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मां बाप के अधूरे सपनों,उम्मीदों के नीचे दबे बच्चों से कोई नहीं पूछता कि तुम क्या चाहते हो..

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ममता सिंह की पोस्ट 

कुछ बरस पहले मुझपर अनेक लोगों ने दबाव बनाया कि इकलौता बेटा है सो उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे कोटा भेज दो,मेरा जवाब था कि जिसे पढ़ना है वह पहले अपनी रुचि और क्षमता देख ले फिर जहां कहे वहां भेज दूंगी..

बेटे को फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ्स में रुचि नहीं थी वह दसवीं के बाद ह्यूमैनिटीज लेना चाहता था पर उसके पिताजी ने जो रार ठानी कि उसे मन मारकर बारहवीं तक इन विषयों को पढ़ना ही पड़ा जबकि मैं तब भी यही कहती रही कि जो उसका मन हो,रुचि हो वही विषय पढ़ने दो….हालांकि बारहवीं के बाद उसने बीसीए करने का निर्णय लिया जिसपर उसके पिताजी भी राज़ी हो गए..

पर उन दो वर्षों में लोगों के ताने,उलाहने,उम्मीदें और उसके पिताजी की घबराहट खिसियाहट और बेटे की बेज़ारी याद करती हूं तो लगता है कि हमारा समाज इतना निर्मम,निष्ठुर और लालची है कि वह शुभचिंतक होने की ओट में हर किसी को किसी न किसी बहाने सूली पर लटकाने की जुगत में रहता है..यहां माना जाता है कि जो मां बाप अपने बच्चे को कोटा नहीं भेजते वह अपने बच्चे के भविष्य की फिक्र नहीं करते,बच्चे से प्यार नहीं करते..स्कूल,कोचिंग,ट्यूशन,हॉबी क्लासेस,परफॉर्मेंस प्रेशर, मां बाप के अधूरे सपनों,उम्मीदों के नीचे दबे बच्चों से कोई नहीं पूछता कि तुम क्या चाहते हो..

बच्चे के जीवन उसकी सुरक्षा से भी ज़्यादा ज़रूरी उसका करियर हो गया है,सभी को अपना बच्चा केवल अधिकारी,डॉक्टर,इंजीनियर या विदेशों में सेटल लोगों के रूप में स्वीकार्य है भले उसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़े…क्यों नहीं हम अपने बच्चों को किसान के रूप में,किराने वाले के रूप में, सब्ज़ी विक्रेता या प्लंबर,इलेक्ट्रिशियन के रूप में देखना चाहते हैं..हालांकि मेरा बच्चा दस वर्ष की उम्र से ही मुझसे दूर पला बढ़ा है पर वह परिवार में पल रहा था जहां उसके शारीरिक,मानसिक स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं था दूर रहने के बावजूद भी मैं उसे पढ़ाई के नाम पर उसे उसकी मर्ज़ी,रुचि,क्षमता के खिलाफ़ कहीं ऐसी जगह नहीं भेजूंगी जहां से वह वापस ही न आ पाए..

मैं बहुत चिपकू मां नहीं हूं जो रोज़ नियम से बच्चे को कॉल करके पूछे कि तुम खाए या नहीं,कब सोए कब जागे बल्कि हमारी बात हुए हफ़्ते दस दिन या इससे ज़्यादा हो जाता है,बेटे के बजाय बेटे की मामी मामा से उसका हाल पता कर लेती हूं जिनके पास वह रहता है..

हालांकि अपनी पढ़ाई को लेकर मेरे भीतर एक कसक रहती है,मेरी इच्छा थी कि मैं बहुत अच्छी जगह से,बहुत नामी इंस्टिट्यूट में पढूं जोकि नहीं पूरी हुई पर मैं अपने इस अधूरे,टूटे सपने का बोझ अपने बच्चे के कंधे पर नहीं रखना चाहती..हां इतना चाहती हूं कि वह अच्छे से ग्रेजुएशन कर ले,अपनी कॉलेज लाइफ़ अच्छे से एंजॉय कर ले,घर के कामकाज सीख ले,खूब खूब यात्राएं कर ले,थोड़ा गिरे,सम्हले,धोखे खाए,प्यार करे,रोए, हंसे,भला मानुष बने फिर भले वह पान की या परचून की दुकान खोले मुझे किस्मत या उससे कभी कोई शिकायत नहीं रहेगी..

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