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लुटेरी ताकतों का गठजोड़ भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा

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मुनेश त्यागी

        भारत की आजादी के बाद आज जनता के भाईचारे को सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है। भारत की लुटेरी, शोषक, पूंजीवादी, सामंती, जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों को छोड़कर भारत की अधिकांश पार्टियां और संगठन, जनता के भाईचारे को बनाए रखने की और मजबूत करने की बात और कोशिश कर रहे हैं। भारत का संविधान जनता के भाईचारे को बनाए रखने और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने पर सबसे ज्यादा जोर देता है।

      मगर यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर जनता के भाईचारे को तोड़ने के लिए कौन-कौन सी ताकतें जिम्मेदार है और वे भारतीय जनता के भाईचारे को क्यों तोड़ना चाहती हैं? भारत का इतिहास बताता है की भारत में गंगा जमुनी तहजीब का और मिली जुली संस्कृति का, बोलबाला रहा है। यहां की जनता आपस में मिलजुल कर रह रही थी। 

     हमारा इतिहास यह भी बताता है की मुगलों के समय में जो लड़ाइयां हो रही थीं, वे कोई धर्म युद्ध नहीं थीं बल्कि वे सत्ता प्राप्ति के राजनीतिक संघर्ष ही थीं और इस संघर्ष में अगर एक तरफ हिंदू राजा था तो इसका सेनापति मुसलमान था और दूसरी तरफ अगर बादशाह मुसलमान था तो इसका सेनापति हिंदू था। इस तरह की बहुत सारी मिसालें हमारे इतिहास में मौजूद हैं जैसे बाबर और राणा सांगा,  इब्राहिम लोदी से लड़ रहे थे जिसका मुख्य सेनापति मानसिंह तोमर था। 

     अकबर का सबसे बड़ा सेनापति मानसिंह था तो महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा सेनापति हकीम खान सूर था। इसी तरह औरंगज़ेब का सबसे बड़ा सेनापति  मिर्जा जयसिंह था तो शिवाजी की सेना में सबसे बड़े सेनापति मौलवी हैदर खान, इब्राहिम गर्दी खान और सिद्दीकी मिसरी मुसलमान थे। इसी तरह से 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने वाले बहादुर शाह जफर के सबसे बड़े सेनापति नानासाहेब थे जिनमें प्रमुख सलाहकार अजीमुल्ला खान थे।

      इसी लड़ाई में महारानी लक्ष्मीबाई के सबसे बड़े तोपची खुदा बख्श और गोश खान थे। बेगम हजरत महल के प्रधानमंत्री राजा बालकृष्ण थे और बख्श सिंह, चंदा सिंह, गुलाब सिंह, हनुमान सिंह उनके साथ प्रमुख सामंत सरदार थे। इसी स्वतंत्रता संघर्ष में मेरठ के 85 सैनिकों में 53 मुसलमान और 32 हिंदू थे। 1915 में भारत की अस्थाई सरकार काबुल में बनी थी जिसके राष्ट्रपति महेंद्र प्रताप सिंह थे और उनके प्रधानमंत्री बरकतुल्लाह खान थे। ये दोनों दुनिया में समाजवादी सेना बना कर पूंजीवादी निज़ाम के खात्मे की बात कर रहे थे।

    काकोरी कांड के महान शहीद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान ने फांसी के तख्ते पर चढ़ने से एक दिन पहले, भारत की जनता से अपील की थी कि वे जैसे भी हो सके हिंदू मुस्लिम एकता कायम रखें, इसी के आधार पर हमारा देश आजाद हो सकता है। इससे पहले टीपू सुल्तान के प्रधानमंत्री पूर्णिया और मुख्यमंत्री कृष्ण राव थे। भारत के इतिहास में “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा मौलाना हसरत मोहानी ने दिया था जिसे बाद में भगत सिंह और उनके साथियों ने जमकर उपयोग किया था।भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी सुभाष चंद्र बोस के बहादुर साथी और कार्यकर्ता आबिद हसन और हबीबुर्रहमान थे।

      भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की सबसे बड़ी विरासत हिंदू मुस्लिम एकता थी। इसी विरासत से डरकर अंग्रेजों ने हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए 1906 में हिंदू महा सभा बनाई और 1907 में मुस्लिम लीग बनाई और तब से लेकर आज तक ये दोनों ताकतें भारत की जनता की एकता तोड़कर उसमें हिंदू मुस्लिम के ध्रुवीकरण की नफ़रत फैलाने में लगी हुई हैं। इन दोनों साम्प्रदायिक ताकतों का भारत की आजादी में कोई योगदान नहीं था। बल्कि आजादी के संघर्ष के दौरान ये  दोनों ताकतें अंग्रेजों से मिलकर भारत की जनता की एकता तोड़ रही थी और जनता को हिंदू और मुसलमान के नाम पर बांट रही थीं।

      इस प्रकार हम देखते हैं की भारत की लुटेरी और शोषक ताकतें पहले वर्ण और जाति के नाम पर भारत की जनता की एकता को तोड़ रही थीं और आजादी के संघर्ष के संघर्ष के दौरान और आजादी मिलने के बाद, भारत की समस्त लुटेरी ताकतें जिन में पूंजीपति, सामंती, जमीदार और सांप्रदायिकता ताकतें शामिल हैं, ये सब मिलकर भारत की जनता की एकता तोड़ रही हैं। 

    इन जनविरोधी, लुटेरी, पूंजीवादी और साम्प्रदायिक ताकतों का भारत की जनता का शोषण दमन अत्याचार जुल्म गरीबी भुखमरी शोषण भेदभाव और अन्याय को खत्म करने में कोई योगदान नहीं है। बल्कि ये जनता की दुश्मन ताकतें किसी भी आधार पर भारत की जनता के समता, समानता, न्याय, विकास, जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के साझे और एकजुट संघर्ष को कमजोर करना चाहती हैं।

       आजादी के बाद से लेकर आज तक जनता के भाईचारे की दुश्मन ये ताकतें, आज भी वही काम कर रही है जो ये आजादी के संघर्ष में कर रही थीं और आज भारत की जनता के भाईचारे को सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं लुटेरी जातिवादी वर्णवादी सामंती पूंजीवादी और साम्प्रदायिक ताकतों से सबसे ज्यादा खतरा पैदा हो गया है। भारत की जनता की एकता को तोड़ने के लिए कल ये ताकतें साम्राज्यवादी लुटेरे अंग्रेजों के साथ खड़ी हुई थीं और आज ये तमाम सांप्रदायिक ताकतें भारत की जनता की एकता और भाईचारे को तोड़ने के लिए देशी विदेशी लुटेरे पूंजीपतियों के साथ खड़ी हुई हैं।

     अपने शोषण, जुल्म, अन्याय और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए ये तमाम जनविरोधी पूंजीवादी और सांप्रदायिकता ताकतें एकजुट होकर जनता की एकता और भाईचारे पर हमला कर रही है, पूरी जनता में नफरत फैला रही हैं और “बांटो और राज करो” की मुहिम चला रही हैं। यही इनका आज का सबसे बड़ा काम है और यह उनकी सबसे बड़ी राजनीति है।

     यहीं पर आज हमारे देश की तमाम प्रगतिशील, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताकतों और पार्टियों की सबसे बड़ी “राजनीति और सबसे बड़ा काम” हो गया है कि वे सब मिलजुल कर हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण की नफरत की मुहिम का मुंहतोड़ जवाब दें और जनता में, किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों के बुनियादी सवालों के संघर्षों के साथ साथ, उनमें साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द कायम करके भाईचारे की मुहिम को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिशाली बनाएं।

      जैसे अंग्रेजों ने भारत की जनता की एकता से डर कर हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक विभाजन के बीज बोए थे और जनता की साझी संस्कृति की विरासत पर निर्मम प्रहार किया था, उसी प्रकार आज भारत की लुटेरी और जनविरोधी ताकतों को, भारत की जनता की एकता से सबसे ज्यादा डर लग रहा है, इसलिए वे उनके एकजुट संघर्ष को तोड़ने के लिए और कमजोर करने के लिए, जनता में हिंदू मुसलमान के नाम पर नफरत की मुहिम चला रहे हैं और भाईचारे के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं।

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