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*अश्लील बलात्कार और हिंसा है, प्रेम नहीं*

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         ~ रश्मिप्रभा सिंह 

चेतना मिशन के ध्यान और चिकित्सा शिविर में लोग आते हैं तो दिन भर मैंनेजिंग बॉडी का सिर खाते हैं : फलां आदमी ऐसा कर रहा है, ढिकां आदमी ऐसा कर रहा है!

    उनसे यह कोई नहीं पूछता की तुम यहां किसलिए आए हो? तुम सारे लोगों की चिंता के लिए यहां आए हो? तुम्हें किसने ठेका दिया सबकी चिंता का? तुम्हारे पास बहुत समय मालूम पड़ता है, बहुत शक्ति मालूम पड़ती है। अपना जीवन तुम दूसरों के लिए चुका रहे हो कि कौन आदमी क्या कर रहा है। क्या प्रयोजन है? कौन पुरुष किस स्त्री के साथ बात कर रहा है, कौन स्त्री किस पुरुष के पास बैठी हुई है, तुम्हें चिंता का क्या कारण है? तुम कौन हो?

     तुम आए थे यहां अपने को बदलने को और यहां तुम फिक्र में पड़ जाते हो किसी दूसरे को बदलने की! असल में तुम अपने को बदलने आए ही नहीं हो, इसीलिए यह फिक्र पैदा होती है। तुम्हारा खयाल गलत था कि तुम अपने को बदलने आए हो। तुमने अपने को धोखा दिया। तुम चाहते तो सारी दुनिया को बदलना हो, तुम तो जैसे हो, उससे तुम रत्ती भर हटना नहीं चाहते! और फिर तुम चाहते हो कि तुम्हारा दुख समाप्त हो जाए, तुम्हारी पीड़ा समाप्त हो जाए! तुम जैसे हो, वैसे ही रह कर दुख समाप्त न होगा।

      इससे क्या तुम्हें पीड़ा होती है कि कोई आदमी किसी स्त्री के साथ बात कर रहा है, प्रेमपूर्ण ढंग से बैठा हुआ है? इससे तुम्हें क्या पीड़ा होती है?

एक दिन खबर दी किसी ने कि फलां आदमी किसी स्त्री के साथ इस ढंग से बैठा है, जो शोभादायक नहीं है।

  अब शोभा का कौन निर्णायक है? और जो आदमी खबर दे रहा है, उसे इस बात का खयाल ही नहीं है कि उसको यह पीड़ा क्यों पकड़ रही है।

     दरअसल यह आदमी किसी भी स्त्री के पास बैठने में समर्थ नहीं है। कोई स्त्री इसके पास बैठने में समर्थ नहीं है। यह परेशान है। यह उस आदमी की जगह बैठना चाहता था, इसलिए यह परेशानी की खबर ले आया। लेकिन इसे यह खयाल नहीं है कि इसका खुद का रोग इसको खा रहा है। यह दूसरे को बदलने की फिक्र में है!

   उस आदमी को कहा गया कि जो आदमी वहां बैठा है स्त्री के पास, तुमने उस आदमी के बाबत एक बात खयाल की, कि वह आदमी सदा प्रसन्न रहता है, सदा हंसता है, सदा खुश है। तुम सदा उदास, दुखी और परेशान हो। तुम उस आदमी से कुछ सीखो, उसके पास में बैठी स्त्री की फिक्र छोड़ दो।

    यह भी हो सकता है कि तुम भी उतने खुश हो जाओ कि कोई स्त्री तुम्हारे पास भी बैठना चाहे। लेकिन तुम्हारी शकल नारकीय है। तुम इतने दुख और परेशानी से भरे हो कि कौन तुम्हारे पास बैठना चाहेगा!

   और फिर अगर दो व्यक्ति प्रेमपूर्ण ढंग से बैठे हैं, तो इसमें अशोभन क्या है?

