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मिजोरम में 1966 में ऐसा क्या हुआ था, जिस पर कांग्रेस और बीजेपी हैं आमने सामने: कार्रवाई का सच!

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1966 में भारतीय वायुसेना के विमानों ने मिजोरम की राजधानी आईजोल पर बम बरसाए थे, इसका कारण था मिजो नेशनल फ्रंंट की ओर से शुरू किया गया ऑपरेशन जेरिको, उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, ऐसा दावा किया जाता है कि बम बरसाने वालेे फाइटर जेट के पायलट राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी थे.

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए लोकसभा में कहा कि मार्च 1966 में मिजोरम में वायु सेना का उपयोग किया गया। उन्होंने कहा कि केंद्र की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने मिजोरम में अपने ही देशवासियों पर अपनी ही वायुसेना से हवाई हमले कराए थे। गौरतलब है कि 10 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कांग्रेस पर इस आशय का आरोप लगाया था।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस घटना का जिक्र किया था वो पूर्ण सत्य नहीं थी बल्कि अर्ध सत्य यानी आधा सच और आधा झूठ थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन सी परिस्थितियां थीं जो केंद्र सरकार को मिजोरम में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के विमानों का इस्तेमाल करना पड़ा।

1966 में मिज़ोरम में क्या हो रहा था?

आज जिसे मिजोरम कहा जाता है वह पहले असम राज्य का भाग था और मिजो हिल्स के नाम से जाना जाता था। 1966 के शुरुआत में ही मिजो हिल्स क्षेत्र में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के नेतृत्व में एक अलगाववादी आंदोलन जोर पकड़ रहा था। अलगाववादी आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने पहले से मौजूद असम राइफल्स बटालियन और कुछ बीएसएफ कंपनियों के अलावा, हिल्स में एक और असम राइफल्स बटालियन तैनात करने का फैसला किया था। इससे नाराज होकर, एमएनएफ नेतृत्व ने क्षेत्र के सबसे बड़े शहर आइजोल और फिर पूरे मिज़ो पहाड़ियों पर नियंत्रण करने के लिए ‘ऑपरेशन जेरिको’ शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने फरवरी के अंत में कुछ ही दिनों में आइजोल पर कब्ज़ा कर लिया।

मिज़ो विद्रोह पर सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस) की एक पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में, इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के रिसर्च फेलो अली अहमद ने कहा कि ऑपरेशन जेरिको को एक सैन्य लेखक ने एक “लगभग पूर्ण सैन्य तैयारी” के साथ ‘मास्टरस्ट्रोक’ के रूप में वर्णित किया था। जो कि भारतीय उपमहाद्वीप में अब तक नहीं देखी गई है।

लेख में यह समझाया गया है कि “सैन्य सटीकता इस तथ्य का परिणाम थी कि सशस्त्र संघर्ष में शामिल होने वाले बड़ी संख्या में स्वयंसेवक या तो पूर्व सैनिक थे या असम रेजिमेंट बटालियन के कर्मी थे जिन्हें अनुशासन की कमी के कारण बर्खास्त कर दिया गया था।”

विद्रोहियों के कब्जे वाले स्थानों को खाली कराने के लिए जमीन पर सेना के अभियान का नेतृत्व ब्रिगेडियर (बाद में मेजर जनरल) रुस्तम ज़ाल काबराजी ने किया, जो अगरतला में स्थित 61 माउंटेन ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे।

मेजर जनरल काबराजी, सिग्नल कोर के एक अधिकारी, माउंटेन ब्रिगेड की कमान संभालने वाले पहले सिग्नल अधिकारी थे। उनकी ब्रिगेड को उस समय मिज़ो हिल्स में ले जाया गया था जब विद्रोही आइजोल में प्रवेश कर चुके थे।

मिज़ो विद्रोहियों ने 1 असम राइफल्स के मुख्यालय को घेर लिया था, जहां डिप्टी कमिश्नर ने शरण ली थी, और सभी कैदियों को स्थानीय जेल से रिहा कर दिया था। सरकारी खजाने से बड़े पैमाने पर हथियार और नकदी लूटी गई। “स्वतंत्रता” की घोषणाएं की गईं और असम राइफल्स के आत्मसमर्पण की मांग उठाई गई।

जवाब में, असम राइफल्स बटालियन को हेलीकॉप्टरों से भेजने का प्रयास किया गया, लेकिन मिज़ो विद्रोहियों द्वारा उन पर गोलीबारी की गई। ब्रिगेडियर काबराजी ने विद्रोहियों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद ज़मीन पर ऑपरेशन का नेतृत्व किया, जिससे आइज़ॉल तक पहुंचने में कई दिन लग गए।

भारतीय वायुसेना कैसे शामिल हुई?

