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बहुत कुछ कह रहा है सीएजी रिपोर्ट का अचानक आना और गोदी मीडिया का अचानक मुखर हो जाना

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2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान की गई कथित गड़बड़ियों पर शोधपत्र प्रकाशित करने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर सब्यसाची दास से अशोका यूनिवर्सिटी ने इस्तीफा ले लिया है। सरकार की आलोचना के बाद हमने कई मीडिया संस्थानों में भी पत्रकारों को नौकरी से निकाले जाते हुए देखा है। 

ये इस बात की मिसाल है कि केंद्र सरकार ने निजी और स्वायत्त संस्थाओं पर भी किस तरह तरह शिकंजा कस रखा है। केंद्र सरकार के मंत्री बार-बार दावा करते हैं कि नौ साल में एक भी आरोप नहीं लगा है। जब सरकारी के साथ प्राइवेट संस्थाएं भी जेब में होंगी तो आरोप कहां से लगेगा?

लेकिन जरा एक मिनट रूक जाइये। कल शाम से हवा में तैर रही सीएजी रिपोर्ट से जुड़ी खबर पर गौर कीजिये। सड़क निर्माण की अलग-अलग परियोजनाओं में भारी-भरकम घोटालों के आरोप है। दिल्ली की द्वारिका एक्सप्रेस वे के मामले में अनुमानित लागत से 14 गुना ज्यादा राशि खर्च करने का इल्जाम सीएजी की रिपोर्ट में लगाया गया है। 

जब प्राइवेट मीडिया तक पर रात-दिन पहरा है तो फिर अचानक मोदी सरकार के खिलाफ इतनी बड़ी खबर कैसे आ गई?  नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) कोई और नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के सबसे चहेते आईएएस अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू हैं। मुर्मू उस समय से मोदी के साथ हैं, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

सीएजी जैसे पद मुर्मू को बिना किसी योजना के नहीं बिठाया जा सकता। फिर क्या वजह है कि गुजरात दंगों के समय नरेंद्र मोदी की कोर टीम में रहे गिरीश चंद्र मुर्मू अचानक केंद्र सरकार की पोल खोलने लगे। ये बात इतनी सामान्य नहीं है।

सीएजी की रिपोर्ट के बाद सवालों के घेरे में नितिन गडकरी हैं, जिन्हें मोदी सरकार का एकमात्र योग्य मंत्री माना जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान गडकरी अचानक मुखर हुए थे और ऐसा कहा जा रहा था कि अपनी प्लान बी के तहत आरएसएस उन्हें आगे कर रहा है। 

मुझे याद है कि जब किसी पत्रकार ने गडकरी से इस बारे में पूछा था तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया था–   “किसी भी सरकारी विज्ञापन पर कभी मेरा कोई फोटो नहीं छपता है। मैं चुपचाप अपना काम करता हूं। मुझे जीने दो भइया।”

गडकरी के साथ मोदी के रिश्तों की कहानी जग-जाहिर है। ऐसे में सीएजी रिपोर्ट का अचानक आना और गोदी मीडिया का अचानक मुखर हो जाना बहुत कुछ कह रहा है। स्क्रीन प्ले राइटर्स को इस समय पर नज़र रखनी चाहिए। नार्कोज़ जैसी वेब सीरीज को मात करने वाली ना जाने कितनी कहानियां पक रही हैं।

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