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*मार्क्स जिंदगी से बड़ा नहीं : बच्चों को अकेडमिक स्ट्रेस से बचाएँ*

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           डॉ. प्रिया

आज कल ‘गुड’ और ‘बेटर’ नहीं बल्कि ‘बेस्ट’ का ज़माना है. अक्सर बच्चों को बेहतर भविष्य की सीख देते हुए कई माता-पिता इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं।साथ ही हम में से कई लोग ऐसा सोचते हैं कि अगर हम ‘बेस्ट’ नहीं होंगे, तो समाज में हमारी अच्छी छवि नहीं रहेगी और शायद कोई हमारा कुशलक्षेम भी नहीं पूछेगा।

     बच्चों को पढ़ाई में ‘बेस्ट’ बनाने में हम इतना खो गए, कि उन्हें शारीरिक और मानसिक स्तर पर कितना ‘रेस्ट’ चाहिए यह भी भूल गए। यही वजह है कि इसी साल 230 मामले ऐसे सामने आए जब बच्चों ने अकेडमिक स्ट्रेस के कारण अपना जीवन समाप्त कर लिया। किसी भी स्वस्थ समाज के लिए यह एक बड़ी चिंता हो सकती है।

अक्सर मां-बाप की उम्मीदें और समाज के दबाव के चलते बच्चे फ्रस्टेट हो जाते हैं। जो पढ़ाई एक लंबी और सुखद यात्रा के तौर पर बच्चों को जीनी चाहिए, उन्हें मां-बाप की महत्वकांक्षांओं ने एक ‘मैराथॉन’ बना दिया है।

    इस बात का सबूत साफ़ तौर पर यही है कि जिन बच्चों को असफलता सफलता की पहली सीढ़ी लगनी चाहिए, उनके लिए असफलता जीवन खत्म करने का एक कारण बन गया है। आजकल कई जगह ऐसा देखा जा रहा है जहां पढ़ाई के कारण कुछ बच्चे परेशान हो के आत्महत्या कर लेते हैं।

      सर्वश्रेष्ठ बनने की होड़ में हम कभी-कभी भूल जाते हैं कि ग्रेड और रिपोर्ट कार्ड से परे भी एक दुनिया है। हालांकि, अच्छे अंक छात्रों को अच्छे कॉलेज में प्रवेश पाने या अच्छी नौकरी पाने में मदद कर सकते हैं, लेकिन क्या यह जीवन की खुशी सुनिश्चित करता है, क्या असफल होने वाले छात्र जीवन में कभी सफल नहीं होते ?

     यह एक विचारणीय प्रश्न हैं, जिस पर माता-पिता सहित गुरु और शिक्षकों को भी गहन चिंतन करना चाहिए।

गुड मार्क्स और गुड रिजल्ट तक सीमित हो गई है सफलता. पिछले कुछ वर्षों में, शैक्षणिक तनाव के कारण छात्र अवसाद और आत्महत्या के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। हम देखते हैं कि बहुत से प्रतिभाशाली दिमाग उत्कृष्टता हासिल करने के कारण सामाजिक और माता-पिता की अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाते हैं।

      ‘सफलता’ को अंक, ग्रेड और ‘गुड रिजल्ट’ तक सीमित कर दिया गया है। एक छात्र की शैक्षणिक यात्रा में अच्छे अंक निस्संदेह महत्व रखते हैं, और भारत में, हमारे पास एक सुरक्षित, स्थिर और समृद्ध भविष्य को सुरक्षित करने के साधन के रूप में शिक्षा की एक मजबूत परंपरा है। लेकिन, इस सब में हम यह भूल जाते हैं कि अंक छात्रों की क्षमताओं और मानसिक स्वस्थता के केवल एक पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं।

*बच्चों को न दें तनाव :*

    माता-पिता के लिए यह समझना बेहद आवश्यक है कि बच्चों की पढ़ाई को लेकर बार-बार दबाव डालना उनके मानसिक स्वास्थ्य के साथ एक खिलवाड़ है। ऐसा करने से बच्चे अवसाद यानी डिप्रेशन में आ सकते है।

     साइकोलॉजी रिसर्च एंड बिहेवियर मैनेजमेंट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि शैक्षणिक तनाव अप्रत्यक्ष रूप से अवसादग्रस्त लक्षणों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए बच्चों की पढ़ाई को सही ढंग से कराने के लिए आपको भी अपने आप में सुधार करना होगा और इस मामले में पॉजिटिवली हैंडल करना होगा।

*समर्थन- प्रोत्साहन बेहद जरूरी :*

    माता-पिता बच्चे के पहले ‘दोस्त’ होते है, इसलिए आपके बच्चे को पढ़ाई में आपसे ही सबसे ज्यादा समर्थन और प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

     माता-पिता के तौर पर आपको यह समझना बेहद जरूरी है कि बच्चे को किस चीज़ में समस्या है और यह आपका फ़र्ज़ है कि आप उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि आप उनके साथ हैं और हमेशा उनका साथ देंगे।

*रुचिकारक पढ़ाई का माहौल :*

      बच्चों का मन बहुत चंचल होता है। इसलिए बच्चों को सिर्फ डांट-दुत्कार कर पढ़ाना बिलकुल ठीक नहीं हैं बल्कि उनके लिए एक स्थिर और शांत पढ़ाई के माहौल की आवश्यकता होती है।

    इसके लिए आप एक विशेष पढ़ाई कक्षा या विशेषज्ञ शिक्षक की मदद ले सकते हैं, जिससे बच्चे को एकाग्र होने में किसी तरह की कोई समस्या का सामना न करना पड़ें।

*बच्चे को आत्म-संवाद कराना अहम :*

     आपके बच्चे को सोचने की और अपने लक्ष्यों की दिशा में मदद करने के लिए उसे आत्म-संवाद करने को प्रोत्साहित करें। व्यक्ति पूरी दुनिया से झूठ बोल सकता है लेकिन अंत में स्वयं से वो कभी झूठ नहीं बोल सकता।

   ध्यान दें कि हर बच्चा अद्वितीय होता है और उनकी पढ़ाई की आवश्यकताएँ और प्रक्रिया भी विभिन्न हो सकती हैं, इसलिए उनकी आवश्यकताओं को समझने का प्रयास करें और उन्हें उनके रास्ते पर बढ़ने की स्वतंत्रता दें।

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