जैसे ही सेना ने विद्रोहियों को खदेड़ने के लिए संघर्ष किया, वायु सेना को बुलाया गया। हवाई हमले से सेना को उन विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करने में मदद मिली जिन्हें “स्वतंत्र” घोषित किया गया था। महीने के अंत तक, हवाई अभियानों की सहायता से, ब्रिगेडियर काबराजी की ब्रिगेड ने मिजोरम पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया था।

भारतीय वायुसेना के संचालन पर शोध करने वाले अंचित गुप्ता एक पोस्ट में लिखते हैं कि दो IAF स्क्वाड्रन, 29 स्क्वाड्रन और 14 स्क्वाड्रन, मुख्य रूप से हवाई ऑपरेशन में शामिल थे। 29 स्क्वाड्रन ने बागडोगरा स्थित तूफानी (फ्रांसीसी मूल डसॉल्ट ऑरागन) को उड़ाया, जबकि 14 स्क्वाड्रन ने जोरहाट से हंटर्स को उड़ाया।

गुप्ता के अनुसार, 2 मार्च, 1966 को जैसे ही एमएनएफ असम राइफल्स मुख्यालय पहुंचा, उसने लाउंगलेई और चनफई में सेना के प्रतिष्ठानों पर कब्जा कर लिया। भारतीय वायुसेना की प्रारंभिक भूमिका सेना के प्रतिष्ठानों को फिर से संचालित करना था, जिसके लिए गुवाहाटी और जोरहाट से डकोटा और कारिबू परिवहन विमानों को बुलाया गया था।

ऐसे ही एक मिशन में, पूर्वी वायु कमान के एओसी-इन-सी, एयर वाइस मार्शल वाईवी मालसे द्वारा उड़ाए गए, डकोटा को सिलचर के पास कुंभीग्राम एयरबेस पर उतरने से पहले 21 गोलियां लगीं। गुप्ता के अनुसार, यही वह घटना थी जिसके कारण आक्रामक हवाई अभियान की आवश्यकता पड़ी।

वास्तविक मिशन 5 मार्च को शुरू हुआ, जिसमें सेना द्वारा उपलब्ध कराए गए लक्ष्यों के खिलाफ 30 मिमी तोपों और टी-10 रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया।

गुप्ता ने आगे कहा कि 7 मार्च तक, विद्रोहियों ने जंगलों को जलाना शुरू कर दिया था, जिससे लक्ष्य निर्धारित करना मुश्किल हो गया था। लेकिन तूफ़ानी विमानों ने अपनी आक्रामक कार्रवाई जारी रखी। 8 मार्च को, डेमागिरी में मिज़ो आपूर्ति लाइन नष्ट हो गई, जिससे क्षेत्र में असम राइफल्स इकाई को काफी मदद मिली। 11 मार्च तक, सेना लक्ष्यों पर धुआं हथगोले फेंकने की एक बेहतर अंकन प्रणाली लेकर आई, जिसे पायलटों ने नष्ट कर दिया। 12 मार्च दिमागिरी के खिलाफ आखिरी मिशन था और 17 मार्च को स्क्वाड्रन को बेस पर लौटने का आदेश दिया गया था।

क्या था ऑपरेशन जेरिको

मिजोरम में 28 फरवरी 1966 को भारतीय सुरक्षाबलों को बाहर निकालने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया गया था. इसका नाम था ‘ऑपरेशन जेरिको’. यह ऑपरेशन शुरू किया था मिजो नेशनल फ्रंट ने. यह वो दौर था जब ताशकंद में तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो चुका था. इसके ठीक 13 दिन बाद इंदिरा गांधी ने देश की कमान संभाली थी, लेकिन पीएम की कुर्सी संभालते ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मिजो नेशनल फ्रंट से निपटने की थी. दरअसल इंदिरा गांधी के पीएम बनने से ठीक तीन दिन पहले मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा ने इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो को पत्र लिखकर असम से जुड़े मिजोरम को अलग देश बनाने की इच्छा जाहिर की थी.

