अग्नि आलोक
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*मूँदहु आंख कहूं भूख नाहीं!*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

हम तो पहले ही कह रहे थे, ये पश्चिम वाले आसानी से भारत को विश्व गुरु के आसन पर नहीं बैठने देंगे। मोदी जी से जलते जो हैं। भारत की तरफ से मोदी जी विश्व गुरु डिक्लेअर हो जाएं, ये इन्हें हजम ही नहीं हो रहा। तभी तो फिर भांजी मार दी, भूख सूचकांक के नाम पर। फिर एक  विश्व भूख सूचकांक जारी कर दिया। कहते हैं, यह 2023 का भूख सूचकांक है। 125 देशों में भारत 111वें नंबर पर है। यानी सबसे आखिरी नंबर से सिर्फ 14 नंबर पीछे। उस पर तुर्रा ये है कि इनके हिसाब से भारत, आखिरी नंबर की तरफ तेजी से प्रोग्रेस कर रहा है। पिछले साल यानी 2022 से भी भारत, 4 स्थान नीचे खिसक गया है। पिछले साल भारत इसी पैमाने पर, 107वें नंबर पर था। यानी अमृतकाल में अगर रिवर्स गीयर में गाड़ी की रफ्तार और तेज नहीं भी हुई, तब भी तीन-साढ़े तीन साल में भारत नीचे से पहले नंबर पर पहुंच ही जाएगा; बस पब्लिक अगले चुनाव में मोदी जी को एक मौका और दे दे!

खैर, ये भारत-विरोधी डाल-डाल, तो मोदी जी पात-पात। उधर विश्व भूख सूचकांक के नाम पर भारत की विश्व गुरु की दावेदारी पर हमला हुआ और इधर मोदी जी की सरकार ने इस सूचकांक को ही मानने से इंकार कर दिया; एक बार फिर इस सूचकांक को ही झूठा करार दे दिया। पिछले साल भी सूचकांक को झूठा करार दिया था। उससे पहले के  साल भी। उससे पहले के साल भी। जब सूचकांक वाले ही भारत को नीचे खिसकाने से बाज नहीं आते हैं, हर बार नीचे से नीचे ही खिसकाते जाते हैं, तो मोदी जी की सरकार ही उनके सूचकांक को मानने से इंकार क्यों नहीं करे। फिर इस बार तो भूख सूचकांक वालों ने हद्द ही कर दी। भारत को पड़ौसी श्रीलंका से भी नीचे कर दिया। और हद्द तो यह कि भूख में पाकिस्तान से भी पीछे कर दिया। उस पर कहते हैं कि शुक्र मनाइए कि पास-पड़ौस में कम से कम अफगानिस्तान तो भारत से नीचे है। वह भी आगे निकल जाता, तो विश्व गुुरु जी का क्या होता?

वैसे मोदी जी की ये पॉलिसी हमें तो पसंद आ गयी। जो सूचकांक बल्कि सर्टिफिकेट भी ऊपर दिखाए, उसे गले लगा लो। और जो सूचकांक नीचे ले जाए, उसे ठुकरा दो। मीठा-मीठा गप्प, कडुआ-कडुआ थू। भूख सूचकांक, थू। प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक, थू। डैमोक्रेसी सूचकांक, थू। धार्मिक स्वतंत्रता सूचकांक, थू। यहां तक कि खुशमिजाजी ऊर्फ हैप्पीनेस सूचकांक भी थू! सारे सूचकांक थू! पर इसमें भी तो एक अच्छी बात है। हरेक सूचकांक का दूसरा पहलू भी तो है। भूख मिटाने में न सही, भूख में सही ; प्रैस की स्वतंत्रता में नहीं, प्रैस की परतंत्रता में सही ; डैमोक्रेसी में न सही, तानाशाही में सही — हम विश्व गुरु बनने के एकदम करीब हैं। अब गरज तो विश्व गुरु कहलाने से है, भूख बढ़ाने में विश्व गुरु कहलाए तो और भूख मिटाने में विश्व गुरु कहलाए तो। उसके ऊपर से 111 की संख्या तो वैसे भी हमारे यहां शुभ मानी जाती है। भारत चाहता तो पिछली बार की तरह, भूख सूचकांक पर 107वें नंबर पर तो इस बार भी रह ही सकता था। पर जब 111 का शुभ अंक उपलब्ध था, तो भला हम 107 पर ही क्यों अटके रहते? कम से कम 111 शुभ तो है। भूख न भी कम हो, शुभ तो ज्यादा होगा।                                                                          

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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