी देवी ने केदारनाथ जैसे दुर्गम व कठिन सफर को पैदल चलकर पूरा किया। नई जिंदगी मिलने पर भगवान की पूजा-अर्चना की। असल में लक्ष्मी देवी की यह यात्रा हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की सफलता की भी कहानी है। जो मरीज एक साल पहले मौत के कगार पर थी, अब वह न केवल अपनी सामान्य जिंदगी जी पा रही है, बल्कि दुर्गम रास्ते को पैदल चलकर पूरा करने में सक्षम है। लक्ष्मी की रिकवरी से राम मनोहर लोहिया अस्पताल प्रशासन भी खुश है, क्योंकि इस अस्पताल का यह पहला हार्ट ट्रांसप्लांट है।

केवल 10 पर्सेंट ही काम कर रहा है हार्ट
लक्ष्मी ने एनबीटी को बताया कि वह अपने परिवार के साथ शाहदरा इलाके में रहती हैं। जब उन्हें दूसरी बेटी हुई तभी से उनकी तबीयत ठीक नहीं रहने लगी। शुरू में उनका इलाज जीबी पंत अस्पताल में चल रहा था। डॉक्टरों का मानना था कि हार्ट फेल हो गया है, बचना मुश्किल है। लक्ष्मी ने आगे अपना इलाज आरएमएल अस्पताल में कराया। अस्पताल के डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि उनका दिल केवल 10 पर्सेंट ही काम कर रहा है। यह सुनकर लक्ष्मी, उनके पति के अलावा तीनों बच्चे सन्न रह गए। उन्होंने कहा कि मुझे लगा कि बस अब मरने वाली हूं। काई उम्मीद नहीं थी।

केदारनाथ से आने के बाद लक्ष्मी अस्पताल भी आई थीं। उनकी रिकवरी हमारे लिए बड़ी कामयाबी है। सच तो यह है कि समय पर इलाज होने से सफलता बेहतर होती है। अभी तीन और मरीज वेटिंग में है। ट्रांसप्लांट के लिए हार्ट डोनेट होते ही इनकी भी सर्जरी होगी।

डॉक्टर अजय शुक्ला, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, आरएमएल अस्पताल
पति और बच्चों के साथ की केदारनाथ यात्रा
लक्ष्मी ने कहा कि इलाज के छह महीने बीते थे कि एक दिन अचानक डॉक्टर ने बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए एक हार्ट मिल गया है। मुझे जान में जान आई। लेकिन इसकी सर्जरी भी बहुत मुश्किल है। पता नहीं क्या होगा? मेरे मन में सारी बातें चल रही थीं। तभी ख्याल आया कि अगर मैं ठीक हो गई, तो पैदल ही केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ूंगी और भोलेनाथ की पूजा करूंगी। लक्ष्मी ने बताया कि पिछले साल 22 अगस्त को सर्जरी हुई। एक महीने के बाद अस्पताल से छुट्टी मिली। एक महीने में मैं नॉर्मल हो गई। दो महीने बाद अपना सारा काम खुद करने लगी। इस साल जुलाई में मैं अपने तीनों बच्चों और पति के साथ केदारनाथ गई। मैं पूरे रास्ते पैदल गई। एक किलोमीटर चलने के बाद पांच मिनट आराम करती, फिर आगे बढ़ जाती। इस तरह से पूरा सफर तय किया। मैं नई जिंदगी पाकर बहुत खुश हूं।

राहुल आनंद

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

चर्चित खबरें