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देश में 63 63 थानों में वाहन नहीं, 628 में टेलीफोन नहीं, 285 में वायरलेस नहीं

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देश में 63 थानों में वाहन नहीं हैं। 628 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें टेलीफोन नहीं हैं। इसके अलावा 285 पुलिस थानों में मोबाइल/वायरलेस ही नहीं है। ऐसे में आईपीसी, सीआरपीसी व साक्ष्य अधिनियम के डिजिटल प्रावधान कैसे लागू होंगे…

गत माह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित करने और आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलने के लिए विधेयक पेश किया था। तीनों विधेयकों को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है। गृह मंत्री शाह ने आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले विधेयकों की कई विशेषताएं बताई थीं। संसद की मंजूरी के बाद जब ये विधेयक कानून का रूप लेंगे तो बहुत कुछ डिजिटल हो जाएगा। विधेयक में साक्ष्य एकत्रित करना, समन/वारंट जारी करना, एफआईआर दर्ज करने से लेकर केस डायरी के रखरखाव व आरोप पत्र दाखिल करने और फैसला सुनाने तक की पूरी प्रक्रिया का डिजिटलीकरण करने की बात कही गई है। दूसरी तरफ देश में 63 थानों में वाहन नहीं हैं। 628 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें टेलीफोन नहीं हैं। इसके अलावा 285 पुलिस थानों में मोबाइल/वायरलेस ही नहीं है। ऐसे में आईपीसी, सीआरपीसी व साक्ष्य अधिनियम के डिजिटल प्रावधान कैसे लागू होंगे।

 राज्यों के पुलिस थानों की स्थिति

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, देश में कुल 17535 पुलिस स्टेशन हैं। असम के 329 पुलिस स्टेशनों में से 126 में टेलीफोन ही नहीं हैं, जबकि इन थानों में कंप्यूटरों की संख्या 266 है। बिहार के 1056 पुलिस स्टेशनों में 2025 कंप्यूटर हैं। 957 पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगे हैं। छत्तीसगढ़ में 456 पुलिस स्टेशन हैं, जिनमें से 22 में टेलीफोन नहीं हैं। हालांकि इन पुलिस स्टेशनों में 443 सीसीटीवी और 4884 कंप्यूटर बताए गए हैं। गुजरात के 745 पुलिस स्टेशनों में से 622 में सीसीटीवी लगे हैं। हिमाचल प्रदेश के 151 पुलिस स्टेशनों में से दो थानों में वाहन ही नहीं हैं। सीसीटीवी कैमरे 136 पुलिस स्टेशनों में लगे हैं। झारखंड में 564 पुलिस स्टेशन हैं। इनमें से 47 थानों में वाहन नहीं हैं। 211 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें टेलीफोन नहीं हैं। 31 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें न तो मोबाइल इंटरनेट है और न ही वायरलेस सिस्टम है। अगर सीसीटीवी कैमरों की बात करें, तो 136 थानों में लगे हैं। मध्यप्रदेश में 1159 पुलिस स्टेशन हैं। इनमें से 859 में ही सीसीटीवी लगे हैं। महाराष्ट्र में 1168 पुलिस स्टेशन हैं, जिनमें से 663 में ही सीसीटीवी लगा है।

