~ डॉ. प्रिया
इंटरनेट व सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उसकी लत के शिकार लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। जिनमें बच्चों व किशोरी की संख्या बड़ी चढ़ी है। कोविड काल की विकट स्थिति को पार करने मे निर्णायक भूमिका निभाई थी, लेकिन इसकी लत से जुड़ा चिंताजनक पहलू भी अब सामने आ रहा है, आज इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत शहरों से निकलकर कस्बों और गांव तक पहुंच चुकी है।
पिछले 5 वर्षों में डिजिटल माध्यम पर हुए एक शोध अध्ययन के अनुसार हर वर्ष 20 से 25% डिजिटल उपयोगकर्ता बढ़े हैं। वर्ष 2015 में ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 9% जनसंख्या इंटरनेट का उपयोग कर रही थी, जो वर्ष 2018 में 25% तक पहुंच गए। आज इनकी संख्या 56% बताई जा रही है।
एक आकलन के अनुसार वर्ष 2026 तक देश में इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की संख्या एक अरब पार हो जाएगी। निम्हांस के अनुसार बच्चों को मोबाइल औसतन 10 वर्ष की आयु में मिलता है इसमें से 12 वर्ष की आयु तक 50% बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग करने लग जाते हैं। हर सप्ताह देश भर में मानो चिकित्सकों के पास सोशल मीडिया की लत से परेशान औसत 10 ऐसे मामले आते हैं जो 12 वर्ष से कम आयु के हैं।
इस तरह शहरों में जहां स्मार्टफोन केंद्र के रूप में डी एडिक्शन सेंटर खुल रहे हैं, वही गांवों में भी इसकी आवश्यकता अनुभव हो रही है। समस्या की विकरलता को देखते हुए विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि प्रत्येक जिले में इंटरनेट नशा मुक्ति केंद्र खुलने की आवश्यकता है, जहां मात्र इंटरनेट बल्कि सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म को लेकर परामर्श निगरानी और उपचार की सुविधा उपलब्ध हो सके साथ ही हर जिले के सटीक आंकड़े प्राप्त हो सकें।
विशेषज्ञों के अनुसार इन घटनाओं में ऑनलाइन गेम, सोशल मीडिया व इंटरनेट पर घंटों उलझे रहने से बच्चों व किशोर में हिंसक व्यवहार पनप रहा है, अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया पर सक्रिय 10 में से तीन बच्चे अवसाद, तनाव, चिंता के साथ चिड़चिड़ापन के शिकार हैं।
किसी का मन पढ़ाई में नहीं लगता तो कुछ बिना फोन के भजन तक नहीं कर पाते।
देश में 73% बच्चे मोबाइल का उपयोग करते हैं इनमें से 30% मनो रोग से पीड़ित हैं। साथ ही लड़कियां साइबर बुलिंग का शिकार होकर अवसाद ग्रस्त हो रही हैं दिल्ली एम्स में हर शनिवार संचालित क्लीनिक में साइबर बुलिंग के मामले आ रहे हैं। इनमें अधिकांश कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राएं हैं।
मोबाइल का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि यदि कोई स्क्रीन के सामने लंबे समय तक चिपका रहता है तो यह एक बड़ा लक्षण है साथ में पढ़ाई या किसी काम में मन न लगना कार्य क्षमता का घटना, चिड़चिड़ापन, नींद ना आना, संयम व धैर्य खोना, बात-बात पर गुस्सा आना आदि।
इस लत में चिंताजनक लक्षण है जिनके पाए जाने पर सचेत होने की आवश्यकता है, अध्ययन के अनुसार 6 में से एक सोशल मीडिया का उपयोग करता किसी न किसी रोग से ग्रस्त होता है। इनमें अवसाद, चिंता के अतिरिक्त उच्च रक्तचाप, एनीमिया, मोटापा, मधुमेह जैसे रोग हो सकते हैं।
लत लग जाने के बाद विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों को किशोर को अवसाद से बाहर निकालने के लिए प्रारंभिक दौर में दवावों की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है, अधिकांश मामले उचित परामर्श काउंसलिंग के आधार पर ठीक हो जाते हैं।
इस तरह यहां अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है मनोरोग विशेषज्ञ कहते हैं कि जो बच्चे दिन में चार से 6 घंटे तक ऑनलाइन रह रहे हैं उनमें समय रहते लक्षण पहचाना आवश्यक है, लेकिन अभिभावकों को उन पर अधिक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।
इस दुष्प्रचार को सामाजिक बदलाव से ही रोका जा सकता है परिवार में साथ रहने वह बच्चों को समय देने पर ही एक दूसरे को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं वह प्रभावी रूप में सहायता कर सकते हैं। अभिभावकों को जागरूक होने के साथ-साथ इंटरनेट की समझ भी विकसित करनी होगी, उन्हें पता तो चले कि हमारा बच्चा किस तरह की सोशल मीडिया पर बदलाव कर रहा है।
इस तरह स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग और इससे जुड़ी समस्याओं को लेकर व्यापक स्तर पर जागरूकता समय की मांग है। अपने परिवार के बच्चों, किशोरों एवं युवाओं की ऑनलाइन आदतों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
इससे भी महत्वपूर्ण है स्वयं का सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करने का जिससे परामर्श का अपेक्षित प्रभाव पड़ सके।