अग्नि आलोक
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 *रायता यूं फैलता है?*

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी कह रहे थे कि,

चंद्रयान की सफलता की बधाई संदेशों का आदान प्रदान सम्पन्न हुआ। 

वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के बाद उन्हें सफलता मिली,वास्तव में वे बधाई के पात्र है।

अपने देश के कुछ राजनेताओं ने अति उत्साह के साथ बधाई देते समय आदतन अपने सामान्य ज्ञान उपयोग नहीं किया?

एक राजनेता ने इसरो (Indian Space Research Organization) की जगह NAS A की उपलब्धि बताई। एक ने तो अंतरिक्ष यात्रियों को ही चांद पर पहुंचने की बधाई दे डाली।

कुछ लोग चंद्रयान की सफलता का श्रेय राजनैतिक तौर पर इस तरह लेंगे।

यदि अपने देश की सड़कों के गड्ढे पर जब भी विरोधी प्रश्न उठाएंगे तो अब What about का इस्तेमाल इसतरह होगा What about moom पर जो गड्ढे हैं?

वैसे देश के मध्य में स्थित प्रदेश जिसे मध्य प्रदेश कहा जाता है,इस प्रदेश की सड़कों की तुलना तो न्यू यॉर्क की  सड़कों से की गई है। इस प्रदेश की सड़कों को स्वप्न सुंदरी के रूखसार की उपमा दी गई है। सड़कों के निर्माण के लिए ईमानदार सरकार,ईमानदार ठेकेदार,के द्वारा उत्तम मेटेरियल वापरने के बाद भी किसी अज्ञात संक्रमण के कारण सड़कों को चेचक की बीमारी लगने से सड़कों के रूखसार ना सिर्फ खुरदुरे हो जातें हैं,बल्कि रूखसार पर बड़े बड़े गड्डे हो जातें हैं।

मैने कहा सीतारामजी ने आप की मानसिक स्थिति इस कहावत जैसी ही है,

*काजी जी दुबले क्यों शहर के अंदेशे से*

यह कहावत कहने के बाद मैने कहा आप शायद विज्ञापन नहीं देखते हैं?

विज्ञापनों को देखने,पढ़ने और सुनने के बाद आप वर्तमान व्यवस्था पर कटाक्ष करना छोड़ दोगे।

सारा देश धार्मिक वातावरण में मग्न है। देश के प्रत्येक शहर माहानगर,गांव,और छोटे कस्बों में,विभिन पुराणों की कथाएं हो रही हैं। 

बहुत से लोग मुफ्त धार्मिक यात्राओं का लुफ्त उठा रहे हैं।

राजनैतिक व्यवस्था वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त तीर्थ यात्राएं करवाकर,मुफ्त में ही पुण्य कमाने की सुविधा मुहैया करवा रही है।

मैने कहा इन दिनों विकास की नई परिभाषा अर्थ शास्त्र के सारे सिद्धांतो के विपरित ही गढ़ी जा रही है।

मसलन एक व्यक्ति कीमती वाहन खरीदता है,सर्व सुविधायुक्त भव्य भवन निर्मित करता है। सारी सुख सुविधाओं उपलब्ध करवा लेता है। यह सब वह वित्तीय संस्थाओं से मतलब बैंको से ऋण लेकर क्रय करता है। आश्चर्य ऋण लेने के पूर्व उस व्यक्ति की आय Income की कोई गारंटी  नहीं होती है।

कर्ज लेकर फर्ज पूरा करने की यह नई पद्धति के कारण विकास सिर्फ विज्ञापनों में ही दर्शाया जा सकता है। वास्तव में तो नतीजा शून्य बटा सन्नटा ही रहेगा।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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