मोबाइल इंटरनेट व वायरलेस सिस्टम तक नहीं है

मणिपुर में 84 पुलिस स्टेशन हैं। इनमें से सात थानों में वाहन नहीं हैं। 64 थानों में टेलीफोन नहीं है। चार पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें न तो मोबाइल इंटरनेट है और न ही वायरलेस सिस्टम है। मेघालय में 76 पुलिस स्टेशन हैं। इनमें से पांच में वाहन नहीं है, जबकि 60 थानों में टेलीफोन ही नहीं है। 15 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें न तो मोबाइल इंटरनेट है और न ही वायरलेस सिस्टम है। 25 थानों में सीसीटीवी लगा है। मिजोरम में 44 पुलिस स्टेशन हैं। 26 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें टेलीफोन नहीं है। नागालैंड में 86 पुलिस स्टेशन हैं। 36 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें टेलीफोन नहीं है। 17 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं, जिनमें न तो मोबाइल इंटरनेट है और न ही वायरलेस सिस्टम है। 28 थानों में सीसीटीवी नहीं लगा है। पंजाब में 431 पुलिस स्टेशन हैं। इनमें से 63 थानों में फोन नहीं लगा है। 35 थानों में मोबाइल/वायरलेस सिस्टम नहीं है। 425 थानों में सीसीटीवी लगा है। त्रिपुरा के 82 पुलिस स्टेशनों में से 10 में टेलीफोन नहीं लगा है। उत्तर प्रदेश में 1783 पुलिस स्टेशन हैं, जिनमें से 175 थानों में मोबाइल/वायरलेस सिस्टम नहीं है।

ईमेल या मैसेज भी साक्ष्य माने जाएंगे

नया साक्ष्य अधिनियम में बहुत से प्रावधान डिजिटल हो जाएंगे। रिकॉर्ड भी डिजिटल तरीके से रखा जाएगा। कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज होंगे, तो उन्हीं पर डिजिटली साइन करने होंगे। स्मार्ट फोन के मैसेज साक्ष्य माने जा सकते हैं। ईमेल या मैसेज भी साक्ष्य माने जाएंगे। इसके लिए सभी पुलिस स्टेशनों में इंटरनेट, कंप्यूटर आदि होना जरुरी है। गृह मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, इसमें कोई शक नहीं है कि आने वाले समय में सब कुछ डिजिटल होने जा रहा है। कंप्यूटर/आईपैड का जमाना है। हालांकि इसमें कुछ दिक्कतें भी आ सकती हैं। वजह, बहुत सी जगहों पर पुलिस स्टेशन और अदालतें, अभी हाईटेक नहीं हुई हैं। जब थानों में डिजिटल सिस्टम शुरू नहीं होगा तो अदालतों के डिजिटल सिस्टम का फायदा नहीं होगा। अधिकांश केस तो थाने से ही चलते हैं। उसके बाद अदालत में आते हैं। उत्तर पूर्व, नक्सल प्रभावित इलाके या दूसरे ऐसे क्षेत्र जहां पर अभी तक विकास नहीं पहुंचा है, वहां पुलिस, न्याय का डिजिटल सिस्टम कैसे लागू होगा, ये सोचने वाली बात है। गांवों में सभी किसान, गरीब श्रमिक और दूसरे लोग, अभी पूरी तरह से डिजिटल सिस्टम से नहीं जुड़े हैं।

अब इसके लिए तो इंटरनेट जरूरी है

नए प्रावधानों में कहा गया है कि ई-एफआईआर होगी। जब सभी जगह पर डिजिटल सिस्टम नहीं है, तो ईमेल से कैसे एफआईआर दर्ज होगी। कैसे उसका रिकार्ड मेंटेन होगा। जीरो एफआईआर का प्रावधान रहेगा तो उसके लिए भी डिजिटल सिस्टम अहम होगा। पीड़ित को जांच प्रगति की सूचना डिजिटल माध्यम से देंगे। एफआईआर, केस डायरी, चार्जशीट, ये सब काम  डिजिटल तरीके से होंगे। समन और वारंट जारी करना, उनकी सर्विस और इलेक्ट्रॉनिक क्रियान्वयन, इसके लिए भी डिजिटल सिस्टम होना जरुरी है। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षा, वीडियो रिकॉर्डिंग, जांच पड़ताल में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग, ये सब काम भी बिना इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों के संभव नहीं होंगे। अदालत में भी पेपर वर्क कम होगा। क्रॉस एक्जामिनेशन व अपील सहित पूरी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाएगी।

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