-सुसंस्कृति परिहार
देश में जिस तरह भारत और इंडिया के बीच घमासान मची है तथा हिंदुस्तान से नफ़रत की बात सामने आ रही हैं उसे देखकर तो लगता है कि अब शायद हिंदी दिवस कहना भी ख़तरे से खाली नहीं। बहुत पहले से भाजपा जिस तरह जयहिंद की जगह जय भारत उद्घोष करने लगी है तथा राष्टपति के आमंत्रण में प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखा गया बिना सदन की अनुमति से उससे साफ़ जाहिर है कि अब हर जगह भारत निकट भविष्य में हो ही जाएगा। अंग्रेजों के आने से बहुत पूर्व इसे इंडिया कहा जाता रहा पर इसे अंग्रेजों की देन मानकर इससे नफ़रत की जा रही है मुसलमान शासकों ने इसे हिंदुस्तान कहा उन्हीं ने सिंधु नदी को पहली बार हिंदु कहा इससे ही इस तरफ के लोग हिंदुस्तानी कहलाए।अब सिंधु पाकिस्तान में है तो पाकिस्तानी हिंदू कहलाएंगे और गंगा के देश के लोग गंगू हुए। इसलिए हम देख रहे हैं हिंदुत्ववादी अब अपने आपको सनातनी कहने लगे हैं।
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही ‘पद्य’ रचना प्रारम्भ हो गयी थी। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था ‘अवहट्ट’ से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने इसी अवहट्ट को ‘पुरानी हिन्दी’ नाम दिया।
साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने ‘देसी भाषा’ कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि ‘हिन्दी’ शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में ‘हिन्दी’ शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य ‘भारतीय भाषा’ का था।
उपर्युक्त परिस्थितियों से साफ होता है आगे चलकर हिंदी शब्द भी हमारी डिक्शनरी से अलग कर दिया जाएगा।इसे जब तक भारत सरकार नया नाम नहीं देती तब तक इसे ‘भारती’ कहना उचित होगा इसे बोलने वाले भारतीय कहलाएंगे।बचपन में हम सबने बाल भारती पढ़कर ही हिंदी सीखी है। इसे इसकी उत्पत्ति के प्रथम चरण में हिंदवी कहा गया।अमीर खुसरो पहले कवि हुए हैं जिन्होंने हिंदवी को नया स्थान दिलाया वे एक पंक्ति फारसी और दूसरी भारत के अंदर बोली जाने वाली खड़ी बोली या भाषा से लेते हैं। इस हिंदवी को भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने संपूर्णता देने की कोशिश की और बोलचाल में शामिल उर्दू,अरबी ,फारसी,संस्कृत और खड़ी बोली के शब्दों को शामिल किया बाद में उसमें अंग्रेजी समूह की भाषा के शब्द ज़रूरत के मुताबिक शामिल किए गए।इन सबके मिश्रण ने हिंदी को परिपक्व किया।
लगता है आज की यही हिंदी जो कभी मां भारती के माथे की बिंदी थी अब हिंदी,हिंदु, हिंदुस्तान के लिए बोझ बन गई है इसमें अंग्रेजी और उर्दू,अरबी का तालमेल उचित नहीं है। ज़रूरी हो गया है कि अब भारत देश के मद्देनजर इसका नया नामकरण किया जाए और परदेशी शब्दों की जगह शुद्धि करण करके नए शब्द सृजित किए जाएं।जो भारत देश की नई पहचान बन सके। क्योंकि हिंदी एक लोकतांत्रिक भाषा बन चुकी है यानि हम सबकी भाषा।भारत सरकार चाहती है के देश में ऐसी भाषा लागू हो जो देश की पहचान यानि सनातन को कायम रखे ही साथ ही साथ उसे सब लोग आसानी से ना समझ सकें उन्हें समझाने बड़े बड़े पंडितों की ज़रुरत हो जैसा पुरातन भारत में होता आया है वेद, उपनिषद,,गीता वगैरह को बिना ज्ञानी लोगों के सानिध्य से नहीं समझा जा सकता। इसलिए नासमझ प्रवचनकार तरह तरह के अर्थ निकाल लेते हैं।गीता और रामायण के प्रवचनकार भी इसीलिए सैंकड़ों की संख्या में मिलते हैं।
बहरहाल,हिंदी दिवस बनाम भारती को कैसे मनाएं इस पर जल्द ही सरकार को निर्देश देना चाहिए अन्यथा दुनियां में जानी जाने वाली दूसरे नंबर की ये भाषा पूरी दुनिया सीख लेगी और भारत को हिंदुस्तान ही मानती रहेगी।भारत देश अब जागा है उसे गति दें।हिंदी को निरुत्साहित करने और भारती के पक्ष में लोगों को जागरुक करना जारी रखें।जितनी तेजी से भारत उभरेगा उतनी तेजी से भाजपा देश को भाएगी।
जय जय भारत।जय जय भारती।