शशिकांत गुप्ते इंदौर
किसी स्त्री को बेखौफ होकर निर्वस्त्र कर घुमाने की घिनौने कृत्य की ख़बर पढ़ने,सुनने के बाद सामंती युग की याद ताज़ा हो जाती है।
अहम प्रश्न यह उपस्थित होता है कि, कलयुगी दुःशासन इतने बेखौफ क्यों है,और आमजन खौफजदा क्यों?
समाचारों में उक्त पाशविक मानसिकता को परिलक्षित करती ख़बर पढ़ने के बाद जब रास्ते पर महंगी कीमत अदा कर अनेक जगह से फटी हुई पैंट को फैशन की उपमा देते हुए पहना हुआ कोई दिखाई देता है,तब सामंती मानसिकता की पुष्टि हो जाती है।
सामंती मानसिकता मतलब अलोकतांत्रिक सोच है। अलोकतांत्रिक सोच पूंजीवाद का समर्थक होता है,पूंजीवादी सोच ही सत्ता केंदित और व्यक्ति पूजक राजनीति का समर्थक होता है।
सामंती मानसिकता तानशाही प्रवृत्ति की पोषक होती है।
इसीलिए किसी भी दल के जन्म से लेकर वर्षों तक अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वाह करने वालें कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जाती है।
इन दिनों यही अलोकतांत्रिक सोच देश के तकरीबन सभी राजनैतिक दलों,सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों,में हावी हो रहा है।
उपर्युक्त मानसिकता विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए गंभीर प्रश्न है?
अलोकतांत्रिक सोच, समाचार मध्यामों पर हावी होने से समाचार माध्यमों द्वारा चेहरे पर प्रश्न उपस्थित किया जाता है? जब अपने देश में प्रधानमंत्री पद का प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होता है,तब चुनाव पूर्व किसी भी दल के द्वारा किसी व्यक्ति को महत्वपूर्ण पद के लिए प्रस्तुत करना मतलब दल के कार्यकर्ताओं पर उस व्यक्ति को थोपना ही तो है।
उपर्युक्त सोच पैदा होने का मुख्य कारण लोगों में संवेदनाएं क्षीण हो गई है। इसीलिए जन प्रतिनिधि आमजन की भावनाओं का सम्मान करने के बजाए ये लोग आमजन की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं। झूठे वादे और छद्म दावे करना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
देश पर दिन-ब-दिन कर्ज बढ़ता जा रहा है और सिर्फ विज्ञापनों विकास, प्रगतिपथ पर तेज गति से दौड़ रहा है?
हास्यास्पद बात तो यह है कि, कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से सामंती तरीके से स्वयं को सज संवर कर रखता है और स्वयं ही स्वयं को जनसेवक घोषित करता है?
यह मानसिकता राजनैतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र पर बहत बड़ा सवाल है?
इस मुद्दे पर व्यापक बहस अपेक्षित है।