अग्नि आलोक
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*सतही सवाल न रहे सतही?*

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी ने मुझे चंद्रयान की सफलता की बधाई दी।
मैने कहा पचास वर्षों के निरंतर प्रयास के बाद अपने देश का अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में सफल हुआ।
मैने कहा अपने वैज्ञानिक बधाई के पात्र है।
सीतारामजी ने कहा हां सारा श्रेय वैज्ञानिकों को ही है।
चंद्रयान की सफलता की पारस्परिक बधाई के बाद सीतारामजी ने पूछा आज क्या लिखा?
मैने कहा आज कोई विषय सूझ नहीं रहा है।
सीतारामजी ने कहा चंद्रयान
तो चंद्रमा की सतह पर पहुंच गया लेकिन अपने देश की धरा पर जो सतही(बुनियादी) प्रश्न है वे कब तक धरे की धरे ही रहेंगे?
मैने कहा जबतक हम सिर्फ पढ़े लिखे ही रहेंगे,शिक्षित नहीं होंगे?
सीतारामजी कहा सरलता से समझने वाली भाषा में कहो न literate ही रहेंगे। Educated नहीं होंगे।
मैने कहा हां जबतक सिर्फ पढ़े लिखे ही होंगे तबतक अपने देश में यातायात के नियमों का पालन करने के लिए प्रत्येक चौराहों पर पुलिस कर्मियों तैनात होना अनिवार्य होगा?
हम जबतक सिर्फ पढ़ेलिखें ही होंगे तबतक प्रश्न वाचक को सिर्फ व्याकरण में ही पढ़ेंगे,प्रश्न का प्रयोग व्यवहार में नहीं करेंगे?
शिक्षित होंगे तो हम भावनात्मक रूप से अपने अमूल्य वोट का उपयोग नहीं करेंगे।
शिक्षित होने पर हम सभी सियासी दलों के घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूर्ण करने की समयावधि निश्चित करने के लिए सभी दलों को बाध्य करेंगे।
शिक्षित होने पर हमारे अंतर्मन में सर्वधर्म समभाव की सोच बनेगी।
सिर्फ पढ़ेलिखे होंगे तो हम जातपात की संकीर्णता में जकड़े ही रहेंगे।
सिर्फ पढ़ेलिखें लोग एजाज़ मतलब चमत्कार पर यकीन करते हैं। इस संकीर्ण सोच पर शायर अशरफ़ मालवी ने क्या खूब कहा है।
हुकूमत से एजाज़ अगर चाहते हो
अंधेरा है लेकिन लिखो रोशनी है

इसीतरह की संकुचित सोच पर शायर दुष्यंत कुमार फरमाते हैं
यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह का जलसा हुआ होगा
जबतक हम शिक्षित नहीं होंगे तबतक हम किस तरह के लोगों से नसीहत लेने के लिए मजबूर होंगे यह समझाया अपने शेर में शायर माजिद देवबंदी ने।
जिसके किरदार पे शैतान भी शर्मिंदा है
वो भी आये हैं यहां करने नसीहत हमको

हम शिक्षित होंगे तो पूर्ण रूप से जागरूक होंगे। शिक्षित होने पर हमें शायर तरन्नुम कानपुरी का यह शेर सटीक लगेगा।
ऐ क़ाफ़िले वालों, तुम इतना भी नहीं समझे
लूटा है तुम्हे रहज़न ने, रहबर के इशारे पर

सीतारामजी ने मेरा लिखा हुआ सुनने के बाद कहा बस अपनी कलम को यहीं पूर्ण विराम लगा दो।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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