मीडियामें बड़ा हल्ला मचा था कि इस बार दिल्ली दरबार बेरहमी से मंत्रियों-विधायकों के टिकट गुजरात चुनाव की तर्ज पर काटेगा। मगर जो चौथी सूची कल जारी की, जिनमें 57 टिकट तय किए गए उनमें अधिकांश पुराने चेहरे ही हैं। यानी विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने का साहस दिल्ली दरबार नहीं दिखा पाया और प्रदेश के जमीनी हालातों को समझने के बाद समझौता एक्सप्रेस में उसे बैठना ही पड़ा। यह भी अटकलें थी कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी टिकट नहीं मिलेगा। जबकि कल जारी हुई सूची से उन्हें भी बुधनी से ही चुनाव लड़ाया जा रहा है और हाशिए पर डालने का भी मंसूबा कतिपय गुटबाजी के चलते पूरा नहीं हो पाया और अधिकांश शिवराज समर्थकों को भी पार्टी ने टिकट दे दिए हैं। इंदौर में अवश्य तीन सीटों पर अभी टिकट तय नहीं किए हैं।
भाजपा (BJP) के केन्द्रीय नेतृत्व को यह तो स्पष्ट समझ में आ गया कि चुनावी डगर मध्यप्रदेश की उतनी आसान नहीं है जितनी उसे बताई जा रही थी। एंटी इन्कम्बेंसी के साथ गुटबाजी में बंटी भाजपा में इस बार अंदरुनी विरोध कम नहीं है। यही कारण है कि पिछले दिनों यह जुमला भी खूब चला कि महाराज भाजपा, शिवराज भाजपा और नाराज भाजपा के बीच ही कड़ा मुकाबला है… हालांकि भाजपा ने अपनी हारी हुई सीटों पर अवश्य कुछ चौंकाने वाले नाम दिए, जिनमें सांसदों और केन्द्रीय मंत्रियों को चुनाव लड़ाया। हालांकि यह प्रयोग राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी किया जा रहा है। हालांकि भाजपा ने अभी तक 136 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। मगर कल जो चौथी सूची 57 टिकटों की जारी हुई वह समझौता सूची ही मानी जा रही है। मुख्यमंत्री सहित 25 मंत्रियों और विधायकों को फिर से टिकट दिए गए हैं, जिनमें अधिकांश शिवराज समर्थक भी हैं। यशोधरा राजे जैसी मंत्री ने खुद ही चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया है। इसमें कोई शक नहीं कि कुछ महीने पहले तक भाजपा की हालत प्रदेश में काफी पतली मानी जा रही थी। मगर लाडली बहना के अलावा आक्रामक प्रचार-प्रसार के बलबूते पर भाजपा ने बढ़त बनाई। हालांकि अभी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। घोषणाओं के साथ-साथ अभी उसने उम्मीदवारों की सूची पर भी खुलासा नहीं किया है। दूसरी तरफ भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व बहुत अधिक रिस्क चाहकर भी नहीं ले पाया। अन्यथा पार्टी के अंदर ही विस्फोटक असंतोष हो जाता। यही कारण है कि उम्रदराज विधायक और मंत्रियों को भी टिकट देना पड़े और सिंधिया सहित सभी गुटों को संतुष्ट करने के प्रयास दिल्ली दरबार ने किए हैं। हालांकि कुछ बड़बोले उम्मीदवार अपने समर्थकों के जरिए खुद को मुख्यमंत्री से लेकर महत्वपूर्ण भूमिका में बताने भी लगे हैं, तो अब अन्य मंत्रियों व बड़े नेताओं को भी इसके सपने आने लगे हैं। कमल पटेल ने भी इसी तरह की बयानबाजी की कि कोई अफसर मेरा कहा टाल नहीं सकता, तो गोपाल भार्गव ने भी गुरुजी के आशीर्वाद से फिर चुनाव लडऩे और खुद के मुख्यमंत्री बनने की संभावना भी सार्वजनिक मंच के जरिए ही जाहिर कर दी। भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व को यह भी समझ में आ गया कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को हाशिए पर डालना इतना आसान नहीं है, क्योंकि पार्टी की ओर से पब्लिक फेस अभी भी वे ही हैं और उनकी लाडली बहना योजना को खुद पार्टी गेम चेंजर मान रही है। अब नजरें कांग्रेस पर टिकी है कि वह भाजपा के मजबूत सत्ता और संगठन का मुकाबला किस तरह से करती है।
बाबा और दीदी के टिकट पहले से ही थे होल्ड पर
दीदी यानी उषा ठाकुर को संघ और भाजपा ने कई दिनों पहले ही संकेत दे दिए थे कि उनका टिकट इस बार खटाई में है। यही कारण है कि दीदी भोपाल, दिल्ली से लेकर नागपुर तक अपनी टिकट बचाने के लिए सक्रिय रही, तो दूसरी तरफ बाबा यानी महेन्द्र हार्डिया का टिकट भी खटाई में बताया जाता रहा और यही कारण है कि बाबा और दीदी के टिकट अभी होल्ड पर रखे हैं। तीन नम्बर में चूंकि आकाश विजयवर्गीय को टिकट इसलिए नहीं मिलेगा, क्योंकि पार्टी ने एक नम्बर से उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय को उम्मीदवार बना दिया है। महू से डॉ. निशांत खरे, तो 5 नम्बर से गौरव रणदीवे दौड़ में आगे हैं। वहीं तीन नम्बर में अवश्य भाजपा के लिए उम्मीदवारी का चयन करने में दुविधा बनी हुई है।
16 मौजूदा विधायकों के टिकट फंसे, जिनमें 9 मंत्री भी शामिल
मालवा-निमाड़ के अभी 16 विधायकों के टिकट होल्ड पर हैं, जिनमें तीन तो इंदौर की विधानसभा शामिल है। वहीं शिवराज मंत्रिमंडल के 9 मंत्रियों पर भी फैसला होना है, जिनमें उषा ठाकुर के अलावा बृजेन्द्रसिंह यादव, महेन्द्र सिसौदिया, सुरेश धाकड़, इंदरसिंह परमार, ओपीएस भदौरिया, गौरीशंकर बिसेन, रामखेलावन पटेल शामिल हैं। वहीं यशोधराराजे सिंधिया चुनाव लडऩे से इनकार कर चुके है। अब देखना यह है कि कितनी सीटिंग एमएलए और बचे मंत्रियों के टिकट पार्टी काटने का साहस दिखा पाती है। इनमें चार सिंधिया समर्थक मंत्री भी शामिल है। भाजपा की अभी 67 उम्मीदवारों की सूची जारी होना शेष है।