अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*हँसती नज़र, सीना जख्मों भरा*

Share

शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी इस कहावत को बार बार दोहरा रहे थे। पहला सगा पड़ोसी
मैने पूछा आज एक ही कहावत को आप बार बार क्यों रट रहे हो?
सीतारामजी ने मुझसे पूछा आप अख़बार पढ़ते हो?
मैने कहा हां पढ़ता हूं।
सीतारामजी ने कहा अख़बार में नगर के समाचारों में कैसे समाचार पढ़ने को मिल रहे हैं?
मैने कहा हां मैं समझ गया,एक समय था जब पहला सगा पड़ोसी वाली कहावत चरितार्थ होती थी। सच में आज पड़ोसी ही पड़ोसी का दुश्मन हो रहा है।
छोटी सी बात पर हिंसक हो रहा है। चाकू,बंदूक तो सहज ही निकाल लेता है।
सीतारामजी ने कहा मानव में मानवीयता समाप्त हो रही है।
इस बात पर शायर बशीर बद्र
का यह शेर सटीक है।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

मैने कहा सच में कुत्ते की कुत्ते ही जैसे हरक़त पर आदमी जानवर बन जाता है।
रास्ते चलते जरा सा किसी को धक्का ही लग जाता है,जिसको धक्का लगता है,वह अपना आपा खो देता है,सामने वाले को सीधा परलोक पहुंचा देता है।
आपसी प्यार मोहब्बत जैसे शब्द तो पुस्तकों में कैद होकर आजीवन कारावास में चले गए हैं।
भारतीय नारी जिसे पतिव्रता कहा गया है,वह अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपना स्वयं का सुहाग स्वयं ही नष्ट कर रही है।
धैर्य रखने की मानसिकता समाप्तसी हो गई है।
शौर्य की गाथाओं से भरी पुस्तकें तो ग्रंथालयों में धूल खाने को मजबूर है।
सीतारामजी ने कहा थोड़े दिनों बाद समाचार पत्रों में,आज के कॉलम में एक कॉलम होगा आज कितनी हत्याएं हुई है।
दूसरे कॉलम में होगा,आज आत्महत्याओं की संख्या,तीसरे कॉलम में होगा,आज मानसिक रोगियों के अवसाद में जाने वालों की तादाद में कितनी वृद्धि हुई।
एक कॉलम में निम्न खबरे पढ़ने को मिलेगी।आज चादर के बाहर पैर पसारने की मानसिकता से पीड़ित लोगों ने मनमाने प्रतिशत ब्याज पर ऋण लिया और ऋण चुकाने में असमर्थ होने पर गरल को अपने हलक में उतारा या गले में रस्सी की फांस बनाकर कितने लोगों ने ख़ुदकुशी की।
समाचार पत्रों में खबरों के ऐसे कॉलम बनेंगे?
घोटालों के कॉलम की बात करना फजूल है।

अपने देश के सभी राजनेता निहायत ही ईमानदार हैं और तकरीबन सभी भ्रष्टाचार के विरोधी हैं?
सीतारामजी ने चर्चा को समाप्त करने के पूर्ण शायर मैराज नक़वी लिखित एक ग़ज़ल के निम्न शेर पढ़े।
फूल ज़ख़्मी हैं ख़ार ज़ख़्मी है
अब के सारी बहार ज़ख़्मी है
अब किसी पर यक़ीं नहीं है मुझे
इस क़दर ए’तिबार ज़ख़्मी है

शशिकांत गुप्ते इंदौर

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें