गांधीजी और हेनरी पोलाक
दोस्ती ने अंग्रेज़ को बनाया स्वतंत्रता सेनानी
महात्मा गांधी हेनरी पोलाक नामक पत्रकार से दक्षिण अफ्रीका में मिले। हेनरी गांधीजी को देखते ही उनसे बेहद प्रभावित हो गए। यहां वे दोस्त बने और वहां हेनरी से गांधीजी की नज़दीकियों से वाक़िफ़ लंदन निवासी उनके पिता ने गांधी को पत्र लिखकर हेनरी की शादी लंदन में ही रहने वाली मिली नामक उस युवती से रोकने की गुज़ारिश की, जिसे हेनरी पसंद करते थे। गांधीजी ने पत्र का जिस स्नेह और परवाह के साथ जवाब दिया, उससे पोलाक के पिता शादी के लिए राज़ी हो गए। हेनरी यहूदी थे और मिली ईसाई। दिसंबर 1905 में मिली जोहांसबर्ग पहुंचीं। जब दक्षिण अफ्रीका के रजिस्ट्रार फॉर यूरोपियन मैरिज के सामने गांधीजी बतौर गवाह इस युगल के साथ खड़े हुए, तो रजिस्ट्रार ने एक हिंदू की गवाही में ईसाई-यहूदी युगल के विवाह से इंकार किया और कहा कि वे अगले दिन आएं।
अगला दिन रविवार था और उसके बाद नववर्ष। मिली और हेनरी यूं भी इस विवाह के लिए लंबा इंतज़ार कर चुके थे। गांधी जी उसी समय अर्ज़ी लेकर चीफ मजिस्ट्रेट के दफ़्तर जा पहुंचे और उनसे अपील की। चीफ मजिस्ट्रेट गांधीजी से पहले भी मिल चुके थे। वे उनकी बात सुन हंस पड़े और उसी क्षण रजिस्ट्रार के लिए नोट जारी करके शादी संपन्न कराने के निर्देश दिए।
इस दंपती से गांधीजी की दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी। दक्षिण अफ्रीका में दोनों उनके परिवार के साथ ही रहे। मिली गांधीजी के बच्चों को पढ़ाती थीं। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान मिली अपने बच्चों के साथ भारत में भी रहीं और हेनरी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। वे गांधीजी के क़रीबी सलाहकार भी रहे, उनके साथ जेल भी गए। क़ैद के दिनों में गांधीजी के अभियानों का संचालन मिली पोलाक ने संभाला।
हेनरी फोर्ड और एडिसन
ताउम्र सीने से लगाए रखीं मित्र की सांसें
बी सवीं सदी के दो महानायक जिनकी लगन, मेहनत और उपलब्धियों से दुनिया प्रेरणा पाती है, आज जानते हैं उनकी दोस्ती की प्रेरक कहानी।
हेनरी फोर्ड हमेशा से ही एडिसन की कलात्मकता के दीवाने थे। 1896 में न्यूयॉर्क में आयोजित एक सम्मेलन में फोर्ड को अपने नायक एडिसन से मिलने का मौक़ा हाथ लगा। इस छोटी-सी मुलाक़ात के बाद ही परवान चढ़ी इनकी दोस्ती, जो कई रोमांचकारी यात्राओं, हंसी-ठिठोली और बौद्धिक चर्चाओं से फलती-फूलती रही। उन दोनों को एक-दूसरे का साथ इतना भाता था कि 1916 में फोर्ड ने एडिसन के घर के पास ही अपना घर बना लिया। वहां वे अपनी छुट्टियों का समय बिताया करते थे। यह घर आज भी दक्षिण-पश्चिम फ्लोरिडा में उनकी दोस्ती की मिसाल बनकर खड़ा है।
अंतिम समय में जब एडिसन ने व्हीलचेयर पकड़ ली तब फोर्ड ने भी अपने लिए एक व्हीलचेयर बनवा ली ताकि वे जिंदगी की रेस में बराबरी से मित्र का साथ दे सकें। और एक ख़ास बात यह कि एडिसन के बेटे चार्ल्स ने उनके जीवन की आख़िरी सांसों को एक टेस्टट्यूब में क़ैद करके, फोर्ड को उनके दोस्त की अंतिम निशानी के तौर पर सौंप दिया। इसे फोर्ड ने हमेशा अपने दिल से लगाए रखा।
हेलेन केलर और मार्क ट्वेन
उम्र में 40 साल के फ़ासले वाले क़रीबी दोस्त
मा त्र 14 वर्ष की हेलेन केलर जो बीमारी के चलते दृष्टिहीन और बधिर हो चुकी थीं, 1895 में पहली बार एक ऐसे शख़्स से मिलीं, जिसने उन्हें उनकी कमज़ोरी नहीं बल्कि उनकी ख़ूबियों से रूबरू करवाया। ये शख़्स थे लोकप्रिय लेखक मार्क ट्वेन।
हेलेन केलर ने मार्क ट्वेन से हुई मुलाक़ात और उनके प्रभाव का उल्लेख अपनी मां से भी किया। उन दिनों हेलेन जैसे बच्चों की शिक्षा बहुत महंगी थी। तब मार्क ट्वेन ने अपने एक धनी मित्र को पत्र लिखा, ‘यह अमेरिका के हित में नहीं होगा कि इस मेधावी बच्ची को धनाभाव के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़े। अगर यह पढ़ पाई तो इतनी शोहरत हासिल करेगी कि कई पीढ़ियां उसे याद रखें।’ मार्क की मदद से हेलेन ने हार्वर्ड के रेडक्लिफ कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। ब्रेल लिपि के माध्यम से उन्होंने अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन व लैटिन भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। इस वक़्त तक हेलेन और मार्क अच्छे दोस्त बन चुके थे। दोनों की उम्र में लगभग 40 साल का अंतर था, पर बक़ौल हेलेन, उनके जीवन को यदि कोई क़रीब से समझ पाया तो वे मार्क ट्वेन ही थे।
हेलेन अपने मित्र मार्क के बारे में कहा करती थीं, ‘वे जानते हैं कि दृष्टिहीन होने पर कैसा महसूस होता है और समर्थ लोगों की तरह की फ़ुर्ती न होने से कैसा लगता है। उन्होंने कभी नहीं कहा कि नहीं देख पाना कितना दुखद है, मुझे कभी कमतर महसूस नहीं कराया।’ मार्क से हुई लंबी चर्चाओं और उनमें बराबर की अहमियत मिलने का ज़िक्र भी हेलेन ने किया है। हेलेन सकारात्मक सोच की मालिक थीं और अक्सर अपने मित्र के निराशावादी रवैए पर चुटकी लिया करती थीं। हेलेन और मार्क की दोस्ती का अनूठापन आज भी उन दोनों के लिखे ख़तों में जि़ंदा है।