जीवन के असम्मान के कारण प्रेम अशोभन मालूम पड़ता है। प्रेम जीवन का गहनतम फूल है। अगर दो आदमी सड़क पर लड़ रहे हों तो कोई नहीं कहता कि अश्लील है। लेकिन दो आदमी गले में हाथ डाल कर एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं, तो लोग कहेंगे, अश्लील है!

   साहब जी, क्या हिंसा अश्लील नहीं है, प्रेम अश्लील है! प्रेम क्यों अश्लील है? हिंसा क्यों अश्लील नहीं है?

     हिंसा मृत्यु है, प्रेम जीवन है। जीवन के प्रति असम्मान है और मृत्यु के प्रति सम्मान है!

 कितनी हैरानी की बात है! युद्ध की फिल्में बनती हैं. हत्या होती है, खून होता है, रेप- गैंगरेप होता है फिल्म में. कोई नहीं कहता कि अश्लील है। लेकिन अगर प्रेम की घटना है तो सभी चिंतित हो जाते हैं। नियमावली तय करती हैं कि चुंबन कितने दूर से लिया जाए! छ: इंच का फासला हो, कि चार इंच का फासला हो! कि कितने इंच के फासले पर चुंबन श्लील होता है और कितने इंच के फासले पर अश्लील हो जाता है!

   छुरा भोंका जाए फिल्म में, तो अश्लील नहीं होता! कोई नहीं कहता कि छ: इंच दूर छुरा रहे।

     चुंबन में ऐसा क्या पाप है, जो छुरा भोंकने में नहीं है? चुंबन जीवन का साथी है और छुरा मृत्यु का। लेकिन छुरे पर किसी को एतराज नहीं है। हम सब आत्मघाती हैं। हम सब हत्यारे हैं।

     प्रेम के हम सब दुश्मन हैं! यह दुश्मनी क्यों है? इसको अगर हम बहुत गहरे में खोजने जाएं तो हमारा जीवन के प्रति सम्मान का भाव नहीं है।

     अगर दो व्यक्ति प्रेम से बैठे हैं, किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, यह उनकी निजी बात है, यह उनका निजी आनंद है। अगर यह आपको कष्ट देता है तो आपको अपने भीतर खोज करनी चाहिए। आपके जीवन में प्रेम की कमी रह गई है। या आपकी कामवासना पूरी नहीं हो पाई है, अटकी रह गई है। आपकी कामवासना पूरी बन गई है, घाव बन गई है।

अपनी तरफ खयाल करो, अपने दृष्टिकोणों को सोचो, दूसरे की चिंता मत करो। एक बात सदा खयाल में रखो कि तुम किस बात का सम्मान करते हो? जीवन का या मृत्यु का?

     दो व्यक्तियों का प्रेमपूर्ण ढंग से खड़ा होना, इस पृथ्वी पर घटने वाली सुंदरतम घटनाओं में से एक है। अगर प्रेम सुंदर नहीं है, तो फूल सुंदर नहीं हो सकते, पक्षियों के गीत सुंदर नहीं हो सकते, क्योंकि फूल भी प्रेम की घटना है। वह भी वृक्ष की कामवासना है। उससे वृक्ष अपने बीज पैदा कर रहा है, अपने वीर्य क्या पैदा कर रहा है।   

     पक्षियों के सुबह के गीत सुंदर नहीं हो सकते, क्योंकि वह भी प्रेयसियों के लिए बुलाई गई पुकार है या प्रेमियों की खोज है-वह भी कामवासना है।

       अगर कोई व्यक्ति जीवन के प्रति असम्मान से भरा है तो इस जगत में फिर कुछ भी सुंदर नहीं है, सब अश्लील है। आपको फूल में दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि फूल की कामवासना का आपको पता नहीं है।

      जब वसंत आता है, तो पृथ्वी जवान होती है। वह जो आप खुशी देखते हैं चारों तरफ, वह भी कामवासना की ही खुशी है, वह जो उत्सव दिखाई पड़ता है।

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