पति पत्नी दोनों डाक्टर थे। पत्नी ने तलाक़ का मुकदमा दायर कर दिया था। फैमिली कोर्ट में फैसले से एक दिन पूर्व जज ने, एक और अंतिम मौक़ा देते हुए दोनों से पृथक्-पृथक् अकेले में सवाल जवाब किये। जज साहब ने डॉ0पति को तो इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह पत्नी के साथ रहने को तैयार है,किन्तु डॉ0 पत्नी को तैयार नहीं कर पाये। आखिर तलाक हो गया। एक दिन अस्पताल में जज साहब और महिला डॉ0 मिल गयेा औपचारिकतावश महिला डॉ0 ने अपने चेम्बर में उन्हें चाय पर आमंत्रित कर लिया। चाय पीते हुए वे बोले- ‘डा0 साहिबा, अब यहाँ मैं न जज हूँ, और न आप वादी, आपका तलाक़ हो चुका है, लेकिन मैं आपकी खामोशी का राज़ नहीं समझ पाया। आप द्वारा तलाक़ का मूल कारण वह नहीं था, जो साक्ष्यों और घटनाओं से सिद्ध हुआ है। वह तलाक़ की वज़ह कतई नहीं थे। आपको कोई एतराज न हो, तो मैं अब वास्तविकता जानना चाहता हूँ।’
‘मुझे इससे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता जज साहब, कल उसके साथ कुछ भी घटे, उसे सज़ा हो, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं बस उस वहशी से मुक्त होना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे तलाक़ के कारण उसका जीवन, उसकी नौकरी ख़तरे में पड़ जाये। मैं घाव को नासूर नहीं बनने देना चाहती थी।’ डॉ0 महिला ने कहा।
‘फिर तो अवश्य ही कोई गम्भीर मामला था।’
‘हम दोनों ही डाक्टर हैं, मैं चार माह से गर्भवती हूँ, एक तो मैं नहीं चाहती थी, कि मेरा गर्भ नौ महीने में, मेरे तनाव के कारण अपाहिज या कोई अनोखी बीमारी लेकर पैदा हो। मैं यह समय बहुत ही स्वंस्थम, शांति और खुशी खुशी बिताना चाहती थी। हर तनाव मुझे स्वीकार था, किन्तु हद तो तब हो गयी जब —–‘ वह रुक गई, उसका गला भर्राने लग गया था। संयत हो कर वह फिर बोली- ‘वे लड़का चाहते थे और उसके लिए भ्रूण परीक्षण पर जिद कर रहे थे, जिसे करवाना हमारे लिए बहुत आसान था,लेकिन यह मेरा अपमान था और भ्रूण परीक्षण एक सामाजिक अपराध भी है।’
‘ओह!’ जज साहब के मुँह से निकला।
‘हाँ, इसीलिए मैंने तलाक़ का यह कारण नहीं लिखा था, मुझे तो आसानी से तलाक़ मिल जाता, किन्तु उन्हें सज़ा हो जाती, उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता। अपने पेशे से वे बहुत मेहनती और ईमानदार हैं,इसलिए मैंने मूल कारण को अलग रखा। सज़ा उन्हें दिलवानी थी, उनके पेशे को नहीं। इसके अलावा भी डॉक्टर होने के साथ साथ पारिवारिक सामंजस्यथता के अभाव से भी मैं, उनसे ही नहीं परिवार से भी बहुत प्रताड़ित हो रही थी, इसलिए इस कारण को गौण रखते हुए,मैंने तलाक़ का अन्य कारण लिखा था। यह हथियार तो मेरे पास ब्रह्मास्त्र की तरह कभी भी इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित था।’ डॉक्टर ने कहा।
‘इतना होने पर भी तुमने उस आदमी को बचा लिया, जो भविष्य में किसी दूसरी स्त्री के लिए अभिशाप बन सकता है।’ जज साहब बोले।
‘हम सामाजिक प्राणी हैं, ईश्वर पर आस्था रखते हैं, भविष्य के सुंदर स्वप्न देखते अवश्य हैं, किन्तु जीते वर्तमान में हैं,’कर्मण्ये वाधिकारस्ते—-‘गीता के इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए भविष्य के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब किताब ईश्वर पर छोड़ देते हैं। मुझे तो बस गर्भ में पल रही इस विलक्षण प्रतिभा के भविष्य के ताने-बाने बुनना है,किंतु वर्तमान तनाव रहित और खुशनुमा जीना है।’ उसने आगे कहा- ‘ऐसी ही अन्य कुरीतियों के लिए नारी को ही पहल करनी होगी।’
ऑपरेशन का बुलावा आ गया था। जज साहब से क्षमा माँगते हुए वह आपरेशन थियेटर की ओर चल दी। जिस समय जज साहब चेम्बर से बाहर निकल रहे थे, वे उसकी महानता के बारे में सोच रहे थे।