मिजोरम में 1966 में शुरू हुआ वो ऑपरेशन जेरिको इतना भयानक था कि उसे दबाने के लिए भारतीय वायुसेना ने अपने ही देश के एक प्रमुख हिस्से पर बम बरसाए थे. बम बरसाने की इसी घटना को लेकर कांग्रेस और भाजपा में सियासी वार और पलटवार का दौर चल रहा है, जिसमें ये कहा जा रहा है कि वहां भेजे गए फाइटर जेट के पायलटों में राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी भी शामिल थे. आइए समझते हैं कि 57 साल पहले मिजोरम में आखिर ऐसा क्या हुआ था जिसे लेकर भाजपा-कांग्रेस में बहस चल रही है.

1966 में मिजोरम असम का हिस्सा था. इसे आजाद कराने के लिए मिजो नेशनल फ्रंट ने ऐलान कर दिया था. उस वक्त भारतीय सेना के जवान वहां तैनात थे, जिन्हें खदेड़ने के लिए मिजो नेशनल फ्रंट ने ऑपरेशन जेरिको शुरू किया था. 28 फरवरी 1966 को इसका ऐलान किया गया और सबसे पहले आईजोल और लुंगलाई में सैन्य छावनी पर हमला किया गया. 29 फरवरी को मिजो नेशनल फ्रंट ने ऐलान कर दिया कि मिजोरम अब आजाद है.

लूटा गया सरकारी खजाना, सैन्य हथियार भी लूटे

मिजो नेशनल फ्रंट का हमला रणनीतिक तौर पर इतना मजबूत था कि उसका मुकाबला ही नहीं किया जा सका. उग्रवादी हावी थे, मिजोरम की राजधानी आइजोल में सरकारी खजाना लूटा गया. चंफाई में सैनिकों से हथियार लूट लिए गए. जवानों को बंधक बना लिया गया और आईजोल की मुख्य टेलीफोन एक्सचेंज को निशाना बनाया गया, ताकि दिल्ली तक जानकारी न पहुंचे.

पहले भेजे गए हेलीकॉप्टर

किसी तरह सूचना दिल्ली तक पहुंची, दो शहर मिजो नेशनल फ्रंट के कब्जे में थे, पहले हेलीकॉप्टर भेजे गए, ताकि सैनिक और हथियार पहुंचाए जा सकें, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. मिजो नेशनल फ्रंट के हौसले बुलंद होते जा रहे थे, हालत ये हो गई थी असम राइफल्स के हेडक्वार्टर से तिरंगे को उतारकर मिजो नेशनल फ्रंट का झंडा फहरा रहा था. इसके बाद वायुसेना को जिम्मेदारी दी गई. ईस्ट मोजो की एक रिपोर्ट के मुताबिक 5 मार्च 1966 को भारतीय वायुसेना के चार विमानों ने आईजोल को घेरकर बमबारी शुरू की. 13 मार्च तक ये संघर्ष चलता रहा. वायुसेना की जवाबी कार्रवाई से उग्रवादियों का मनोबल टूटा और भारतीय सेना ने फिर से मिजोरम पर कब्जा जमाया.

बमबारी से हुई थी भारी तबाही

मिजोरम पर हुई उस बमबारी से भारी तबाही हुई थी. हालांकि सरकार और सेना की ओर से कभी इसकी पुष्टि नहीं की गई. 1966 में कोलकाता से निकलने वाले हिंदुस्तान स्टैंडर्ड में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की ओर से एक रिपोर्ट छापी गई थी, जिसमें ये दावा किया गया कि मिजोरम में वायुसेना के विमान गए तो थे, लेकिन सिर्फ एयरड्रॉप और आपूर्ति के लिए. हालांकि सवाल उठते रहे कि आखिर एयरड्रॉप और आपूर्ति के लिए फाइटर जेट क्यों भेजे गए थे.

ऐसे हुई थी मिजो नेशनल फ्रंट की स्थापना

1960 के दशक में मिजो हिल्स असम का ही एक अंग था. 1960 में असम सरकार ने असमिया को राजकीय भाषा घोषित किया, जिसका मिजो लोगों ने विरोध किया. असम सरकार के फैसले के बाद वे लोग सरकारी नौकरी नहीं पा सकते है जिन्हें असमिया नहीं आती थी. इसी के विरोध में मिजो नेशनल फ्रंट का गठन हुआ, इसके संस्थापक लालडेंगा थे. पहले संगठन ने शांतिपूर्वक तरीके से अपनी बात रखी, लेकिन जब 1964 में असम रेजिमेंट ने अपनी एक बटालियन को बर्खास्त कर दिया तो मामला बिगड़ गया. इस बटालियन में ज्यादातर सैनिक मिजो थे, जो मिजो नेशनल फ्रंट से जुड़े. उग्रवादियों का साथ मिला और यह संगठन हिंसा पर उतर आया.

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