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*फिर-फिर थैंक यू मोदी जी!*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

अब क्या कहेंगे मोदी जी को इतिहास दोबारा लिखवाने पर ताने देने वाले! अब कहकर तो देखें कि मोदी जी तो सिर्फ ऑर्डर देकर इतिहास लिखवा रहे हैं, बल्कि पुराने लिखे हुए में ही काट-पीट करा रहे हैं, इतिहास बना तो रहे ही नहीं हैं! खुद इतिहास बनाकर या बनवाकर दिखाएं, तो हम भी मानें। तो भाइयो, अब तो मानना ही पड़ेगा। मोदी जी ने छाती ठोक के इतिहास बनवा दिया है। संसद के एक विशेष सत्र में, नन्हे से, क्यूट से विशेष सत्र में, मोदी जी ने सिंगल नहीं, डबल-डबल, बल्कि ट्रिपल-ट्रिपल इतिहास बना दिया है। अब विरोधी अगर चाहें भी तो मोदी जी के इतिहास रचने से इंकार नहीं कर सकते हैं। संसद भवन बदल कर अगर इतिहास बनाने में गिनने में किसी को हिचक भी हो, तब भी इतिहास बनने के दो मोर्चे और भी तो हैं। आगे-आगे महिला आरक्षण और अंत-अंत में रमेश बिधूड़ी। दोनों ने इतिहास बनाया है, यह तो मानना ही पड़ेगा। फिर भी मोदी जी मूड में आ गए, तो डेमोक्रेसी को टू मच किए बिना नहीं माने और इतिहास बनाया तो उसमें भी चॉइस कर दी। अपनी-अपनी रुचि के हिसाब से बनता हुआ इतिहास चुन लें; जिन्हें महिला आरक्षण पसंद नहीं हो, बिधूड़ी जी वाला इतिहास चुन लें।

वैसे कोई कुछ भी कहे, बिधूड़ी वाले इतिहास में कोई कमी, कोई खोट, कोई कितना भी खोज ले, नहीं निकाल सकता। ये सौ फीसद नया है, सौ फीसद पहली बार है, सौ फीसद ओरिजिनल है! सच पूछिए तो इतनी नवीनता, इतनी ओरिजिनेलिटी तो महिला आरक्षण वाले इतिहास निर्माण में भी नहीं है। देखा नहीं, कैसे तब के यूपीए वाले तो मोदी जी के विधेयक को ही चुराने के लिए आ गए कि ये तो हमारा विधेयक है। इतना भ्रम तक फैला दिया कि 2010 में राज्यसभा में बिल पास करा दिया था, सो अब तक जिंदा होगा। यानी मोदी जी नया इतिहास नहीं बना रहे थे, वह तो देर आयद, दुरुस्त आयद कर के बिगड़ता हुआ इतिहास सुधार भर रहे थे! लेफ्ट वाले तो और पीछे, 1996 तक इतिहास को खींच ले गए। और कुछ और, 1988 तक भी। पर मजाल है, जो रमेश बिधूड़ी वाले इतिहास की ओरीजिनेलिटी पर जरा सा भी सवाल उठाने की, किसी की हिम्मत हुई हो।

और तो और 75 साल की संसदीय यात्रा की अपनी स्पीच में खुद मोदी जी भी रमेश बिधूड़ी का जरा सा पूर्व-इतिहास तक नहीं देख पाए। बेशक, यह कहने वाले तो अब बहुत निकल आए हैं कि बिधूड़ी ने जो कहा, वह न खुद बिधूड़ी ने पहली बार कहा है और न पहली बार कहा गया है। मुसलमानों के लिए दबे-छुपे और सोशल मीडिया में खुलेआम यह सब तो बहुत समय से कहा जाता रहा है। मोदी जी की टू मच डेमोक्रेसी में, और कुछ चाहे न हो, पर यह टू मच हुआ है। हिंदुत्व के प्रदर्शनों में, चाहे सडक़ों पर हो या धार्मिक जुलूसों में या संत सम्मेलनों में, और हां खबरिया टीवी चैलनों पर भी, यह खुलेआम होता ही रहा है, जिसे हेट स्पीच कहकर सुप्रीम कोर्ट बार-बार दुत्कारता भी रहा है। पर इससे कोई कैसे इंकार कर सकता है कि संसद में यह पहली बार हुआ है और लाइव टीवी पर पूरे देश, बल्कि पूरी दुनिया ने, इस इतिहास को बनता हुआ देखा है। इतिहास तो बन गया, अब इसे किसी स्पीकर की कलम की स्याही से मिटाया नहीं जा सकता है। और स्पीकर से इससे ज्यादा कुछ करवाया भी नहीं जा सकता है। और करीब दस साल में इतनी मुश्किल से तो बात इतिहास बनने के मुकाम तक पहुंची है, मोदी जी इस पर ट्वीट-वीट करके जश्न का मजा खराब क्यों करेंगे।

