~ पुष्पा गुप्ता
हमारी पृथ्वी हर सेकंड लगभग 230 किमी की रफ्तार से सूर्य के साथ-साथ मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगा रही है। एक चक्कर को पूरा होने में लगभग 25 करोड़ साल का वक़्त लगता है। पृथ्वी के इस सफर के दौरान हर साल लगभग 40000 टन इंटरस्टेलर धूल पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करती है और समय के साथ सेटल होकर आपके घर, जमीन, मोहल्ले में गिर जाती है। तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जाए कि समय के साथ पृथ्वी भारी हो रही है? जवाब है – नहीं… वास्तव में पृथ्वी का द्रव्यमान समय के साथ घट रहा है।
. हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसें बेहद हल्की होती हैं और किसी भी द्रव में हल्की चीजों का क्या होता है? उत्तर है कि हल्की चीजें द्रव की सतह पर ऊपर आ कर तैरने लगती हैं। बस इसी तरह, हाइड्रोजन और हीलियम भी ऊपर उठते हुए वातावरण की सतह पर, यानी सबसे ऊपर तैरती रहती हैं।
सतह पर मौजूद होने के कारण सोलर रेडिएशन इनसे टकरा कर इन गैसों की ऊर्जा बढाता रहता है। ऊर्जा बढ़ती है, तो इन गैसों के अणुओं की गति भी बढ़ती है। और अंततः, ये गैसीय अणु पृथ्वी की एस्केप वेलोसिटी के बराबर गति प्राप्त कर के स्पेस में मुक्त सफर पर निकल जाते हैं। कई अनुमानों के अनुसार, हर सेकंड लगभग 3 किलो हाइड्रोजन और हीलियम पृथ्वी को टाटा-बॉय-बॉय कर देती हैं।
इसके अलावा पृथ्वी के केंद्र में मौजूद यूरेनियम और थोरियम जैसे भारी पदार्थ रेडियो-एक्टिव क्षय होने के कारण छोटे तत्वों में टूटते रहते हैं और काफी सारी ऊष्मा रिलीज करते हैं, जिस ऊष्मा से पृथ्वी का केंद्र गर्म रहता है। कुछ अनुमानों के अनुसार हर साल 16000 किलो पदार्थ ऊष्मा के रूप में पृथ्वी से बाहर निकल जाता है।
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इन सब चीजों को ध्यान में रख कर गुणा-भाग करें तो हमें प्राप्त होता है कि हर साल पृथ्वी का द्रव्यमान लगभग 60000 टन कम हो जाता है। अब चूंकि पृथ्वी का खुद का द्रव्यमान लगभग 500 खरब-खरब टन है, इसलिए अगर कुछ हजार टन हर साल गायब भी हो जाये, तो भी पृथ्वी की सेहत पर अरबों सालों तक कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
इसलिए, पृथ्वी की डायटिंग को लेकर आपको लोड लेने की कतई आवश्यकता नहीं।
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हम्म, अब यहाँ रुक कर यह भी पूछा जा सकता है कि ये द्रव्यमान आखिर होता क्या है?
. सबसे पहले एक प्लेन कपड़े को इमेजिन करिये। अब इमेजिन करिये कि बहुत सारे कपड़े एक साथ गुथे हुए हैं। ये गुथे हुए कपड़े क्वांटम फील्ड हैं जो मिलकर ब्रह्मांड के मूल ढांचे यानी स्पेसटाइम को बनाते हैं। इन क्वांटम फील्ड में Ripples यानी लहरें उठती हैं जिन्हें हम पार्टिकल्स के रूप में जानते हैं।
हर पार्टिकल – चाहें इलेक्ट्रान हो या क्वार्क या कुछ और – अपने संबंधित क्वांटम फील्ड में एक लहर मात्र ही है। इन पार्टिकल्स को आप “मूलभूत पदार्थ” कह सकते हैं, द्रव्यमान इससे हटकर एक अलग चीज होती है।
. जब सृष्टि का जन्म हुआ तो स्पेसटाइम में ये पार्टिकल्स/कण प्रकाश की गति से मुक्त विचरण करते थे। सृष्टि में कुछ सार्थक हो सके, इसलिए आवश्यक था कि ये पार्टिकल्स अपनी गति को त्याग, एक-दूसरे के समीप आ कर, परमाणुओं का निर्माण करें।
. इस प्रयोजन हेतु बिगबैंग होने के बाद, एक सेकंड के खरबवें हिस्से के भीतर, ब्रह्मांड में हिग्स फील्ड का उदय हुआ। हिग्स फील्ड का मुख्य काम अन्य फील्ड में उठ रही लहरों को चलने से रोकना, या यूं कहें तो, उनके रास्ते मे अवरोध उत्पन्न करना होता है।
जितना ज्यादा हिग्स फील्ड से संपर्क, उतना ही कण की गति बाधित होती है, और द्रव्यमान बढ़ता जाता है। फोटान जैसे कण हिग्स फील्ड से बिल्कुल संपर्क नहीं करते इसलिए द्रव्यमान-हीन होकर प्रकाश की गति से ब्रह्मांड में भटकते हैं।
तो यहां यह साफ है कि – द्रव्यमान वह एक्सट्रा ऊर्जा है, जो पार्टिकल्स को हिग्स फील्ड से संपर्क करने पर प्राप्त होती है और पार्टिकल्स को गति करने से रोकती है।
. अब मैं जाते-जाते आपको एक रोचक बात और बता दूँ। ये एक पॉपुलर धारणा है कि कणों को द्रव्यमान हिग्स फील्ड से ही प्राप्त होता है – जो कि आंशिक तौर पर ही सही है। एक परमाणु के कुल द्रव्यमान का 2% हिस्सा ही हिग्स फील्ड से पैदा होता है। बाकी का 98%? वेल, इस दुनिया में सिर्फ हिग्स फील्ड ही नहीं है जो कणों को गति करने से रोके।
. परमाणु के केंद्र में मौजूद क्वार्क लगभग प्रकाश गति के बराबर रफ्तार धारण करते हैं। इस रफ्तार पर उन्हें परमाणु से निकल कर ब्रह्मांड में मुक्त सफर पर निकल जाना चाहिए था। पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि “स्ट्रॉन्ग फ़ोर्स” नामक एक बल क्वार्क को बांधे रखता है।
पदार्थ का 98% द्रव्यमान क्वार्क को गति करने से रोकने वाली इस स्ट्रांग फ़ोर्स की बाइंडिंग एनर्जी और क्वार्क की काइनेटिक एनर्जी के योग से आता है।
. 2013 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले पीटर हिग्स और फ्रांस्वा अंगलेयर हैं जिन्होंने हिग्स मेकेनिज़्म खोजा 1964 में पर नोबेल मिला 49 साल बाद, जब फाइनली हिग्स बोसान की खोज की पुष्टि हो गयी और इसी खोज के साथ यह भी कन्फर्म हो गया कि हमारा ब्रह्मांड एक बालू के ढेर पर टिका हुआ है जो कभी भी भरभरा के गिरेगा और नष्ट हो जाएगा।