~ दिव्यांशी मिश्रा
सवाल पंद्रह अगस्त का ही नहीं है, सवाल जीवन के सब रिचुअल, सब क्रियाकांडों का है। चाहे क्रियाकांड धार्मिक हो, चाहे राजनैतिक, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। मन के अंतरभाव से जो भी उठे, वह ठीक है। और जो भी मनाना पड़े, वह बिल्कुल ठीक नहीं है।
आजादी का एक आनंद अगर अनुभव हो, तो वह प्रकट होगा। स्वतंत्रता का एक बोध अगर अनुभव हो, तो वह प्रकट होगा। लेकिन वह बोध किसी को भी अनुभव नहीं होता। फिर एक मरा हुआ त्यौहार हाथ में रह जाता है। फिर हर वर्ष उसे हम दोहराए चले जाते हैं।
झंडे फहरा देते हैं, मन की कोई ऊंचाई उसके साथ नहीं फैलती। गीत गा लेते हैं, मन कोई गीत नहीं गाता। उत्सव, रंग-बिरंगे फूल लगा लेते हैं, लेकिन भीतर कोई फूल नहीं लगते। हमारा सारा जीवन ही जैसे झूठ पर खड़ा है। और हम सब कुछ झूठ कर लेते हैं।
हमारे त्यौहार झूठ हैं, हमारे सम्मान झूठ हैं, हमारी बातें झूठ हैं।
हम जो भी करते हैं वह झूठ हो जाता है; क्योंकि बहुत गहरे में हम ही झूठ हैं। हमारा किया हुआ सब झूठ हो जाता है।
जरूरत क्या है की आप कोई त्यौहार मनाएं। होना तो ऐसा चाहिए कि पूरी जिंदगी एक त्यौहार हो। होना तो ऐसा चाहिए कि सुबह-सांझ एक-एक क्षण जीवन का एक आनंद का क्षण हो। चूंकि ऐसा नहीं है, इसलिए हमें खुशी के त्यौहार मनाने पड़ते हैं।
चूंकि जिंदगी बिल्कुल दुख से भरी है। सुबह से सांझ वर्ष भर हम दुख से भरे हैं, तो अंधेरा ही अंधेरा है, तो फिर हमें दीवाली मनानी पड़ती है। दीये जला कर हम सोचते हैं कि रोशनी हो जाएगी।
जिंदगी गुलामी से भरी है, सुबह से सांझ तक गुलामी के हजार रूप हमारे ऊपर चढ़े हैं। अंग्रेजों के जाने से गुलामी नहीं जाती। चित्त गुलाम होने के हजार रास्ते जानता है। हजार तरह से हम गुलाम हैं, सुबह से सांझ तक। एक दिन स्वतंत्रता का दिन मना लेते हैं।
जब तक दुनिया में गुलामी चलती है, हजार-हजार रूपों में तब तक स्वतंत्रता के त्यौहार मनाए जाते रहेंगे। क्योंकि आदमी की जिंदगी में स्वतंत्रता नहीं है, सिर्फ त्यौहार ही मनाए जा सकते हैं।
स्वतंत्रता होनी चाहिए, स्वतंत्रता के त्यौहार का कोई भी मूल्य नहीं है। और स्वतंत्रता होगी जीवन में, तो सारा जीवन एक खुशी का और एक आनंद का और एक नाचता हुआ जीवन हो जाएगा।
लेकिन पंद्रह अगस्त मना रहे हैं। वह तो प्रतीक की बात है। खुशी कहां है? आनंद कहां है? स्वतंत्रता का प्रेम कहां है? स्वतंत्रता का उल्लास कहां है? स्वतंत्र होने की वृत्ति कहां है? वृत्ति तो गुलाम होने की है, और गुलाम बनाने की है।
आप कहेंगे, हम तो किसी को गुलाम नहीं बनाए हुए हैं। तो अपनी जिंदगी खोजने से पता चलेगा कि बाप बेटे को गुलाम बनाए हुए हैं या नहीं। और पति पत्नी को गुलाम हुए बनाए हैं या नहीं? और मां अपने बच्चों को गुलाम बनाए हुए हैं या नहीं? गुरु अपने विद्यार्थियों को गुलाम बनाने की सब कोशिश कर रहा है या नहीं?
चैबीस घंटे हम दूसरे को गुलाम बनाने की कोशिश में लगे हैं, और कोई हमें भी गुलाम बनाने की कोशिश में लगा है।
सारी जिंदगी गुलामी की कहानी है। और स्वतंत्रता के हम त्यौहार मनाते हैं। वे त्यौहार झूठे हो जाते हैं।
गुलाम आदमी स्वतंत्रता के त्यौहार कैसे मना सकते हैं? नहीं, दुनिया में स्वतंत्रता के त्यौहार नहीं चाहिए, स्वतंत्रता चाहिए। और स्वतंत्रता होगी तो सारी जिंदगी एक त्यौहार होगी; क्योंकि गुलामी से बड़ा बोझ और गुलामी से बड़ा दुख और क्या हो सकता है?
लेकिन समझें, हम एक ऐसी दुनिया हों जहां सारे लोग बीमार हों और वर्ष में एक दिन स्वास्थ्य का दिन, हेल्थ डे मनाया जाता हो। तीन सौ चैंसठ दिन लोग बीमार रहते हों और एक दिन स्वास्थ्य का दिन मनाते हों, झंडे फहराते हों, फूल लुटाते हों, नेताओं का स्वागत करते हों, उन्हीं नेताओं का जो बीमारी में उनसे आगे हैं, तभी तो नेता हो सकते हैं बीमारों के।
काफी शोरगुल मचाते हों, बहुत प्रसन्न होते हों, लेकिन वह प्रसन्नता झूठी होगी। क्योंकि तीन सौ चैंसठ दिन जो बीमार रहा है वह तीन सौ पैंसठवे दिन स्वस्थ कैसे हो जाएगा? ऊपर से चिपकाई हुई होगी, कागजी होगी। भीतर दिल रोता रहेगा, बीमारी सरकती रहेगी, ऊपर स्वास्थ्य का दिन मनाया जाता है। यह दुनिया पसंद करेंगे आप या एक ऐसी दुनिया जहां लोग स्वस्थ हों, जहां स्वास्थ्य का कोई दिवस न मनाया जाता हो, लेकिन लोग स्वस्थ हों?
लोग स्वस्थ जीते हों, जहां स्वास्थ्य का आनंद और पुलक हो?
अभी ऐसी ही हालत है, सारी दुनिया में, हर देश स्वतंत्रता के दिन मनाता है और देश का मन पूरा का पूरा गुलाम बनता चला जाता है। एक-एक आदमी गुलाम है और गुलाम बनाने में लगा है। चैबीस घंटे हम हजार तरह की गुलामी थोप रहे हैं.