फिर भी इसका मतलब यह हर्गिज नहीं है महिला आरक्षण में इतिहास बनाने का, मोदी जी का दावा कमजोर है। माना कि महिला आरक्षण के प्रयास करीब तीन दशक से चल रहे थे। माना कि इसके कई मसौदे, कई विधेयक पहले आ चुके थे। फिर भी जैसे रमेेश बिधूड़ी ने पहली बार संसद में वह सब कहकर इतिहास बनाया, वैसे ही महिला आरक्षण का विधेयक दोनों सदनों से पास तो पहली बार, मोदी जी ने ही कराया। संसद में किसी ने कहा भी; जो जीता, वही सिकंदर। सो महिला आरक्षण में मोदी जी ने इतिहास तो बखूबी बनाया है। जो पहले कोई नहीं कर पाया, मोदी जी ने करके दिखाया है। बस जरा सा टैम का पच्चर फंस गया है। आरक्षण का कानून 2023 में बना रहे हैं, आरक्षण कानून 2026 के बाद कभी लागू होगा — कोई कहता है, 2029 से, कोई कहता है, 2034 से, कोई कहता है 2039 से, कोई कहता है तब तक पंद्रह साल का टैम ही निकल जाएगा! तो इतिहास कब से बना माना जाएगा, 2023 से या 2029 वगैरह से? खैर, आरक्षण जब लागू होना होगा तब लागू हो जाएगा, पर मोदी जी ने अपनी तरफ से इतिहास तो रच दिया। इसके लिए मोदी जी की पार्टी के महिला मोर्चा ने, एक अदद थैंक यू मोदी जी का आयोजन भी कर दिया। बस देवताओं के फूल बरसाने की तो छोडि़ए, पता नहीं क्यों मोदी जी के रोड शो टाइप की पुष्प वर्षा में भी पार्टी का महिला मोर्चा तक संकोच कर गया।

आरक्षण जब लागू होगा, तब फूल बरसाए जाएंगे; मोदी जी को महिलाओं से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी! इसके लिए जो आरक्षण के लागू होने में कई साल की देरी की दलील देते हैं, वे औरतों का, उनके धीरज का और उनकी उदारता का अपमान कर रहे हैं। जब औरतें आरक्षण का कानून बनने के लिए तीस साल इंतजार कर सकती हैं; करीब दस साल तो खुद मोदी जी के ही इतिहास बनाने का भी इंतजार कर सकती हैं; तो आरक्षण लागू होने के लिए क्या और पांच-दस साल भी इंतजार नहीं कर सकती हैं?

आखिर, भारतीय औरतें धीरज की देवियां हैं, देवियां! औरतें तो हैं ही नहीं, वे तो देवियां हैं देवियां! इसीलिए तो आरक्षण-वारक्षण का कानून नहीं, मातृ शक्ति अभिवंदन अधिनियम बना रहे हैं। इतिहास बनाने के लिए तो ये नाम ही काफी है — सौ फीसद ओरिजिनल। आरक्षण लागू अब कभी भी हो, मोदी जी ने इतिहास तो बना दिया। फिर भी कुछ कसर रह गयी हो तो, बिधूड़ी जी वाला इतिहास भी है ही। और मोदी जी से कितना इतिहास बनवाओगे इंडिया, सॉरी भारत वालों!

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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