मुनेश त्यागी
आजकल हमारे देश में मीडिया और समाचार पत्रों में सनातन धर्म का मामला छाया हुआ है। कोई सनातनी धर्म, सोच और मानसिकता का विरोध कर रहा है, तो भारत में हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक सोच के लोग, इन सनातनी धर्म का विरोध करने वाले लोगों का जमकर विरोध कर रहे हैं। ख़बरें आ रही है कि सनातनी धर्म का विरोध करने वाले स्टालिन के खिलाफ देश के कई हिस्सों में एफ आई आर हो गई हैं और देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सनातनी धर्म का विरोध करने वाले स्टालिन के खिलाफ एक याचिका दायर करके सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
हमारा कहना है की सनातनी धर्म के साथ-साथ हमारे देश में और हमारे समाज में, हजारों साल से चली आ रही कुछ सनातनी सामाजिक व्याधियां और बीमारियां भी हैं जैसे हमारे देश में हजारों साल से गरीबी, भुखमरी, शोषण, जुल्म अन्याय, गैरबराबरी, ऊंच नीच की सोच, छूआछूत, जातिवाद, वर्णवादी सोच, छोटे-बड़े की मानसिकता और गरीब जनता के हक करने की सोच और मानसिकता व व्यवहार, भ्रष्टाचार, दहेज और कुशासन की नीतियां सदा से कायम रही हैं।
हमारा समाज आदिम साम्यवाद, मालिक और दास, सामंत और गुलाम और अब पूंजीवाद और मजदूर के रूपों से गुजर कर यहां तक पहुंचा है। जब हमारे समाज में गुलाम और दास थे, तो उनके साथ शोषण और जुल्म किया जाता था। उनके हक अधिकार उन्हें नहीं दिए जाते थे। इसके बाद सामंती व्यवस्था आई जिसमें सामंत बिना किसी रोक-टोक के, बिना किसी मान मर्यादा और नैतिकता के, अपने किसानों और खेतिहर मजदूरों के साथ जुल्म करते थे, उनके साथ अन्याय करते थे, उनका भयंकर रूप से शोषण करते थे।
इसके बाद हमारे देश में पूंजीवादी व्यवस्था कायम हुई जिसमें एक तरफ सब कुछ का मालिक पूंजीपति वर्ग है जिसके शोषण करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। दूसरी तरफ करोड़ों करोड़ की संख्या में मजदूर वर्ग है जिसके साथ पूंजीपति वर्ग भयंकर और मनमाना शोषण और जुल्म करता था, उनसे 16-16 घंटे काम करवाता था, उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं देता था, उसके सारे हक और अधिकार मार लेता था।
उसके बाद हमारे देश में अंग्रेजों से आजादी का संघर्ष हुआ और इस संघर्ष की बदौलत हमारा देश आजाद हुआ। आजाद होने के बाद भारत में एक संविधान बनाया गया, कानून का कायम किया गया। आजादी के बाद तक हमारे किसानों और मजदूरों को कुछ हक अधिकार दिए गए। जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार दिये गये।
इसके बाद पूंजीपति वर्ग और सामंती वर्ग का गठजोड़ फिर से कायम हो गया, जिसमें हजारों साल पुराने शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव और हकमारी का निजाम फिर से क़ायम हो गया। आज हालात यह है कि पिछले तीस साल के बाद से हमारा समाज लगभग उसी अधिकार हीनता की हालत में पहुंच गया है और आज लोग पिछले नौ वर्षों के शासनकाल में हमारे देश और समाज के अधिकांश मजदूर और किसान इन्हीं सनातनी व्याधियों का फिर से शिकार हो गए हैं।
वर्तमान समय में किसानों और मजदूरों के हक लगभग छीन लिए गए हैं, उन्हें बिल्कुल अधिकारहीनता की हालत में पहुंचा दिया गया है। आज भी भारत के बड़े भूभाग पर किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलता। भारत के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगारों की फौज है। गरीबों से उनकी मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज का अधिकार छीन लिया गया है।
आज हम देख रहे हैं कि वही हजारों साल पुरानी सामाजिक व्याधियां और बीमारियां जैसे शोषण, जुल्म, अन्याय, गरीबी, भुखमरी, भेदभाव, छोटे बड़े की सोच, ऊंच नीच की भावना, छूआछूत, जातिवाद, वर्णवाद, भ्रष्टाचार, दहेज और कुशासन की नीतियां समाज में फिर से बलवती होती जा रही हैं। आज जैसे हमारे देश में धर्मांधताओं और अंधविश्वासों की आंधी चल रही है। इस वर्तमान विकास ने ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति को जैसे तिलांजलि दे दी है आज फिर से वैदिक शिक्षा की बात हो रही है।
अधिकांश धर्म शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव ऊंच नीच की मानसिकता और छोटे-बड़े की सोच के समर्थक रहे हैं। इन्होंने इन अमानवीय मूल्यों का कभी भी विरोध नहीं किया। मनुवादी धर्म ने समता, समानता और भाईचारे की भावना का समर्थन नहीं किया और लोगों को उच्च वर्ण द्विज वर्ण और शूद्र वर्ण में ही बांटे रखा। यह बड़े अफसोस की बात है कि आज भी लोग उन ही अमानवीय मूल्यों से चिपके रहना चाहते हैं।
यह सोच और मानसिकता भारत के संविधान के समता, समानता, बराबरी, भाईचारे, न्याय, जनतंत्र गणतंत्र और समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के एकदम खिलाफ है। अब तो हमारे पास दुनिया भर की आधुनिकतम सोच है फिर उस हजारों हजार साल पुरानी अमानवतावादी सोच से क्यों चिपका रहा जाए? इस प्रकार की अमानवीय सनातनी सोच, मानसिकता और विचारधारा का किसी भी दशा में समर्थन नहीं किया जा सकता। सनातन धर्म पर बहस का यह गैरजरूरी मुद्दा, एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है, ताकि जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से हटाकर, इन गैर जरूरी मुद्दों पर केंद्रित कर दिया जाए। देश की जनता को जागरुक और संगठित होकर, इस गैर जरुरी मुद्दे को एकदम दरकिनार कर देना चाहिए।
वर्तमान समय का यह सबसे बड़ा मुद्दा है कि हमारे समाज में शोषण जुल्म अन्याय गरीबी भुखमरी ऊंच नीच की मानसिकता, छोटे-बड़े की सोच, भ्रष्टाचार, दहेज छूआछूत, जातिवाद, वर्णवाद और कुशासन जैसी सनातनी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कुरीतियां व्याधियां और बीमारियां चली आ रही हैं, उन पर एक राष्ट्रीय समाजवादी अभियान के तहत बातचीत होनी चाहिए, विचार विमर्श होना चाहिए और इन सनातनी व्याधियों और बीमारियों को सदा सदा के लिए समाप्त कर देना चाहिए।